
शिवानंद तिवारी, लालू यादव, शांतनु यादव और शरद यादव
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की राजनीतिक सरगर्मी के बीच आरजेडी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी का एक फेसबुक पोस्ट सुर्खियों में है। उन्होंने दिवंगत समाजवादी नेता शरद यादव के बेटे शांतनु यादव को टिकट न मिलने पर गहरी पीड़ा व्यक्त की है। तिवारी ने अपने पोस्ट में शरद यादव के साथ अपने पुराने संबंधों को याद करते हुए लिखा कि “अगर लालू जी शांतनु को उम्मीदवार बनाते, तो भले वो जीतते या हारते, लेकिन लालू जी शरद जी के ऋण से मुक्त हो जाते।”
शिवानंद तिवारी ने लिखा, “शरद यादव का बेटा चुनाव नहीं लड़ पाया, बहुत पीड़ा हुई। शरद जी से पहली मुलाकात 1969 में हुई थी, जब हम समाजवादी आंदोलन के शुरुआती दौर में थे। तब से लेकर राजनीति के हर मोड़ पर हमने उन्हें एक प्रतिबद्ध समाजवादी नेता के रूप में देखा।” उन्होंने आगे लिखा कि शरद यादव ने समाजवादी राजनीति को नई दिशा दी और बिहार में लालू प्रसाद यादव जैसे नेताओं के उदय में उनकी बड़ी भूमिका रही। तिवारी ने कहा, “कर्पूरी जी और तिवारी जी की पीढ़ी के बाद जो दो नेता समाजवादी धारा में उभरे, उनमें शरद जी का योगदान बहुत बड़ा था। लालू जी की राजनीति में भी उनका प्रभाव गहरा था।”
अपने पोस्ट में तिवारी ने अप्रत्यक्ष रूप से आरजेडी नेतृत्व पर नाराजगी भी जताई। उन्होंने लिखा, “शरद जी के बेटे शांतनु को अगर महागठबंधन की ओर से उम्मीदवार बनाया गया होता, तो शायद वो जीत नहीं पाते। लेकिन लालू जी शरद जी के प्रति अपने ऋण से मुक्त हो जाते।” उन्होंने बताया कि शरद यादव ने मधेपुरा को अपना राजनीतिक घर बना लिया था और वहां उन्होंने खुद की जमीन लेकर एक घर भी बनाया था। तिवारी ने लिखा, “शरद जी के परिवार की इच्छा थी कि उनके बेटे शांतनु को मधेपुरा से चुनाव लड़ने का अवसर दिया जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आज जब मैंने उनकी पत्नी रेखा जी से बात की, तो वह बेहद दुखी थीं।”
शिवानंद तिवारी ने शरद यादव को याद करते हुए भावुक लहजे में लिखा, “शरद जी अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका समाजवादी आदर्श, उनका संघर्ष और जनता के प्रति समर्पण आने वाली पीढ़ियों के लिए एक उदाहरण रहेगा। आज अगर वो होते, तो इस चुनाव को बहुत अलग अंदाज़ में देखते।”
शिवानंद तिवारी ने लिखा, “साल 1969 की बात है। उस समय संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का राष्ट्रीय सम्मेलन जबलपुर में आयोजित हुआ था। संयोग से उसी वर्ष मैंने पुरी के शंकराचार्य के खिलाफ ‘छुआछूत विरोधी क़ानून’ के तहत पटना में एक मुकदमा दायर किया था। उस मुकदमे की वजह से मैं उस दौर में सुर्खियों में था। पार्टी ने मुझे सम्मेलन का प्रतिनिधि (डेलिगेट) बनाया था।
सम्मेलन से ठीक एक-दो दिन पहले ही उस केस की तारीख पड़ी थी। मेरे वकील ने जबलपुर सम्मेलन में शामिल होने का हवाला देते हुए अदालत से अगली तारीख ले ली थी। वह मुकदमा राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया था। उसकी हर गतिविधि की खबर अखबारों में छप रही थी। जब मैं जबलपुर पहुंचा, तो वहां के एक अखबार ने शीर्षक छापा, ‘शिवानंद तिवारी जबलपुर में।’
उसी सम्मेलन में मेरी पहली मुलाकात शरद यादव जी से हुई। शरद जी उस वक्त जबलपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज छात्रसंघ के अध्यक्ष थे और सम्मेलन में वालंटियर के रूप में काम कर रहे थे। खबर पढ़कर उन्होंने मुझे ढूंढ निकाला और अपने कॉलेज में सभा करने का न्योता दिया। हालांकि उस समय मैं नहीं जा सका। लेकिन वहीं से हमारे बीच पहचान बनी, जो आगे चलकर लंबे राजनीतिक संबंध में बदल गई। उस मुलाकात के बाद गंगा में बहुत पानी बह चुका है। शरद जी समाजवादी राजनीति के एक बड़े नेता के रूप में उभरे और उन्होंने देश की राजनीति में अपनी गहरी छाप छोड़ी।”
Published on:
20 Oct 2025 10:02 am
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