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High Courts judges Vacancy: देश के HC में 29% जजों के पद खाली, इलाहाबाद में सबसे ज्यादा वैकेंसी, सिर्फ 2 हाईकोर्ट में पूरा स्टाफ

High Court Judges: देश के हाई कोर्ट में जजों के पद काफी संख्या में खाली हैं। 25 हाईकोर्ट में से सिर्फ दो ही उच्च न्यायालय हैं, जहां सभी स्वीकृत पद भरे जा चुके हैं। इलाहाबाद में सबसे ज्यादा पद खाली हैं। पढ़िए पूरी रिपोर्ट।

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Judges post vacant in High Courts

देश के हाई कोर्ट में जजों के पद काफी संख्या में खाली हैं। (Patrika)

High Courts grappling with 330 vacant judge positions: न्याय विभाग (Department of Justice) के 1 सितम्बर, 2025 तक के आंकड़ों के अनुसार, भारत भर के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के कुल स्वीकृत पदों 1,122 में से 330 रिक्त पद खाली हैं।

हाईकोर्ट में न्यायाधीशों के पद खाली होने के चलते मामलों के फैसलों में देरी हो रही है। न्यायाधीशों के पद खाली हाने के कारण लाखों वादी प्रभावित हो रहे हैं।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जजों के सबसे ज्यादा पद खाली

Allahabad tops with 76 vacancies: इलाहाबाद उच्च न्यायालय में सबसे ज़्यादा 76 रिक्तियां हैं, जिनमें 35 स्थायी और 41 अतिरिक्त न्यायाधीश शामिल हैं। अन्य प्रमुख उच्च न्यायालयों में बॉम्बे (26), पंजाब और हरियाणा (25), कलकत्ता (24), मद्रास (19), पटना (18), दिल्ली (16), और राजस्थान (7) न्यायाधीशों के पद खाली हैं। उत्तराखंड में दो और त्रिपुरा में एक न्यायाधीश का पद खाली है। 25 राज्यों में से सिर्फ सिक्किम और मेघालय के उच्च न्यायालय ही अपनी पूर्ण स्वीकृत क्षमता पर कार्य कर रहे हैं।

हाईकोर्ट्स में 67 लाख, सुप्रीम कोर्ट में 60 हजार केस पेंडिंग

67 lakhs cases pending at High Courts: राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (NJDG) के आंकड़ों के अनुसार, उच्च न्यायालयों में 67 लाख से ज़्यादा और सर्वोच्च न्यायालय में 60,000 से ज़्यादा मामले (60 thousands cases pending at Supreme Court) लंबित हैं। सर्वोच्च न्यायालय में भारत के मुख्य न्यायाधीश सहित 34 न्यायाधीशों की पूर्ण क्षमता के साथ काम करने के बावजूद वहां हजारों मामले लंबित चल रहे हैं।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

विशेषज्ञों का कहना है कि इस कमी के लिए कॉलेजियम और सरकार दोनों स्तरों पर नियुक्ति प्रक्रिया में देरी को जिम्मेदार मानते हैं, क्योंकि बार-बार की गई सिफारिशों को कभी-कभी कार्यकारी प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है या महीनों तक उन पर ध्यान नहीं दिया जाता है।

लंबित मामलों में इसलिए होती है देरी

उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों और कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि उच्च न्यायालयों में बड़ी संख्या में रिक्तियां न्याय प्रणाली के लिए एक बड़ी बाधा है। इसके चलते मामलों में फैसले सुनाने में देरी होती है और लंबित मामलों की संख्या बढ़ती है।

'जजों के पद खाली रहने से वादियों को उठाना पड़ता है नुकसान'

न्यू इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक पटना उच्च न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश और कानूनी विशेषज्ञ न्यायमूर्ति अंजना प्रकाश ने कहा कि उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के पदों को भरने में लंबित मामलों के कारण मामलों के निपटान में परेशानी बढ़ रही है और परिणामस्वरूप वादियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।

उन्होंने कहा, "उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के पदों को भरने का काम शीघ्रता से किया जाना चाहिए। जब ​​तक न्यायपालिका और केंद्र इस मुद्दे पर निर्णय और विचार-विमर्श नहीं करते तब तक मामलों के निपटान की दर में वृद्धि नहीं होगी, जिसका अंततः राज्य के हाई कोर्ट के वादियों पर प्रभाव पड़ेगा।"

इन रिक्तियों में 161 स्थायी पद और 169 अतिरिक्त (अस्थायी) पद शामिल हैं, जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा अस्थायी कार्यभार वृद्धि से निपटने के लिए अधिकतम दो वर्षों के लिए नियुक्त किया जाएगा।

कैसे होती है न्यायाधीशों की नियुक्ति?

उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू करते हैं। वे केंद्र सरकार को नामों की एक सूची की सिफारिश करते हैं, जो उस पर सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम से सलाह लेती है। कॉलेजियम द्वारा अपनी सिफारिशें दिए जाने के बाद केंद्र नियुक्तियों को अधिसूचित करता है।


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