सीकर. खाद्य पदार्थ ही नहीं अब खेती-किसानी भी मिलावटखोरों की चपेट में आ गई है। खेतों में इस्तेमाल होने वाले खाद, बीज और कीटनाशी दवाइयों के अमानक नमूने सामने आने से किसानों की फसल उत्पादन और सेहत दोनों पर विपरीत असर पड़ रहा है। कृषि विभाग की जांच में प्रदेश के कई जिलों से लिए गए सैपलों में खामियां मिली हैं। शेखावाटी अंचल के सीकर, झुंझुनूं, नागौर और डीडवाना-कुचामन जिले में महज एक साल में 59 सैपल फेल हो गए हैं। विभाग ने इन फेल सैपलों की रिपोर्ट राज्य स्तर पर भेजी है। जहां संबंधित कंपनियों और डीलरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। अमानक खाद-बीज बेचने पर लाइसेंस निरस्तीकरण और जुर्माना लगाया जाएगा। जिन फर्मों के सैपल दूसरी जांच में भी फेल हुए हैं उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई और एफआईआर दर्ज करवाई जाएगी। गौरतलब है कि जिले में वर्ष 2025-26 के दौरान सीकर, झुंझुनुं, नागौर, डीडवाना-कुचामन जिले में उर्वरक के 19, बीज के 45 और कीटनाशी के 10 सैपल लिए गए हैं। इनकी रिपोर्ट पर दोषी मिले मिलावटखोरों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
जिला उर्वरक बीज कीटनाशी
सीकर-19 - 9 -०1
झुंझनूं-10—०5—०2
नागौर- 11 ०3 ०1
डीडवाना-कुचामन ०2 ०4 ०2
चिकित्सकों के अनुसार फसल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए प्रयोग किए जाने वाले खाद-बीज और कीटनाशी संतुलित मात्रा में ठीक रहता है लेकिन अंधाधुंध उपयोग करने के कारण मुनाफाखोरी के लिए कुछ लोग खाद-बीज और कीटनाशी में मिलावट करते हैं जिसके कारण से इनके अवशेष पेट में जाकर पाचन क्रिया को प्रभावित करते है वहीं लगातार सेवन के कारण ह्दय, लीवर, गुर्दे सहित शरीर में कई तरह की खतरनाक बीमारियों का जन्म होता है। मिलावट के कारण अनाज के साथ केमिकल का अंश शरीर में पहुंच जाता है। लंबे समय में किसान और उपभोक्ता दोनों की सेहत पर दुष्प्रभाव पड़ता है।
अमानक खाद-बीज से उनकी फसलों पर सीधा असर पड़ता है और उन्हें लाखों का नुकसान झेलना पड़ सकता है। यही कारण है कि खेती घाटे का सौदा बन गई है। कई किसान संगठनों ने सरकार से दोषियों के खिलाफ सत कार्रवाई की मांग की है। साथ ही किसानों ने जल्द इस पर कार्रवाई नहीं किए जाने पर आंदोलन की राह पकड़ने की चेतावनी दी है।
कृषि आदान विक्रेताओं से जुटाई जानकारी के अनुसार पिछले डेढ दशक में हर साल उर्वरकों की खपत में 1250 टन की बढ़ोतरी हुई है। 90 के दशक में एक साल में उर्वरक की खपत जिले में करीब 15 हजार टन की थी वही खपत अब बढ़कर 25 से 28 हजार मीट्रिक टन तक पहुंच गई है। इसी तरह डीएपी की खपत बढ़ी है। यूरिया व कीटनाशकों का इस्तेमाल इतना अधिक हो रहा है कि किसान अधिक से अधिक कमाई करने के चक्कर में शाम को फसल में दवा का इस्तेमाल करता है। सब्जी में इंजेक्शन तक लगाए जाते हैं। मृदा जांच लैब की रिपोर्ट के अनुसार खेती की जमीन का पावर ऑफ हाइड्रो (पीएच) 8 से बढ़कर 9.5 तक पहुंच गया है। अच्छी जमीन का पीएच सात से आठ के बीच होना चाहिए।
सीकर कृषि खंड के चार जिलों में लिए गए सैपल की जांच रिपोर्ट आई है। इसमें चारों जिले में 59 सेंपल फेल मिले हैं। फेल सैपल मिले फर्म संचालकों के खिलाफ कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू की गई है। विभाग मिलावट रोकने के लिए पूरी तरह गंभीर है।
शिवजीराम कटारिया, अतिरिक्त निदेशक कृषि, सीकर
Published on:
04 Sept 2025 11:11 am
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