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Chhattisgarh : रहस्यमयी घाघरा मंदिर, जिसे देख पर्यटक रह जाते हैं हैरान

अनोखी स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध प्राचीन संरचना का झुका हुआ स्वरूप करता है आकर्षित, छत्तीसगढ़ के मनेंद्रगढ़- चिरमिरी- भरतपुर जिले में स्थित है ये ऐतिहासिक धरोहर

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Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के मनेंद्रगढ़- चिरमिरी- भरतपुर जिले में स्थित घाघरा मंदिर (Ghaghra Mandir) अपने रहस्यमयी निर्माण और अनोखी स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। बिना किसी जोड़ने वाले पदार्थ के सिर्फ पत्थरों को संतुलित करके बनाई गई इस प्राचीन संरचना का झुका हुआ स्वरूप इसे और भी रोचक बनाता है। छत्तीसगढ़ के इतिहास और वास्तुकला (Architecture) का यह अनमोल रत्न आज भी अपने भीतर कई रहस्यों को समेटे हुए है। सदियों पुराना यह मंदिर किसी चमत्कार से कम नहीं, जो बिना किसी गारा, मिट्टी या चूने के इस्तेमाल के आज भी मजबूती से खड़ा है।

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भूकंप के कारण झुका होगा मंदिर

घाघरा मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण इसकी निर्माण शैली है। इतिहासकार मानते हैं कि यह मंदिर पत्थरों को संतुलित करके इस तरह खड़ा किया गया है कि किसी भी प्रकार की जोड़ने वाली सामग्री की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। यह तकनीक प्राचीन भारतीय वास्तुकला के अद्भुत कौशल को दर्शाती है। इस मंदिर के झुके हुए स्वरूप को लेकर माना जाता है कि किसी भूगर्भीय हलचल या भूकंप (Earthquake) के कारण इसका झुकाव हुआ होगा। घाघरा मंदिर के निर्माणकाल को लेकर विशेषज्ञ एकमत नहीं हैं। कुछ इतिहासकार इसे 10वीं शताब्दी का बताते हैं, तो कुछ इसे बौद्ध कालीन संरचना मानते हैं।

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मंदिर में नहीं है कोई भी मूर्ति

स्थानीय निवासियों का मानना है कि यह एक प्राचीन शिव मंदिर (Shiv Mandir) है, जहां आज भी विशेष अवसरों पर पूजा-अर्चना होती है। मंदिर के भीतर किसी भी मूर्ति का न होना इसके रहस्य को और गहरा करता है। घाघरा मंदिर केवल श्रद्धालुओं का आस्था स्थल ही नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का भी अनमोल प्रतीक है। इस अद्भुत संरचना को देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक और शोधकर्ता आते हैं। पुरातत्वविदों के लिए भी यह मंदिर एक शोध का महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है।

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ऐसे पहुंचा जा सकता है मंदिर तक

घाघरा मंदिर (Ghaghra Temple) तक पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी प्रमुख कस्बा जनकपुर है, जहां से घाघरा गांव आसानी से पहुंचा जा सकता है। जिला मुख्यालय मनेंद्रगढ़ से यहां तक का सफर लगभग 130 किलोमीटर का है। सड़क मार्ग के जरिए इस यात्रा के दौरान छत्तीसगढ़ के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद भी लिया जा सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस मंदिर को उचित पहचान दी जाए, तो यह स्थल धार्मिक और ऐतिहासिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन सकता है।

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