
कोविड-19 से संक्रमित गर्भवती महिलाओं पर रिसर्च। (फोटो डिजाइन पत्रिका)
Covid in Pregnancy Tied to Autism: साल 2019 के आखिर में कोविड-19 ने पूरी दुनिया को घर में बंद रहने पर मजबूर कर दिया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसको वैश्विक महामारी (पेंडेमिक) घोषित किया। एक अध्यन में यह बात सामने आई है कि गर्भावस्था के दौरान जो महिलाएं कोविड-19 से संक्रमित थीं, उनके बच्चों में ऑटिज्म (autism) का ज्यादा खतरा देखा गया है। इसके साथ ही उन बच्चों में न्यूरोलॉजिकल समस्याएं जैसे बोलने में देरी होना और शारीरिक गतिविधियों पर स्वैच्छिक नियंत्रण करने की प्रक्रिया सम्बन्धी समस्याओं की संभावनाएं अधिक होती हैं।
मैसाचुसेट्स में 18,100 से अधिक बच्चों पर किये गए विश्लेषण को ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी जर्नल में प्रकाशित किया गया है। बता दें कि यह अब तक हुए सबसे बड़े अध्ययनों में से एक अध्ययन है। इसमें उन बच्चों की जांच हुई जो उन महिलाओं की कोख से पैदा हुए थे जिन्होंने कोविड-19 के संक्रमण की शुरुआत से लेकर साल 2021 तक झेला था। यह कोविड का वो दौर था जब कोरोना की वैक्सीन व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं थीं।
इन शोधकर्ताओं ने इस बात पर भी जोर दिया है कि यह एक ऑब्जर्वेशनल स्टडी है। इसलिए इसके आधार पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि इन बच्चों में पाए गए लक्षणों का कारण कोविड 19 ही है, बल्कि यह मां में हुए संक्रमण और बच्चों में पाए गए लक्षणों के बीच एक संबंध का संकेत है। वहीं, मास जनरल अस्पताल की फिजिशियन साइंटिस्ट और हॉर्वर्ड मेडिकल स्कूलमें प्रसूति एवं स्त्री रोग की सहयोगी प्रोफेसर एंड्रिया जी. एडलो का कहना है भले ही ऐसी स्थितियों का जोखिम महिलाओं में बढ़ा हुआ है, लेकिन अभी भी यह बहुत कम है।
पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि अध्ययन के निष्कर्ष गर्भावस्था के दौरान कोविड-19 टीकाकरण के महत्व को दिखाते हैं। उनका यह भी कहना है कि प्रेग्नेंट महिलाओं की सुरक्षा न केवल उनकी बल्कि उनके बच्चों की सेहत के लिए भी बहुत जरूरी है। इस तरह के परिणाम तब सामने आए हैं जब कि कोरोना वायरस वैक्सीनेशन की दर कम हुई है।
काफी समय से कोरोना की वैक्सीन पर सवाल उठा रहे हेल्थ सेकेट्री रॉबर्ट एफ. कैनेडी जूनियर, ने इसी साल घोषणा की थी कि सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) आने वाले समय में स्वस्थ गर्भवती महिलाओं के लिए कोरोना वायरस वैक्सीन की सिफारिश नहीं करेगा। हेल्थ सेकेट्री के इस बयान की पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट्स ने आलोचना भी की। वहीं, अमेरिकन कॉलेज ऑफ ऑब्स्टेट्रिशियंस एंड गायनेकोलॉजिस्ट्स अब भी इस वैक्सीनेशन की तरफदारी करता है, और इस ऑर्गनाइजेशन के ऑफिसर्स कहते हैं कि अमेरिका में रहने वाले सभी व्यक्तियों को किसी भी साइड इफेक्ट की परवाह किये बिना कोरोनावायरस वैक्सीन लगवाने के बारे में अपने डॉक्टर से सलाह मशवरा करना चाहिए।
बता दें कि ट्रम्प सरकार ने कोरोना की वैक्सीन की नीतियों की जांच को तेज कर दिया है और दावा किया है कि प्रेग्नेंसी के दौरान टायलनॉल लेने से ऑटिज्म का खतरा बढ़ सकता है। हालांकि, कई मेडिकल एक्सपर्ट्स के अनुसार, प्रेग्नेंसी के दौरान एसिटामिनोफेन जो टायलनॉल का ही एक एक्टिव इंग्रीडिएंट है से ऑटिज्म होने का कोई साइंटिफिक रिकॉर्ड नहीं है। इसके साथ ही डॉक्टर्स तो ये भी कहते हैं कि गर्भवती महिलाओं को बुखार होना भी उनके होने वाले बच्चे के लिए हानिकारक होता है।
जानकारी के लिए बता दें कि इस नई स्टडी में रिसर्चर्स ने 1 मार्च 2020 से 31 मई 2021 के बीच के मेडिकल रिकार्ड्स का अध्यन किया, जिसमें सामने आया कि गर्भावस्था के दौरान कोरोना वायरस से संक्रमित 861 महिलाओं में से 140 महिलाओं ने ऐसे बच्चों को जन्म दिया जिनमें तीन साल की उम्र तक न्यूरोडेवलपमेंट संबंधी डायगोनिसिस किए गए।
यह रिसर्च प्रेग्नेंसी के दौरान वायरल इंफेक्शन और भ्रूण स्वास्थ्य पर उसके प्रभाव से संबंधित अध्ययनों पर आधारित है। 2015 और 2016 के दौरान जब लैटिन अमेरिका में जीका वायरस फैल रहा था, उस समय विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा की थी। इसका संबंध माइक्रोसेफली से पीड़ित सैकड़ों बच्चों के जन्म से था, यह एक ऐसी कंडीशन हैं जिसमें बच्चे का सिर असामान्य रूप से छोटा और मस्तिष्क अविकसित होता है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इन्फ्लूएंजा और कोविड-19 जैसे वायरस का प्लेसेंटा की सतह को पार करना मुश्किल है, लेकिन मां के इम्यूनिटी सिस्टम से भ्रूण पर प्रभाव पड़ सकता है। यह प्रभाव सूजन के कारण हो सकता है, जो मस्तिष्क के न्यूरॉन्स के विकास को प्रभावित करता है।
डॉ. एंड्रिया एडलो के अनुसार, भ्रूण के इम्युनिटी सिस्टम के ज्यादा एक्टिव होने से दिमाग के अलावा शरीर के दूसरे अंगों जैसे लिवर, हृदय और टिशूज पर भी असर पड़ सकता है, जिससे आगे चलकर शरीर में मोटापा या मेटाबॉलिक परेशानियां पैदा हो सकती हैं।
रिसर्चर्स के अनुसार, इस अध्ययन में मोटापा, हाई ब्लूडप्रेशर, और प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली डायबिटिज जैसे करोड़ों को शामिल नहीं किया गया, ताकि शोध के परिणामों पर को प्रभाव न पड़े।
(वाशिंगटन पोस्ट का यह आलेख पत्रिका.कॉम पर दोनों समूहों के बीच विशेष अनुबंध के तहत पोस्ट किया गया है।)
Published on:
01 Nov 2025 06:30 am
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