हिंदू मान्यताओं में पितृ पक्ष पूर्वजों की आत्मा की शांति और आशीर्वाद से जुड़ा है। हर साल भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से पितृ पक्ष की शुरुआत होती है। यह आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक रहती है। इन 16 दिन में पूर्वजों का स्मरण किया जाता है। पितृ पक्ष कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 14 अक्टूबर को समाप्त होंगे। इस संबंध में ज्योतिषाचार्य पंडित नीलेश शास्त्री ने पिंडदान का महत्त्व और श्राद्धों के प्रकार के बारे में बताते हुए कहा कि...
पिंडदान का महत्त्व
गया में पिंडदान का अलग महत्त्व है। कुछ लोगों में यह गलत धारणा बनी हुई है कि गया श्राद्ध के बाद वार्षिक श्राद्ध आदि करने की आवश्यकता नहीं है, पर यह विचार पूर्ण रूप से गलत है। श्राद्धं न कुरुते मोहात् तस्य रक्तं पिवति ते। ब्रह्मपुराण के अनुसार श्राद्ध का कभी त्याग नहीं करना चाहिए। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि श्राद्ध हमेशा श्रद्धापूर्वक नियमानुसार करने चाहिए।
12 प्रकार के श्राद्ध
भविष्य पुराण में श्राद्ध के 12 प्रकार के बारे में बताया गया है। ये हैं नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि, सपिंडन, पार्वण, गोष्ठी, शुद्धयर्थ, कर्मांग, दैविक, यात्रार्थ और पुष्टयर्थ। कोई भी व्यक्ति नित्य श्राद्ध में जल, दूध, कुशा, जौ, फूल आदि से अपने पितरों को प्रसन्न कर सकता है। पीतल के पात्र में सभी सामग्री मिश्रित कर पीपल के वृक्ष में अर्पण करें। नैमित्तिक श्राद्ध पिता आदि की मृत्यु तिथि के दिन किया जाता है। वहीं सौभाग्य वृद्धि के लिए वृद्धि श्राद्ध किया जाता है। सपिंडन श्राद्ध यानी पिंडों को मिलाना। पितर में ले जाने की प्रक्रिया ही सपिंडन है।
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पितृ पक्ष, अमावस्या या पितरों की मृत्यु की तिथि आदि पर किया जाने वाला श्राद्ध पार्वण श्राद्ध कहलाता है। इसी तरह गोष्ठी श्राद्ध सामूहिक रूप से किए जाते हैं। वहीं शुद्धयर्थ श्राद्ध परिवार की शुद्धता के लिए किया जाता है। यात्रा के उद्देश्य से किया जाने वाला श्राद्ध यात्रार्थ श्राद्ध कहलाता है। पुष्टयर्थ श्राद्ध स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। देवताओं को प्रसन्न करने के उद्देश्य से जो श्राद्ध किया जाता है, उसे दैविक श्राद्ध कहा जाता है।
Published on:
30 Sept 2023 11:51 am