Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

भारतीयों के लिए धुंधलाती अमरीकी सपनों की चमक

डॉ. अनूप कुमार,प्रोफेसर, क्लीवलैंड स्टेट यूनिवर्सिटी, यूएसए

3 min read
Google source verification

अमरिका में अवैध प्रवास के खिलाफ बढ़ती नकारात्मक लहर का असर यह हुआ है कि कार्य वीजा पर आए प्रवासी, स्थायी निवासी और नागरिकता प्राप्त भारत समेत तमाम देशों के लोग खुद को इस देश में अवांछित महसूस करने लगे हैं। यह असुरक्षा बोध मुख्य रूप से मीडिया की सुर्खियों, गैर-प्रवासी और प्रवासी वीजा के सख्त नियमों तथा अमेरिका-भारत के बीच टैरिफ विवादों से और गहराया है।
आज का प्रवासी विरोधी रुझान 1920 के दशकों जैसा नहीं है, जब राष्ट्रीय मूल के आधार पर कोटे तय कर अमरिकी आबादी के केवल दो प्रतिशत की वार्षिक सीमा लागू कर दी गई थी। यह विरोधाभासी लग सकता है, लेकिन जब से अवैध प्रवासियों का बड़े पैमाने पर निर्वासन का सिलसिला शुरू हुआ, वैध प्रवासन का समर्थन भी रिकॉर्ड स्तर पर 79 प्रतिशत तक बढ़ गया है। माना जा रहा है कि यह वृद्धि ट्रंप प्रशासन की ओर से अवैध सीमा पार करने पर लगाम लगाने की मजबूत कोशिशों का फल हो सकती है। तो क्या इसका अर्थ यह है कि कैरियर अवसरों और स्थायी रूप से बसने के लिए अमरिकी सपने भारतीय और अन्य देशों के प्रतिभाशाली पेशेवरों को यूं ही अमरिका की ओर खींचते रहेंगे?
भारत से अमरिका के प्रवासन को समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि भारतीयों के लिए अमेरिकी ड्रीम क्या रहा और 1965 में कानून में बदलावों ने इसे साधारण कैसे किया। प्यू रिसर्च सेंटर के ताजा अध्ययन के अनुसार अमरिका में अभी लगभग 5.19 करोड़ प्रवासी हैं, जो अमरिकी श्रमबल का करीब 19 प्रतिशत हैं। इनमें से 29 प्रतिशत लोग अवैध रूप से हैं। सभी विदेशी मूल के प्रवासियों में से लगभग 7.2 प्रतिशत भारतीय हैं, जिनमें से लगभग 74 प्रतिशत कॉलेज-शिक्षित हैं। ये अच्छी अंग्रेजी बोलते हैं, भले ही अलग लहजे के साथ और औसत अमरिकी मजदूरी से अधिक कमाते हैं। 1965 के इमिग्रेशन एंड नेशनलिटी एक्ट के तहत नस्ली कोटा समाप्त होने के बाद भारतीय इंजीनियरों, डॉक्टरों और शिक्षाविदों ने अमेरिका में प्रवासन की पहली लहर का नेतृत्व किया।
दूसरी लहर 1990 के दशक में आई, जब य2के संकट से निपटने के लिए आईटी इंजीनियरों की भारी मांग उत्पन्न हुई और उसी समय नया एच-1बी वीजा नियम लागू हुआ। 2000 के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था ने भले ही तेजी पकड़ी, लेकिन बहुत से भारतीयों के लिए अमेरिका में उच्च शिक्षा का खर्च वहन करना संभव नहीं था।
इसी दौर में बड़ी संख्या में भारतीय पीजी छात्र अमरिका विश्वविद्यालयों में दाखिला लेने लगे। यह तीसरी लहर थी, जिसमें अधिकतर भारतीय छात्रों ने ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के जरिए नौकरी का प्रशिक्षण लिया और बाद में स्थायी कर्मचारी बने। नियोक्ताओं ने उनके लिए ग्रीन कार्ड भी स्पॉन्सर किए। कॅरियर में सफलता और परिवार की समृद्धि ने उन्हें स्थायी निवास और नागरिकता पाने के लिए वर्षों धैर्य रखने की क्षमता दी। कुछ अमरिकी समूहों में नकारात्मक धारणा अस्थायी हो सकती है, लेकिन भारतीयों के लिए, जो वैध रास्ते अपनाते हैं, अमरिकी सपना अपनी चमक खोता दिखता है। भारत की आर्थिक सफलता और हाई-टेक क्षेत्रों में अवसर बढ़ने से युवाओं में यह सवाल उठता है कि ग्रीन कार्ड के लिए लंबी कतार और अवांछित समझे जाने की पीड़ा के बावजूद अमरिका जाना कितना लाभकारी है।
अमरिका और भारत के बीच हाल ही में रणनीतिक मुद्दों पर बढ़ा तनाव अस्थाई है और जल्द ठी हो जाएगा। दोनों लोकतंत्रों के हित एक-दूसरे से जुड़े हैं। वैश्विक व्यवस्था और मानव कल्याण का भविष्य दोनों की साझेदारी पर निर्भर है। यह दोनों देशों को बाधाओं से उबरने और वैश्विक हित में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा। इसका मतलब यह नहीं कि भारतीय युवा पहले जैसी बड़ी संख्या में अमरिकी सपने को पाने के लिए अमरिका जाएंगे। इसके बजाय, वे अमरिका के साथ मजबूत साझेदारी की ओर देखेंगे, ताकि यह रिश्ता और गहरा हो। यह साझेदारी दुनिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगी।