
धान से बिजली तक…! 25 साल में छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक यात्रा, जानिए 33 जिलों के गठन की पूरी कहानी...(photo-patrika)
Chhattisgarh Special Story: छत्तीसगढ़ राज्य ने अपनी स्थापना के 25 वर्षों में विकास की लंबी यात्रा तय की है, लेकिन जिलों के गठन का इतिहास इससे भी पुराना है। वर्ष 1854 से शुरू हुई यह प्रशासनिक यात्रा आज 33 जिलों तक पहुंच चुकी है। यह केवल प्रशासनिक पुनर्गठन की कहानी नहीं, बल्कि जनसुविधाओं के विस्तार, क्षेत्रीय विकास और सुशासन की दिशा में किए गए सतत प्रयासों का परिणाम है।
सबसे पहले 1854 से 1857 के बीच प्रदेश में पहला जिला बना, जबकि रायपुर जिला 1861-62 में अस्तित्व में आया। इसके बाद 1 जनवरी 1906 को बिलासपुर जिला बना और प्रदेश में कुल तीन जिले हो गए। आजादी के बाद 1 जनवरी 1948 को दुर्ग जिला बना। इसी दौर में सरगुजा, रायगढ़ और बस्तर (मुख्यालय जगदलपुर) जिलों का गठन हुआ।
26 जनवरी 1973 को बस्तर जिला औपचारिक रूप से स्थापित किया गया, जिससे कुल जिलों की संख्या सात हो गई। 1 मई 1998 को राजनांदगांव नया जिला बना, जिसके साथ कुल जिले 11 हो गए। इसी वर्ष 25 मई को कोरबा, जांजगीर-चांपा, जशपुर और कोरिया को जिला का दर्जा मिला।
6 जुलाई 1998 को महासमुंद, धमतरी, कांकेर और कबीरधाम (कवर्धा) जिलों का गठन हुआ, जिससे कुल जिले 16 हो गए।
इसके बाद 1 मई 2007 को दंतेवाड़ा को दो हिस्सों में बांटकर नारायणपुर और बीजापुर जिलों का गठन किया गया, जिससे संख्या बढ़कर 18 हुई।
जनवरी 2012 में एक साथ 9 नए जिले बने - बालोद, गरियाबंद, मुंगेली, बेमेतरा, सुकमा, बलरामपुर-रामानुजगंज, बलौदाबाजार-भाटापारा, सूरजपुर और कोण्डागांव, जिससे कुल जिले 27 हो गए।
गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाही (2 सितंबर),
मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी (2 सितंबर),
सारंगढ़-बिलाईगढ़ (3 सितंबर),
खैरागढ़-छुईखदान-गंडई (3 सितंबर),
मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर (9 सितंबर),
और सक्ती (9 सितंबर) —
जिससे छत्तीसगढ़ के कुल जिलों की संख्या 33 हो गई।
छत्तीसगढ़ को ‘धान का कटोरा’ भी कहा जाता है, क्योंकि यहां की उपजाऊ भूमि और अनुकूल जलवायु धान (चावल) की खेती के लिए अत्यंत उपयुक्त है। राज्य के अधिकांश हिस्से में खेती का प्रमुख फसल धान ही है। छत्तीसगढ़ की पहचान सदियों से कृषि प्रधान राज्य के रूप में रही है। यहां के किसान पारंपरिक और आधुनिक दोनों तरीकों से धान की खेती करते हैं। प्रदेश में करीब 70 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है, और इसमें से अधिकांश लोग धान उत्पादन से जुड़े हैं।
प्रदेश के रायपुर, धमतरी, दुर्ग, बलौदाबाजार, बेमेतरा, महासमुंद, कोरबा, और जांजगीर-चांपा जैसे जिलों में बड़े पैमाने पर धान की खेती होती है। यही कारण है कि राज्य की अर्थव्यवस्था में कृषि, विशेषकर धान उत्पादन, की अहम भूमिका है। धान उत्पादन में आत्मनिर्भरता के साथ-साथ छत्तीसगढ़ अब देश के अन्य राज्यों को भी चावल की आपूर्ति करता है।
