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Pre Budget- रेलवे की स्पीड बढ़ा सकते हैं ये तीन ‘एस’

प्रो.गौरव वल्लभ, शिक्षाविद और आर्थिक मामलों के जानकार

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170 वर्षों की विरासत के साथ भारतीय रेलवे ने दुनिया के चौथे सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क के रूप में अपनी पहचान बनाई है। हाल ही दो बड़ी परियोजनाओं ने नए मानक स्थापित किए हैं और देश का ध्यान आकृष्ट किया है।

170 वर्षों की विरासत के साथ भारतीय रेलवे ने दुनिया के चौथे सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क के रूप में अपनी पहचान बनाई है। हाल ही दो बड़ी परियोजनाओं ने नए मानक स्थापित किए हैं और देश का ध्यान आकृष्ट किया है।


एक फरवरी को आने वाले बजट में रेलवे को भी काफी उम्मीदे हैं। पूरे भारत में ट्रेन से की गई हर यात्रा एक खूबसूरत अनुभूति का अहसास कराती है और लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने और उन्हें एक साथ लाने, जोड़े रखने में बड़ी भूमिका निभाती है। 170 वर्षों की विरासत के साथ भारतीय रेलवे ने दुनिया के चौथे सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क के रूप में अपनी पहचान बनाई है। हाल ही दो बड़ी परियोजनाओं ने नए मानक स्थापित किए हैं और देश का ध्यान आकृष्ट किया है। प्रधानमंत्री ने जम्मू रेल डिवीजन का उद्घाटन किया जो इस क्षेत्र की लंबे समय से लंबित मांग को पूरा करता है और यह सपना छह दशकों में कश्मीर के लिए पहली सीधी ट्रेन सेवा शुरू करने से कुछ पहले ही पूरा हुआ है।


नया जम्मू डिवीजन भारतीय रेलवे का 70वां और उत्तर रेलवे के तहत छठा डिवीजन होगा। यह पहल क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को ताकत देने और निर्बाध कनेक्टिविटी के सपने को साकार पूरा करने के लिए तैयार है। नवनिर्मित साउथ कोस्ट रेलवे जोन के मुख्यालय के लिए उन्होंने जो आधारशिला रखी, वह भी समान रूप से उतनी ही महत्त्वपूर्ण है। भारतीय रेलवे के इस 18वें जोन के मुख्यालय निर्माण के बाद इस पूरे क्षेत्र में कृषि, व्यापार और पर्यटन से संबंधित गतिविधियों का विस्तार होगा जो स्थानीय अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकेगा। साथ ही ये उपलब्धियां परिवहन के साधन, विकास और राष्ट्रीय एकता की दिशा में भारतीय रेलवे की भूमिका को रेखांकित करती हैं।


अर्थशास्त्री बिबेक देबोरॉय की अध्यक्षता वाली 2015 की रेलवे रिफॉम्र्स रिपोर्ट में कई बदलावों की सिफारिश की गई थी। हाल के फैसले इसी रिपोर्ट के अनुरूप हैं। रिपोर्ट में फील्ड ऑफिसर्स, महाप्रबंधकों और मंडल रेल प्रबंधकों को सशक्त बनाने की सिफारिश की गई थी। सरकार ने रेलवे को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए रिपोर्ट के कई सुझावों को क्रियान्वित किया है जिसमें नए डिवीजन और जोन का निर्माण भी शामिल है। इसके अलावा वंदे भारत ट्रेन और कवच सुरक्षा प्रणाली (ट्रेन दुर्घटनाएं रोकने में मदद) जैसी पहल इंटीग्रेटेड टेक्नालॉजी पर फोकस करती हैं। गति शक्ति विश्वविद्यालय की स्थापना और राष्ट्रीय रेल संरक्षण कोष (आरआरएसके) जिसका सृजन 01 अप्रेल 2017 को पांच वर्ष के लिए एक लाख करोड़ रुपए के फंड की प्रतिबद्धता से किया गया था, सुरक्षा चिंताओं को संबोधित करता है। वर्ष 2022-23 में सरकार ने इस कोष में 45,000 करोड़ रुपए के अतिरिक्त समर्थन के साथ आरआरएसके को अगले 5 साल के लिए बढ़ा दिया है।


