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सम्पादकीय : नक्सल प्रभावित इलाकों में शिक्षा की सुखद बयार

छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के भट्टीगुड़ा इलाके में नक्सलियों के ट्रेनिंग कैपों की जगह स्कूल की घंटी बजती सुनाई दे तो सुरक्षा बलों की बड़ी कामयाबी ही कहा जाएगा।

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नक्सल प्रभावित इलाकों में जब भी अमन-चैन की बयार चलती है तो सुखद अहसास होता है। छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के भट्टीगुड़ा इलाके में नक्सलियों के ट्रेनिंग कैपों की जगह स्कूल की घंटी बजती सुनाई दे तो सुरक्षा बलों की बड़ी कामयाबी ही कहा जाएगा। सहज की अंदाजा लगाया जा सकता है कि जहां जिंदगी पल-पल खौफ के साए में बीत रही हो वहां विकास को पंख लगाने के प्रयासों से लोगों को कितनी राहत मिली होगी? छत्तीसगढ़ अपने गठन से ही नक्सल प्रभावित राज्यों में शुमार रहा है। सामाजिक, मानसिक, आर्थिक और आधारभूत विकास में छत्तीसगढ़ के पिछड़ेपन का यह बड़ा कारण यही रहा है।
नक्सलियों की गतिविधियों को काबू करने में पिछले सालों में कई स्तर पर प्रयास हुए हैं। इनमें नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने के प्रयास भी शामिल हैं। बीजापुर गांव के भट्टीगुड़ा गांव के स्कूल में बच्चों की चहल-पहल ऐसे ही प्रयासों की परिणति है। यह वह इलाका है जहां कुछ समय पहले तक बच्चे तो क्या बड़े-बूढ़े सब खुद को घरों में कैद रखते थे। नक्सलियों का ही यहां अघोषित शासन था। सब जानते हैं कि हर तरह के विकास का एक ही मार्ग होता है। यह मार्ग है बच्चों को शिक्षित करने का मार्ग। नक्सली इस बात को अच्छी तरह समझते थे इसलिए पिछले पांच साल में उन्होंने 250 से ज्यादा स्कूलों को जड़-मूल से उजाड़ दिया। पिछले एक दशक की यह संख्या पांच सौ स्कूलों की और दो दशक की एक हजार से ज्यादा स्कूलों की है। नए स्कूल तो उन्होंने अपने प्रभाव वाले इलाकों में बनने ही नहीं दिए। नक्सलियों का यह दावा गरीबों को गुमराह करने वाला रहा कि वे उनकी ही लड़ाई लड़़ रहे हैं। क्योंकि सब जानते हैं कि नक्सली गतिविधियों के कारण समूचा इलाका न केवल शिक्षा में पिछड़ा है बल्कि विकास के दूसरे रास्ते भी एक तरह से अवरुद्ध से हो गए थे। नक्सलियों के टॉप लीडर्स का ट्रेनिंग कैम्प बना यह इलाका अब इसलिए महफूज होने लगा है क्योंकि सुरक्षा बलों ने यहां अपने दस से ज्यादा कैम्प कायम कर दिए हैं। सडक़ मार्ग बनने से यहां नियमित बस सेवाएं भी शुरू हुई हैं। जिला प्रशासन के ‘स्कूल चलो अभियान’ के तहत १६ नए स्कूल शुरू हुए हैं जिनमें ६०० से ज्यादा बच्चों का नामांकन भी हुआ हैै। इन बच्चों व उनके अभिभावकों में यह भरोसा हो गया है कि सुरक्षा बलों की मौजूदगी के कारण अब उनका किसी तरह का अहित नहीं होगा।
हालांकि स्कूल खोलने के ये प्रयास तस्वीर का एक पक्ष ही है। दूसरा पक्ष और है जिस दिशा में ज्यादा काम की जरूरत है। बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो और उन्हें पढऩे-लिखने का उचित माहौल मिले इसकी भी पुख्ता व्यवस्था करनी होगी। सरकारी स्कूलों के प्रति आम धारणा भी यही रहने लगी है कि एक बार स्कूल खोलने के बाद इनकी तरफ झांकने वाले भी नहीं मिलते। उम्मीद यह भी की जानी चाहिए कि इस इलाके में बने झौंपड़ीनुमा स्कूल न केवल पक्के होंगे बल्कि इनमें बेहतर सुविधाएं भी जुटाई जाएंगी। नक्सलियों को भी हिंसा की राह छोड़ अपने बच्चों की चिंता करनी चाहिए। वे शिक्षित होंगे तो ही अच्छे नागरिक बनेंगे।