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तनाव ने छीनी मानसिक शांति, मनोरोग विभाग में हर दसवां इंसान बीमार

सीकर. कोरोनाकाल के बाद मूक महामारी बनी मानसिक बीमारियों के मरीज तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। हाल यह है कि मनोरोग विभाग में पिछले एक साल में तनाव और अवसाद से जूझ रहे मरीजों की संख्या करीब 22 प्रतिशत तक बढ़ गई है। जिला अस्पताल की ओपीडी में रोजाना 70 से 100 मरीज मानसिक परामर्श के लिए पहुंच रहे हैं।

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सीकर. कोरोनाकाल के बाद मूक महामारी बनी मानसिक बीमारियों के मरीज तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। हाल यह है कि मनोरोग विभाग में पिछले एक साल में तनाव और अवसाद से जूझ रहे मरीजों की संख्या करीब 22 प्रतिशत तक बढ़ गई है। जिला अस्पताल की ओपीडी में रोजाना 70 से 100 मरीज मानसिक परामर्श के लिए पहुंच रहे हैं। चिंताजनक बात है कि इनमें 40 प्रतिशत से अधिक मरीजों की आयु 18 से 35 वर्ष के बीच है। वहीं महिलाओं में प्रसव के बाद अवसाद के मामले बढ़े हैं। चिकित्सकों के अनुसार ओपीडी में हुई काउंसलिंग के आंकड़ों के अनुसार ओपीडी में आने वाल प्रत्येक दसवां मरीज किसी न किसी मानसिक समस्या से जूझ रहा है। चिकित्सकों के अनुसार अवसाद या चिंता व्यक्ति की कमजोरी या कमी नहीं है। समय पर पहचान और काउंसलिंग से मरीज पूरी तरह ठीक हो सकते हैं लेकिन लोग आज भी समाज के डर से चिकित्सक के पास आने में झिझकते हैं। जिसका नतीजा है कि बीमारी गंभीर रूप ले लेती है।गौरतलब है कि इस साल विश्व में मानसिक स्वास्थ्य दिवस की थीम सेवाओं तक पहुंच - आपदाओं और आपात स्थितियों में मानसिक स्वास्थ्य रखी गई है।

यूं करें बचाव

चिकित्सको के अनुसार बचपन में मानसिक बीमारियों से बचने के लिए रोजाना कम्प्यूटर या लैपटॉप की बजाए खेल मैदान में कम से कम खेल करें। चौबीस घंटे के दौरान तीन से चार घंटे तक सोशल मीडिया प्लेटफार्मों से दूरी बनाकर परिवार और दोस्तों से बात करें। रोजाना सात से आठ घंटे पर्याप्त नींद लें। तनाव महसूस हो तो मनोचिकित्सक से परामर्श लें। कई बार माता-पिता अपने बच्चे में इंटरनेट की लत के लक्षण देखकर नाराज होकर कंप्यूटर को सजा के रूप में दूर ले जाते हैं वहीं कई परिजनों का मानना होता है कि इस समस्या से छुटकारा पाने का यही एकमात्र तरीका है। दोनों दृष्टिकोण परेशानी को आमंत्रित करते हैं। नतीजा होता है कि बच्चा अपने माता पिता को शत्रु के रूप में देखने लगता है और वे घबराहट, क्रोध और चिड़चिड़ापन के शिकार हो जाते है।

यह है कारण

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया में हर चार में से एक व्यक्ति अपने जीवनकाल में किसी न किसी मानसिक बीमारी का शिकार होता है। रिपोर्ट के अनुसार आबादी में प्रत्येक 7 में से 1 शख्स मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर से परेशान है। ज्यादा एंग्जायटी और डिप्रेशन से जूझ रहे हैं। ये समस्याएं सुनने में छोटी लगती हैं, लेकिन बेहद गंभीर होती हैं। अक्सर बेरोजगारी और परीक्षा परिणामों का दबाव बढ़ने और सोशल मीडिया और मोबाइल पर निर्भरता, अकेलापन और पारिवारिक संवाद में कमी, महिलाओं में घरेलू तनाव और प्रसव के बाद अवसाद के कारण मानसिक बीमारियां बढ़ती है।

ठीक होने वाली बीमारी

डिप्रेशन या चिंता कमजोरी नहीं, यह एक इलाज योग्य बीमारी है। उपचार और काउंसलिंग से 80 प्रतिशत मानसिक रोग पूरी तरह ठीक हो सकते हैं। मानसिक बीमारियों से बचने के लिए खुलकर बात करें, बीमारी के बारे में चिकित्सक से कुछ भी छिपाए नहीं। डॉ. विक्रम बगड़िया , असिस्टेंट प्रोफेसर, मेडिकल कॉलेज सीकर