अहमदाबाद. जन्म से ही बाहर से नली के जरिए खाना खाने को मजबूर बच्चे ने ढाई वर्ष बाद पहली बार मुंह से खाना खाते देख माता-पिता व परिजन भावुक हो गए। दरअसल, उत्तर प्रदेश का यह बच्चा अन्न नली के जन्मजात एसोफैजियल एट्रेसिया नामक परेशानी से पीडि़त था। ढाई वर्ष की आयु तक इस बच्चे को गले में छेद कर पाइप से भोजन दिया जाता रहा। अहमदाबाद के सिविल अस्पताल के चिकित्सकों ने बच्चे का जटिल ऑपरेशन कर उसके जीवन में स्वाद भर दिया। अब यह आम बच्चों की तरह जीवन जी सकेगा।
कार्तिक को जन्म से ही अन्ननली जैसी प्रक्रिया थी ही नहीं। परिजनों ने उत्तर प्रदेश के किसी अस्पताल में ऑपरेशन करवाया, जिसमें भोजन लेने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की गई थी। कार्तिक के गले में छेद कर ट्यूब डाली गई, जिससे पेट तक भोजन पहुंचाया जाता था। बच्चा मुंह से खुराक ले सके इसके लिए चिकित्सकों ने छह से सात लाख रुपए का खर्च बताया था। पिछले दिनों इस बच्चे को अहमदाबाद के सिविल अस्पताल लाया गया, जहां पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग की ओपीडी में दिखाए जाने पर उसके ऑपरेशन का निर्णय किया गया। सफल सर्जरी के बाद बच्चे को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है।
ऑपरेशन ही विकल्प
सिविल अस्पताल के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के अध्यक्ष एवं सिविल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. राकेश जोशी ने बताया कि इस तरह के मामलों में ऑपरेशन ही विकल्प होता है। इस तरह के ऑपरेशन को चिकित्सकीय भाषा में गैस्ट्रिक पुल-अप सर्जरी कहा जाता है। इसमें पेट के कुछ हिस्से को खींचकर अन्ननली का आकार दिया जाता है। इस मामले में भी यही जटिल सर्जरी की गई। जिसके बाद वह मुंह से खाना खा सका। सर्जरी करने वाले चिकित्सकों की टीम में डॉ. जोशी के साथ डॉ. जयश्री रामजी, डॉ. शकुंतला, डॉ. भरत माहेश्वरी समेत कई चिकित्सक मौजूद रहे।
4000 में किसी एक को एसोफैजियल एट्रेसिया की आशंका
इस तरह के मामले 4000 में से किसी एक को होने की आशंका रहती है। इस तरह की समस्या को एसोफैजियल एट्रेसिया कहा जाता है।