धान के कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ की बिजली की चमक से सिर्फ हमारे गाओं शहर ही नहीं बल्कि देश के कई रोशन हो रहे है। बस्तर के सुदूर आदिवासी अंचलों से लेकर सरगुजा के दुगर्म पहाड़ी इलाके भी बिजली की पहुंच के काफी भीतर है। रायपुर में पहली बार बिजली रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग जैसे बड़े शहरों में नहीं बल्कि अंबिकापुर शहर में 1915 को पहुंची थी। छत्तीसगढ़ अब 25 वर्ष का युवा हो चूका है।
दिलचस्प बात यह है कि रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग जैसे बड़े शहरों से पहले छत्तीसगढ़ में पहली बार बिजली वर्ष 1915 में अंबिकापुर शहर में पहुंची थी। यह राज्य के विद्युत विकास इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय रहा।
आज 25 वर्ष का यह युवा छत्तीसगढ़ ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन चुका है। थर्मल, हाइड्रो और सौर ऊर्जा परियोजनाओं के माध्यम से प्रदेश न केवल अपनी जरूरतें पूरी कर रहा है, बल्कि अन्य राज्यों को भी बिजली आपूर्ति कर रहा है। यह उपलब्धि छत्तीसगढ़ की विकास यात्रा का उज्ज्वल प्रतीक है।
बिजली उत्पादन को लेकर राज्य में सरकारी उपक्रमों व निजी क्षेत्र की कंपनियों ने बड़े निवेश की योजना बनाई है। इसमें एनटीपीसी ने परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में 80 हजार करोड़ रुपए की लागत से 4200 मेगावॉट, अदाणी पावर का कोरबा, रायगढ़ और रायपुर में 1600-1600 मेगावॉट के तीन थर्मल पावर प्लांट लगाने की योजना है। एनटीपीसी व सीएसपीडीसीएल मिलकर 41120 करोड़ रुपए की लागत से 4500 मेगावॉट बिजली उत्पादन करेंगे।
वित्तीय वर्ष 20250-26 में विद्युत नियामक आयोग ने छत्तीसगढ़ में घरेलू, औद्योगिक, व्यावसायिक व अन्य क्षेत्रों से 25 हजार 636 करोड़ रुपए के राजस्व का लक्ष्य रखा है। छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण कंपनी ने लाइन लॉस और घाटे को कम करने के लिए नवाचार के जरिए स्मार्ट मीटर से लेकर अन्य रणनीति अपनाई है। साथ ही सोलर से पावर ग्रिड के माध्यम से बिजली उत्पादन बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है।
बिजली के क्षेत्र में बीते ढाई दशक में बड़े बदलाव हुए हैं। वर्ष 2000 की अपेक्षा बिजली उत्पादन के मामले में आज छत्तीसगढ़ पांच गुना अधिक मजबूत हुआ है, वहीं विद्युत उपभोक्ताओं की संया 300 प्रतिशत से अधिक बढ़ी है। विजन-2047 की दिशा में हमने अगले 10 वर्षों में 32,000 मेगावॉट अतिरिक्त बिजली उत्पादन के लिए तैयारी शुरू कर दी है। हमारी कुल उत्पादन क्षमता में 45 फीसदी हरित ऊर्जा की हिस्सेदारी सुनिश्चित करने का निर्णय लिया है। -भीम सिंह कंवर, प्रबंध निदेशक, छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण कंपनी
छत्तीसगढ़ राज्य अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण व विद्युत विभाग ने मिलकर प्रदेश में वर्ष 2027 तक 1.30 लाख घरों में सोलर पावर प्लांट लगाने का लक्ष्य रखा है। अधिकारियों के मुताबिक इससे पहले सौर सुजला, सौर सामुदायिक सिंचाई योजना, सोलर पेयजल योजना, शाला भवन-स्वास्थ्य केंद्र से लेकर गांवों के विद्युतीकरण, सोलर हाई मास्क लाइट जैसी योजनाओं के जरिए सोलर प्लांट लगाया गया है। पीएम कुसुम योजना के अंतर्गत 300 मेगावॉट से अधिक सौर ऊर्जा उत्पादन तय किया गया है।
Updated on:
01 Nov 2025 03:30 pm
Published on:
01 Nov 2025 03:27 pm
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