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बीएमसी की पूरी बिल्डिंग का होगा कायाकल्प, ड्रेनेज सिस्टम बदलेगा

रोज 5000 हजार से अधिक लोग होते हैं परेशान सागर. मेडिकल कॉलेज में लंबे समय से वार्ड में उखड़े नल, गंदगी से बजबजाती टॉयलेट और हॉस्टल में परेशान होते मेडिकल छात्रों की सुध नए डीन डॉ. पीएस ठाकुर ने ली है। डीन ने पूरे परिसर का कायाकल्प करने पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर्स के साथ करीब 2 […]

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सागर

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Nitin Sadaphal

Jun 30, 2024

रोज 5000 हजार से अधिक लोग होते हैं परेशान

सागर. मेडिकल कॉलेज में लंबे समय से वार्ड में उखड़े नल, गंदगी से बजबजाती टॉयलेट और हॉस्टल में परेशान होते मेडिकल छात्रों की सुध नए डीन डॉ. पीएस ठाकुर ने ली है। डीन ने पूरे परिसर का कायाकल्प करने पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर्स के साथ करीब 2 करोड़ का प्रोजेक्ट बनाया है। राशि के लिए भोपाल से मंजूरी मांगी गई है। मरम्मत कार्य में पहली प्राथमिकता ड्रेनेज सिस्टम की होगी, जिस पर करीब 50 लाख रुपए से अधिक खर्च किए जाएंगे।

2008 में हाउसिंग बोर्ड ने बनाई बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज की बिल्डिंग कुछ वर्ष में ही खस्ताहाल हो गई थी। भवन में दरारें, जर्जर रैलिंग पर तो सवाल उठाए जो रहे थे लेकिन सबसे ज्यादा दिक्कत ड्रेनेज सिस्टम की थी। तमाम शौचालयों में मात्र 3 इंची पाइप लाइन डाली गई है जबकि यहां जरूरत 5-6 इंची पाइप की थी।

खराब ड्रेनेज सिस्टम से यह थी परेशानी

3 इंची पाइप लाइन में मरीजों के कपड़े, फल, सब्जियां जैसा कचरा फंसा रहता है। पानी निकलने की जगह बिल्डिंग में यहां वहां जमा हो रहा है और सीपेज का कारण बन रहा है। ड्रेनेज सिस्टम के कारण वार्डों के कई शौचालय बंद करने पड़े। यहां मरीजों के डेली उपयोग से गंदगी भर जाती है जिस कारण आसपास के वार्डों में सीपेज की समस्या हो जाती है। बदबू के कारण पूरे वार्ड महक उठते हैं। सीपेज के कारण प्लास्टर झड़ रहा है यहां तक की 3 ऑपरेशन थियेटर में भी ताला लगा है। गल्र्स व बॉयज हॉस्टल की बिल्डिंग में भी सीपेज हैं।

40 साल की ड्रेनेज समस्या होगी खत्म

पीडब्ल्यूडी ने अस्पताल भवन के तमाम वार्डों और गल्र्स-बॉयज हॉस्टल के शौचालयों सहित तमाम पाइप लाइनों का एक प्रिंट आउट तैयार किया है जिसमें प्रत्येक लाइन को इतना सक्षम कर दिया जाएगा कि फल, सब्जियां के टुकड़े भी पाइप लाइन से आसानी से निकल जाएं। पूरा ड्रेनेज सिस्टम ऐसे डेवलप होगा कि आने वाले 40 सालों में पानी निकासी की समस्या न हो और सीपेज न हों।

रंग-रोगन के साथ रेलिंग व खिड़कियों की मरम्मत

करीब 14 साल से बीएमसी परिसर में रंग-रोगन नहीं हो पाया है। परिसर में अंदर करीब दर्जनों रेलिंग भी खस्ताहाल हैं। खिड़कियों से कांच गायब हैं। दरवाजे टूट चुके हैं। पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर्स ने परिसर में एक-एक सामग्री की लिस्ट बनाई है, इसके लिए बजट तैयार किया है। कायाकल्प के लिए राशि मंजूर होती है तो पूरा भवन नए सिरे से चमक जाएगा।

मुझे यहां आए अभी दो माह ही हुए हैं, आते ही जब मैंने देखा की भवन की हालात खराब है। छोटे बजट में थोड़ी व्यवस्थाएं करने से मरीजों, डॉक्टर्स व मेडिकल छात्रों को राहत नहीं मिल पाएगी। इसलिए पीडब्ल्यूडी से सर्वे कराया गया है। भवनों के कायाकल्प में अच्छा खासा बजट लगेगा, लेकिन परेशानी बड़ी है तो हल निकालना पड़ेगा। उम्मीद है कि भोपाल से हम मरम्मत के लिए राशि मंजूर कर दी जाएगी।

डॉ. पीएस ठाकुर, डीन बीएमसी।