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बार बार मोबाइल देखना, लाइक और शेयर का नशा भी मनोरोग

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस: हर साल जिला अस्पताल में आ रहे साठ हजार से अधिक रोगी

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श्रीगंगानगर. इलाके में नशे के साथ साथ छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्गो में मोबाइल फोन दिनचर्या भी प्रभावित करने लगा है। बच्चों और स्कूली स्टूडेंटस में खेल मैदान से दूर होने और मोबाइल पर अधिक समय देने से मनोरोग का तेजी से शिकार हो रहे हैं। चिकित्सकों की माने तो नींद न आना, डिप्रेशन, माइग्रेन, अत्यधिक चिड़चिड़ापन और यहां तक कि सोशल मीडिया पर लाइक, शेयर को लेकर हद से ज्यादा बेचैनी भी मानसिक रोग के संकेत हैं। मनोरोग विशेषज्ञों का कहना है कि मनोरोग उपचार की शुरुआत लाइफ स्टाइल बदलने से ही की जा सकती है। कितनी भी दवा लो लेकिन असर नहीं करेगी। मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए पहली प्राथमिकता दिनचर्या को व्यवस्थित रखना है। रोज 6 से 8 घंटे की नींद जरूरी है। गुस्से को अपनी शान न समझे बल्कि इससे बचे, शांत रहना सीखें। जो है, जैसे हैं, उससे थोड़ा संतुष्ट होना सीखें। अपनी लाइफ की कभी दूसरों से तुलना नहीं करनी चाहिए और सोशल मीडिया की दुनिया से दूरी रहनी होगी। जिला चिकित्सालय में आंकड़ों पर गौर किया जाएं तो रोग अब हावी होने लगा है। रोजाना दो सौ रोगी अपना उपचार कराने पहुंच रहे है। हर साल औसतन साठ हजार रोगी से अधिक अपना उपचार करवा रहे है। जिला अस्पताल में हर माह नशे से दूर रहने या मनो िस्थति को लेकर साठ रोगी भर्ती भी हो रहे है। यह सिर्फ जिला अस्पताल का आंकड़ा है, इसके अलावा निजी चिकित्सकों और क्लीनिकों में इससे ज्यादा रोगी सामने आ रहे है।
महज बीस मिनट में आए चार रोगी
जिला चिकित्सालय के ओपीडी कैम्पस में कमरा नम्बर पन्द्रह में चार में से तीन चिकित्सक रोगियों का उपचार करते नजर आए। इसमें एक चिकित्सक के पास आए इस रोगी ने खुद का ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाला बताया और बोला कि उसकी बेटी गुमसुम रहती है। बीए प्रथम वर्ष की यह छात्रा एकाएक चुप्पी साध ली है। चिकित्सक ने इससे संवाद करने का प्रयास किया लेकिन वह संवाद नहीं कर पाई। परिजनों ने बताया कि कुछ समय पहले ज्यादा मोबाइल इस्तेमाल करती थी। अब पेपर देने से परहेज करने लगी है। इसी प्रकार एक युवक अपने परिजनों के साथ पहुंचा। उसने बताया कि जब वह अकेला होता है तब उसे भीड़ जैसी आवाजें आती है। एक और बालिका भी पहुंची, उसने बताया कि उसे सब कुछ अच्छा नहीं लगा है। रात भर वह सो नहीं पाती है। एक बुजुर्ग आया तो उसने अपनी पुरानी पर्ची दिखाई। यह बुजुर्ग पहले पोस्त का नशे लेता था, ऐसे में अब उसे एैलोपैथी दवा के सेवन पर िस्थर किया गया है।
मूलमंत्र: खुशनुमा माहौल ही स्थायी समाधान
जिला चिकित्सालय में मनोरोग विभाग के एचओडी डा. अशोक अरोड़ा का कहना है कि मनोरोग की मुख्य वजह संगत है। माहौल सकारात्मक नहीं होगा तो इंसान नशे जैसे विकल्प का सहारा लेगा। ऐसे में खुशनुमा माहौल ही स्थायी समाधान है। भर्ती से ठीक हुए रोगी फिर से बीमार आते है तब उन रोगियों को परिजनों और ऑफिस सह कार्मियों में पॉजीटिव नहीं होने की वजह है। ऐसे में अच्छे दोस्त बनाएं व परिवार में खुशनुमा माहौल बनाकर रखें। परिवार के साथ ज्यादा समय व्यतीत करें। खानपान सही व नियमित दिनचर्या रखें। किसी भी प्रकार के नशे से दूरी बनाकर रखें।