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Exclusive: ‘उरी’ फेम धैर्य करवा कैसे बने डेटा एनालिस्ट से एक्टर, करियर और मां को लेकर भी की बात

Dhairya Karwa Exclusive: धैर्य करवा ने हाल ही में रिलीज हुई सिरीज 'ग्यारह ग्यारह' का एक्सपीरियंस शेयर किया है। एक्टर ने करियर से लेकर लाइ तक के स्ट्रगल के बारे में बात की है।

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मुंबई

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Sep 28, 2024

Dhairya Karwa Exclusive

Dhairya Karwa Exclusive

Dhairya Karwa Exclusive: धैर्य करवा एक भारतीय मॉडल और एक्टर है धैर्य ने अपने करियर की शुरुआत 'उरी:दा सरजिकल स्ट्राइक' फिल्म से की थी जिस में धैर्य करवा ने कप्तान संतराम सिंह की भूमिका निभाई थी। वह कबीर खान द्वारा निर्देशित फिल्म '83' में रवि शास्त्री जी की भूमिका में नजर आये। हाल में जी-5 पर रिलीज 'ग्याहर-ग्यारह' में उनके काम को काफी सराहा गया है। धैर्य ने अपने कॅरियर को लेकर पत्रिका से खास बात की।

सीरीज ‘ग्यारह ग्यारह’ में काम करने का कैसा रहा एक्सपीरियंस?

सीरीज 'ग्याहर-ग्यारह' को ऑडियंस और क्रिटिक्स से अच्छे रिव्यू मिलें है। 'ग्यारह ग्यारह' में मेरा शौर्य का किरदार रहा है। ये एक ऐसा पार्ट है जिसका मेरे कॅरियर में बेसब्री से इंतजार रहा है क्योंकि ये एक ऐसा पार्ट रहा है जहां मैं हीरोइक रोल प्ले कर रहा हूं। हर एक्टर चाहता है कि आप एक यूनिक स्टोरी के पार्ट हो। इस सीरीज के क्राइम थ्रिलर वर्ड में एक मिस्टीरियस वॉकी-टॉकी के थ्रू दो पुलिस मैन आपस में कनेक्ट कर रहे हैं और केस सॉल्व कर रहे हैं। इस सीरीज में मेरे डबल रोल काफी मजेदार और चैलेंजिंग थे। इस सीरीज का मेरा मजेदार एक्सपीरियंस रहा है।

'ग्यारह ग्यारह' आपकी पहली वेब सीरीज है, इसमें कास्ट करने के लिए आपको कैसे अप्रोच किया गया?

'ग्यारह ग्यारह' सीरीज के लिए मैंने प्रॉपर ऑडिशन दिया था। प्रोड्यूसर गुनीत ने हमें बुलाया था और कहानी पढ़ाई थी। उमेश बिस्ट ने मेरी ऑडिशन लिया था। कुछ राउंडस के ऑडिशन हुए थे उसके बाद उमेश सर को लगा था कि 'शौर्य के लिए धैर्य' ठीक रहेंगे। ऑडिशन ही मेरी जर्नी रही है क्योंकि मैं जयपुर से हूं और बॉम्बे गया पर वहां कोई कनेक्शन ही नहीं था जिससे मुझे काम मिले । शुरुआत में लगता है कि कुछ अच्छा काम करने के बाद हमें ऑफर्स आएंगे लेकिन ऐसा नहीं होता। ऑडिशन का प्रोसेश बहुत ही रिवॉर्डिंग प्रोसेस है जिसमें आप अपने मेरिट पर सेलेक्ट होते हैं। इसके साथ ही डायरेक्टर भी श्योर रहते हैं क्योंकि उनको पता रहता है कि उन्होंने ऑडिशन करके किसी एक्टर को

'ग्यारह ग्यारह' को शूटिंग के दौरान के खास इंसीडेंस? 

