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करण ने तय किया ठेले से ऑटोमोबाइल कंपनी में इंजीनियर तक का सफर, सिर पर छत तक नहीं थी नसीब

Vegetable's Vendor Son Became Engineer : ठेले पर फल बेचने वाले के बेटे ने एक नई इबारत लिख दी। ठेले वाले का बेटा करण अब इंजीनियर बन गया है। कभी वह भी अपने पिता के साथ ठेले पर फल बेचता था। आइए जानते हैं करण की कहानी...

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AI Generated Symbolic Image

प्रयागराज : प्रयागराज के रहने वाले करण अब ऑटोमोबाइल इंजीनियर बन गए हैं। करण का सफर ठेले से शुरू हुआ था। वह पिता के साथ ठेले पर फल बेचते थे। कुंभ मेले के दौरान कुछ परिस्थितियां ऐसी बनी कि सिर ढकने को छत तक नसीब नहीं थी, जब छत भी चली गई थी, तब भी हार नहीं मानने वाला करण आज संघर्ष की मिसाल बन गया है।

करण ने पढ़ाई के साथ ठेली संभाली और बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया ताकि खर्च निकाल सके। प्रयागराज का 22 वर्षीय करण आज उन युवाओं के लिए प्रेरणा बन गया है जो सीमित साधनों में भी सपने देखने का साहस रखते हैं। बेहद गरीब परिवार से आने वाले करण ने सिर से छत छिन जाने के बाद भी हौसले कमजोर नहीं होने दिए। हालातों से लड़ता करण अब एक अच्छी कंपनी में बतौर क्वालिटी इंजीनियर के पद पर काम करेगा।

2019 के कुंभ मेले में हटा दी गई थी करण की झोपड़ी

दरअसल, 2019 में कुंभ मेले की तैयारी में आसपास की झुग्गियों को हटाया जा रहा था, जिनमें करण की झोपड़ी को भी हटाया गया था। करण के पिता रामू एक फल की रेहड़ी लगाने का काम करते हैं। रहने का ठिकाना नहीं होने पर पूरा परिवार टूट गया था, लेकिन करण नहीं। करण की मां रीता भी एक निजी स्कूल में आया का काम करती थीं, जिन्हें महज 2000 रुपये मिलते थे। आज 2.5 लाख रुपये वार्षिक पैकेज पाने वाले करण का कहना है 'अगर हिम्मत और नीयत सच्ची हो, तो गरीबी भी मंज़िल पाने से नहीं रोक सकती।'

12th के बाद बच्चों को पढ़ाई ट्यूशन

करण ने 12वीं कक्षा में 75 प्रतिशत अंक लाकर अपने हौसलों को एक नई पहचान दी। उसी वर्ष परीक्षा में भी अच्छा प्रदर्शन किया और प्रयागराज के इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड रूरल टेक्नोलॉजी में इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया। लेकिन यहां भी सबसे बड़ा सवाल आर्थिक तंगी का था। ऐसे में ‘शुरुआत फाउंडेशन’ नामक संस्था ने करण की पूरी पढ़ाई की जिम्मेदारी उठाई। करण ने अपने अन्य खर्चों के लिए बच्चों को ट्यूशन कराया ताकि कुछ खर्च निकाल सके। हालांकि आर्थिक तंगी होने पर आगे पढ़ाई के लिए परिवार ने कई बार मना भी किया। परिवार ने कहा था कि पढ़ाई छोड़कर नौकरी पर ध्यान दो। लेकिन करण के हौसले मजबूत थे और आखिरकार फाउंडेशन व शिक्षकों के सहयोग से करण ने अपनी पढ़ाई पूरी की और आज पुणे की एक ऑटोमोबाइल इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी में क्वालिटी इंजीनियर के रूप में काम कर रहा है।