Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

सम्पादकीय : रथयात्रा हादसा- गलतियों से सीख न लेने का नतीजा

यह घटना अधिक शर्मनाक व चिंताजनक इसलिए भी है क्योंकि सैंकड़ों साल से इस रथ यात्रा का आयोजन हो रहा है। भगदड़ से जुड़े ऐसे हादसों से सबक नहीं लेने का ही नतीजा है कि पुरी में ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति हो गई।

2 min read
Google source verification

देश में एक बार फिर किसी धर्म स्थल पर दुखांतिका हो गई। ख्यातनाम तीर्थस्थल पुरी में जगन्नाथ यात्रा के दौरान भगदड़ ने तीन श्रद्धालुओं की जान ले ली और 50 से ज्यादा घायल भी हुए। यह घटना अधिक शर्मनाक व चिंताजनक इसलिए भी है क्योंकि सैंकड़ों साल से इस रथ यात्रा का आयोजन हो रहा है। भगदड़ से जुड़े ऐसे हादसों से सबक नहीं लेने का ही नतीजा है कि पुरी में ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति हो गई। हर साल लाखों श्रद्धालु रथयात्रा में शामिल होते हैं। श्रद्धालुओं को कैसे सुविधा व सुरक्षा के साथ दर्शन कराए जाएं इसकी तैयारी से जुड़ी बैठकें महीनों पहले हो जाती है। पुलिस-प्रशासन से जुड़े लोगोंं को संभावित भीड़ का अंदाजा भी रहता है। आयोजनों में आने वाली वीवीआइपी को लेकर भी अलग व्यवस्थाएं रहती आई हैं। इसके बावजूद पुरी में यह हादसा होना इंतजामों पर सवाल खड़े करता है।
जांच एजेंसियों की रिपोर्ट में भगदड़ के कारणों का खुलासा होगा लेकिन प्रारंभिक स्तर पर जो कारण सामने आ रहा हैं उसके मुताबिक श्रद्धालुओं के आने-जाने का एक ही रास्ता बनाना माना जा रहा है। इतना ही नहीं, रास्ते पर भी वीआइपी को प्रवेश करवाने के लिए निकास द्वार बिना किसी पूर्व सूचना के बंद कर दिया गया। इस व्यवस्था को लागू करने से पहले वैकल्पिक इंतजाम भी नहीं किए गए। ऐसे में भीड़ का दबाव बढ़ा और भगदड़ मच गई जिसकी परिणति के तौर पर यह घटना हुई। सरकार ने इस प्रकरण में लापरवाही मानते हुए कलेक्टर, एसपी, डीसीपी-कमांडेंट पर कार्रवाई की भी है। मृतकों के लिए 25-25 लाख रुपए के मुआवजे का ऐलान भी किया है। लेकिन इतना करना ही काफी नहीं होगा। हादसे में जान गंवाने वालों के परिजनों और घायल हुए श्रद्धालुओं को जो जख्म मिले हैं उन पर मरहम तब ही लगेगा जब इस तरह की दुर्घटनाओं से जुड़े तमाम संभावित कारणों को हमेशा के लिए दूर कर दिया जाएगा। अकेला पुरी नहीं है, देश के अनेक तीर्थ और धर्मस्थलों पर इस तरह के हादसे लगातार होते रहते हैं और कमोबेश सभी में एक कारण तो समान ही होता है और वे हंै- भीड़ का दबाव बढऩा, श्रद्धालुओं के आने या जाने का कोई रास्ता कुछ समय के लिए रोक देना या प्रवेश में वीआईपी को प्राथमिकता देना आदि। ऐसे कारणों में से कोई भी एक कारण भीड़ नियंत्रण में बाधक बन सकता है। हैरत की बात यह है कि नियम-कायदों की लम्बी-चौड़ी कसरत के बावजूद इस तरह के हादसे होने लगे हैं। बड़ी वजह यह है कि इन नियम-कायदों को बनाकर जिम्मेदार भूल जाते हैं
ओडि़शा के मुख्यमंत्री ने इस हादसे के लिए भगवान और भक्तों से क्षमायाचना की है। लेकिन महज क्षमा मांगने से ही प्रशासनिक लापरवाही का यह अपराध कम नहीं होने वाला। सही मायने में न्याय तब ही होगा जब इस तरह की घटनाओं की पुनरावृति न हो इसके पुख्ता प्रबंध किए जाएं। हादसों से जुड़े तमाम कारणों का पता लगाकर सुधार के उपाय करने होंगे। तीर्थस्थलों को सहज, सुलभ व सुरक्षित बनाना प्राथमिकता होनी ही चाहिए।