फरवरी में ठंड के समय में वाटरफॉल के किनारे शूट हो रहा था। उस समय टेंपरेचर -1 डिग्री था। रोने वाले सीन का शूट चल रहा था। इस सीन को शूट करने में आधा काम को तो मौसम ने ही कर दिया था क्योंकि इतनी ठंड थी जिसकी वजह से कंपकपी हो रही थी लेकिन उस इमोशन में आना मेरे लिए बड़ा चैलेंजिंग था। इमोशन में आने के लिए थोड़ा भागते थे, हीट में रहते थे अपनी बॉडी को गरम करते थे इसके बाद इमोशनल सीन शूट करते थे। ऐसे सीन शूट करने के बाद हम डायरेक्टर के साथ बैठकर खूब हंसते थे।

"करियर में अपका काम कभी भी वेस्ट नहीं जाता है"

मैनें अपनी जर्नी से देखा है कि काम से काम जरूर मिलता है शायद डायरेक्टली न मिले। मैं अपनी तीसरी फिल्म 'गहराइयां' के लिए सेलेक्ट हो रहा था इसके डायरेक्टर शकु न बत्रा ने 'उरी- द सर्जिकल स्ट्राइक' के एडिटर और डायरेक्टर से मेरे एक्टिंग का फीडबैक लिया था। मेरा फीडबैक अच्छा था तो तब जाकर मुझे मेरी तीसरी फिल्म मिली थी। मेरी पहली और दूसरी फिल्म में इतना स्क्रीन टाइम नहीं था कि डायरेक्टली मुझे कुछ ऑफर कर दे। जर्नी में कभी भी लाइफ और कॅरियर के एक्सपीसियंस कुछ भी वेस्ट नहीं जाते हैं।

"अपना घर मिलना बैटल जीतना जैसा होता है"

मुंबई शिफ्ट होने के बाद एक- दो महीने घर ढूंढने में लग गया। मुंबई में अगर आप सिंगल हैं और एक्टिंग कर रहे हैं तो घर मिलना तो महाभारत जैसा है। घर मिलने पर लगा कि कोई बैटल जीत लिया हो। घर मिलने के बाद दिमाग में चलता है कि मुंबई में जिंदगी चलती कैसे है। यहां काम भी ऐसा है कि आपके बिलकुल नहीं आता है। मुझे तो लगता है कि मेरे घरवालों ने मेरा नाम बहुत अच्छा रखा है 'धैर्य'। मैं अपने पेरेंट्स को थैंक्स करता हूं कि मेरा नाम फिट बैठता है इस प्रोफेशन में।

एक बास्केटबॉल प्लेयर और डेटा एनालिस्ट से एक्टर बनने की कहानी?

11 यूनिवर्सल नंबर होता है ये यूनिवर्स खेल खेल रहा है, ये सब उसका कमाल है। यूनीवर्स का अलग प्लान था कभी-कभी हम बहुत प्लानिंग करते हैं लेकिन हमारी प्लानिंग की फुलटॉस हो जाता है। जो लाइफ के प्लान हैं वो कुछ और हो जाते हैं। लाइफ के प्लान हमारे प्लान से बेहतर होते हैं। मैं तो विथ द फ्लो गया हूं, बास्केटबॉल खेलते- खेलते एसआरसीसी में आया। वहां आकर मैंने पढ़ाई के साथ वर्क एक्सपीरियंस लिया। इसके बाद मैग्जीन और न्यूज़पेपर में देखकर दिल्ली में मॉडलिंग स्टार्ट की। मॉडलिंग में मेरा मन लगने लगा। दिल्ली से मैं बॉम्बे शिफ्ट हो गया। बॉम्बे में मॉडलिंग से काम न चलने के बाद मैंने रियलाइज किया कि एक्टिंग करना चाहिए। वहां पर मैंने वर्कशॉप की क्लासेस करी ऑडिशन दिए। मुझे दो से ढाई साल लगे तब जाकर मुझे काम मिला।