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डेनमार्क में आधुनिक खेती से किसान मालामाल, प्रशिक्षण लेकर लौटे सिरोही के किसान ने बताया वहां की खेती का राज

डेनमार्क में आधुनिक मशीनों और तकनीक के जरिए खेती होती है। प्रशिक्षण लेकर लौटे सिरोही के किसान ने बताया वहां किस तरह खेती की जाती है।

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denmark farming

Photo- Patrika

सिरोही। डेनमार्क में आधुनिक मशीनों और तकनीक के जरिए खेती होती है। जिससे किसान कम मजदूरी में अधिक उत्पादन लेते हैं। वहां के अधिसंख्य किसान खेती के साथ पशुपालन भी करते हैं। गाय अधिक पालते हैं। जिससे मुनाफा अच्छा हो जाता है।

खेतों में रासायनिक के बजाय देशी खाद का प्रयोग करते हैं, जिससे अधिक उत्पादन के साथ ही भूमि की उर्वरता बनी रहती है। यह कहना है डेनमार्क से कृषि तकनीक का प्रशिक्षण लेकर लौटे सिरोही जिले के कासिन्द्रा के प्रगतिशील किसान अमर सिंह देवल का।

मुख्यमंत्री बजट घोषणा के तहत राजस्थान के 38 व सिरोही जिले का एक किसान अमर सिंह डेनमार्क में पशुपालन व खेती का आठ दिवसीय प्रशिक्षण लेकर लौटे हैं।

किसानों दल 8 अक्टूबर को जयपुर कृषि भवन से रवाना हुआ और विदेश भ्रमण के बाद 14 अक्टूबर को पुन: जयपुर लौटा। दल ने वहां आधुनिक कृषि तकनीक, डेयरी प्रबंधन और पॉली हाउस खेती का गहन प्रशिक्षण प्राप्त किया।

डेनमार्क में फार्मर कम बिजनेसमैन

प्रशिक्षण लेकर लौटे कासिन्द्रा सिरोही के प्रगतिशील किसान अमर सिंह देवल ने पत्रिका को बताया कि डेनमार्क में मुख्य रूप से फार्मर कम बिजनेसमैन हैं। वहां का किसान पहले मैकेनिक और फिर किसान बनता है। किसान कृषि यंत्र खुद बना सकते हैं और उनकी मरम्मत भी खुद ही कर लेते हैं।

खेती में आधुनिक तकनीक काम में लेते हैं। जबकि अपने यहां आज भी परंपरागत खेती पर जोर है। वहां का किसान पूरी तरह से आधुनिक हैं। मुनाफे के लिए खेती के साथ पशुपालन जरूर करते हैं।

लगभग पूरा कार्य मशीनों से होता है। ऐसे में मजदूरों की जरूरत कम पड़ती है। वहां कई किसान ऐसे हैं, जिनके पास करीब 3 हजार से 3500 गायें और 8 हजार हैक्टेयर भूमि है। इन सभी की मॉनिटरिंग करने के लिए आठ कर्मचारी लगा रखे हैं।

5 करोड़ का ट्रैक्टर

देवल ने बताया कि डेनमार्क में एक ट्रैक्टर की कीमत करीब 5 करोड़ रुपए है। कई किसानों के पास तो 10 से 15 ट्रैक्टर है। जिससे खेती का कार्य आसान हो जाता है। पशुपालन में डेटा एनालिटिक्स का अधिक उपयोग होता है।

किसान के पास जितनी गायें होती हैं, उसमें प्रत्येक गाय का डेटा तैयार किया जाता है, जैसे कौनसी गाय कितना दूध देती है। दूध से बायो प्रोजेक्ट बनाए जाते हैं। जिससे एक साथ कई तरह से कमाई होती है।

इन फसलों की पैदावार, दोगुना उत्पादन

डेनमार्क में भी किसान साल में दो पैदावार लेते हैं, लेकिन तकनीक व देशी खाद के इस्तेमाल से भारत के बजाय दोगुना उत्पादन लेते हैं। डेनमार्क में सबसे अधिक मक्का, आलू, सरसों, घास, फलों में किशमिश, एपल आदि की पैदावार होती है।

मक्का की पैदावार लेने के बाद उससे साइलेज बनाते हैं। जो गायों को खिलाते हैं। यानी खेतों में पैदा हुई कोई चीज बेकार नहीं जाने देते। मोटा अनाज और फल का अधिक सेवन करते हैं।

डेनमार्क की आबादी 60 लाख, तीन करोड़ साइकिलें

देवल बताते हैं कि डेनमार्क में सालभर बारिश होती है, लेकिन वहां पर सिस्टम ही ऐसा बनाया हुआ है कि कहीं भी पानी का भराव नहीं होता है। इसके अलावा विद्युतीकरण भी पूरा अंडरग्राउंड है। एक भी बिजली का पोल बाहर नहीं है। पुलिस की संख्या भी बहुत कम है। डेनमार्क की आबादी लगभग 60 लाख है, जबकि वहां लगभग तीन करोड़ साइकिलें हैं।

लोगों में साइकलिंग का शौक है। एक व्यक्ति के पास चार से पांच साइकिलें आम बात है। वहां की कुल जनसंख्या के अनुपात में पांच प्रतिशत ही किसान हैं। बाकी सभी व्यवसायी है।

डेनमार्क में पीने का पानी विश्व का सबसे शुद्ध पानी बताते हैं। प्रकृति भी इंसान के साथ सहयोग करती है। वहां की जनता राष्ट्र के प्रति समर्पित भाव से अनुशासन में रहती हैं। किसी भी प्रकार का वीआईपी ट्रेंड नहीं है।

मशीनरी व तकनीक का इस्तेमाल करें तो हम भी होंगे अग्रणी

प्रगतिशील किसान अमर सिंह का कहना है कि डेनमार्क की तरह भारत में भी यदि कृषि में मशीनरी का उपयोग किया जाए, आधुनिक तकनीक इस्तेमाल की जाए, देशी खाद काम ली ली जाए, पशुपालन पर जोर दें तो हम भी दूध व कृषि के क्षेत्र में अग्रणी हो सकते हैं।

मंत्री व अधिकारी भी गए

डेनमार्क गए दल में गृह राज्यमंत्री जवाहर सिंह, राज्यमंत्री ओटाराम देवासी, पशुपालन मंत्री जोराराम, किसान आयोग अध्यक्ष सीआर चौधरी, कृषि एवं प्रमुख शासन सचिव राजन विशाल सिंह, पशुपालन प्रमुख शासन सचिव समित शर्मा, कृषि कमिश्नर चिन्मई गोपाल, दल प्रभारी डॉ. राजेन्द्र सिंह एवं गणेश कुमार मीणा भी साथ में थे।