भारतीय रेल का विकास तेजी से हो रहा है लेकिन अभी शक्तिशाली इंजनों की कमी जैसी चुनौतियां भी हैं जिसके लिए सावधानीपूर्वक नेविगेशन की जरूरत है। मौजूदा उपलब्धियों के लिए जश्न मनाते समय, गति बनाए रखने और संभावित बाधाओं की पहचान करना भी आवश्यक है। तेज गति से बढऩे के लिए संभावित बाधाओं पर एकसाथ काम करने की जरूरत है। ये कार्ययोजना हैं तीन ‘एस’ रणनीति यानी शेयर और स्पीड बढ़ाना और सर्विस चार्जेज में कमी लाना। सबसे पहले और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तो यह है कि रेलवे को सर्विस चार्जेज (लॉजिस्टिक कॉस्ट्स) में कमी लानी चाहिए। 2022-23 के इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार, भारत में मौजूदा लॉजिस्टिक कॉस्ट्स वैश्विक बेंचमार्क 8त्न के मुकाबले जीडीपी के 14-18त्न के बीच है। जबकि भारत ने विश्वबैंक के लॉजिस्टिक्स परफॉर्मेंस इंडेक्स की रैंकिंग में बेहतर प्रदर्शन किया है। 2023 के लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक में भारत 38वें स्थान पर रहा जबकि 2018 में 44वें और 2014 में 54वें स्थान पर था। लेकिन अभी भी लगभग 26 लाख करोड़ रुपए का प्रतिस्पर्धी अंतर बना हुआ है। लेकिन पिछले सालों में अंतर काफी कम भी हुआ है।
भारतीय रेलवे ने ट्रैक विद्युतीकरण, डिजिटल लॉजिस्टिक्स सिस्टम में सुधार और माल ढुलाई प्रबंधन में वृद्धि के जरिए इसमें सराहनीय प्रगति की है। इसी धुरी पर आगे बढ़ते हुए लॉजिस्टिक्स लागत को और कम करने के लिए समयबद्ध कार्ययोजना की जरूरत है। मुख्य उपायों में थोक वस्तुओं के परिवहन में रेल की हिस्सेदारी बढ़ाना, टर्मिनल क्षमताओं का विस्तार और अंतिम-छोर तक कनेक्टिविटी को सुनिश्चित करना शामिल है।

माल ढुलाई से जुड़े ग्राहकों के संरक्षण के लिए नीति बनाने- जैसे उन्हें क्रॉस-सब्सिडी से बचाने और परिचालन लागत दक्षता में सुधार भी, वैश्विक मानक हासिल करने में महत्त्वपूर्ण होगा। ट्रेनों की औसत गति- यात्री और माल ढुलाई दोनों में, एक ऐसा दिशासूचक यंत्र है जहां रेलवे को कुछ सफलता हासिल हुई है और आगे भी बड़े सुधार की संभावना है। भारत में सुपरफास्ट ट्रेनों की औसतन गति 55 किमी प्रतिघंटे है जो वैश्विक बेंचमार्क से काफी कम है। टर्मिनल इंफ्रास्ट्रक्चर और क्षमता पर विशेष ध्यान देकर यह स्पीड तुरंत ही 7-10 किमी तक प्रतिघंटे बढ़ाई जा सकती है। दूसरी ओर मालगाडिय़ों की औसत गति आधिकारिक रूप से 25 किमी/प्रतिघंटे दर्ज की गई है, हालांकि ग्राहकों को अक्सर अनुभव होता है कि देरी समेत अन्य समस्याओं के कारण यह गति कम 13-15 किमी/प्रतिघंटे ही रह जाती है। परिचालन दक्षता, परिसंपत्ति का रखरखाव प्रबंधन, टर्मिनलों पर क्षमता बढ़ाकर अवरोधों को कम करने और स्पीड बढ़ाने के लिए विशेष सेक्शन पर रणनीतिक कोशिश की जानी चाहिए। रेलवे की लॉजिस्टिक क्षेत्र में 27त्न हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए रणनीतिक कदम जरूरी हैं।


माल ढुलाई टर्मिनलों के आधुनिकीकरण और नेटवर्क विस्तार में रेलवे ने सराहनीय काम किया है, लेकिन और प्रयासों की आवश्यकता है। सडक़ों की तुलना में रेल किराया किफायती होना चाहिए। टर्मिनलों में निवेश और ग्राहक-अनुकूल नीतियां अपनाकर रेलवे लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में बड़ा योगदान दे सकता है। ये सुधार रेल परिवहन को लॉजिस्टिक्स की आधारशिला बनाते हैं, आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हैं। सुरक्षा, बुनियादी ढांचे व आधुनिक ट्रेनों ने रेलवे को कनेक्टिविटी का प्रमुख स्रोत बनाया है। 3 एस रणनीति (तेज गति, सेवा की गुणवत्ता और कम लागत) पर ध्यान केंद्रित करते हुए रेलवे को अपनी हिस्सेदारी बढ़ानी चाहिए। यह अभियान लोगों और देश की आर्थिक आकांक्षाओं को नई ऊंचाई पर ले जा सकता है।