रात के अंधेरे में जब भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा पर सन्नाटा पसरा होता है, तब बीएसएफ की महिला जवान हाथ में मजबूती के साथ स्वचालित हथियार थामे मुस्तैदी के साथ अपने कर्तव्य पथ पर डटी होती है। उसकी निगाहें सीमा पार राष्ट्रविरोधी ताकतों की नापाक हरकत की टोह लेती रहती हैं। बीएसएफ की महिला जवानों ने महिलाओं के प्रति बनी कई धारणाओं को तोड़ा है। घर से दूर सरहद की सुरक्षा भी वह उसी लगन और मेहनत से कर रही हैं, जितनी गृहस्थी को चलाने में करती है।
शांति काल में भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमा की चौकसी करने वाले संगठन बीएसएफ में महिला जवानों का प्रवेश डेढ़ दशक पहले हुआ। उससे पहले यह संगठन पुरुष प्रधान ही था। सीमा की चौकसी करना आसान काम नहीं। विपरीत परििस्थतियों और मौसम में जवानों को दिन-रात सरहद की सुरक्षा में तैनात रहना पड़ता है। राजस्थान फ्रंटियर में जहां गर्मी के मौसम में तापमान 50 डिगी सेल्सियस से ऊपर चला जाता है और लू के थपेड़े तन को झुलसाने लगते हैं, तब दिन भर अग्रिम पोस्ट पर खड़े-खड़े ड्यूटी करना आसान काम नहीं। सर्दी के मौसम में कंपकंपी छुड़ाने वाली ठंड में भी जवान मुस्तैदी के साथ अपनी ड्यूटी को अंजाम देते हैं। अब महिला जवान भी विपरीत मौसम का मुकाबला करते हुए सीमा की चौकसी कर रही हैं।
सक्षम बना रही बीएसएफ को
बीएसएफ में भर्ती हो रही महिला जवान पढ़ाई में भी अव्वल है। बी.टेक और बीएससी मैथ और फिजिक्स जैसे विषयों के साथ पास महिला जवानों के आने से बीएसएफ जवानों का शैक्षिक स्तर बढ़ा है। कम्प्यूटर साइंस जैसे विषय में बी.टेक की हुई महिला जवान बीएसएफ को हाईटेक करने में मददगार साबित हो रही है। बीएसएफ अधिकारी का कहना है कि जिस तेजी से महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, उसे देखते हुए एक दिन पुरुष प्रधान समाज, महिला प्रधान हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।
Updated on:
08 Mar 2025 04:20 pm
Published on:
08 Mar 2025 04:19 pm