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देवगढ़ (राजसमंद). समाज में फैली पुरानी कुरीतियों को खत्म करने की दिशा में मदारिया तेली समाज मियाला ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। गुरुवार को मियाला स्थित राजूरामजी महाराज मंदिर परिसर में आयोजित समाज की बैठक में मृत्युभोज (तेरहवीं और उठावना) जैसी परंपराओं को समाप्त करने का सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया। यह निर्णय समाज की नवनिर्वाचित कार्यकारिणी की पहली बैठक में लिया गया, जिसकी अध्यक्षता राजू तेली (ज्ञानगढ़) ने की। बैठक में समाज के वरिष्ठजनों, युवाओं, महिला प्रतिनिधियों और विभिन्न क्षेत्रों के पदाधिकारियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया।
बैठक में प्रमुख रूप से यह प्रस्ताव रखा गया कि मृत्यु के बाद भोज कराने की परंपरा अब पूरी तरह समाप्त की जाए। सर्वसम्मति से पारित इस निर्णय के अनुसार अब से मृतक परिवार पर किसी प्रकार के भोज या तेरहवीं आयोजन का दबाव नहीं रहेगा। समाज केवल सांत्वना और सहयोग के रूप में परिवार के साथ खड़ा रहेगा। समाज के वरिष्ठ सदस्य कालू तेली (देवगढ़) ने कहा कि मृत्युभोज जैसी कुरीतियाँ समाज की आर्थिक स्थिति पर भारी बोझ डालती हैं। इस कदम से गरीब परिवारों को बड़ी राहत मिलेगी और समाज में समानता की भावना भी मजबूत होगी।
बैठक में यह भी तय किया गया कि आने वाली बैठकों में समाज के शैक्षिक विकास, सरल विवाह आयोजन, और युवाओं में संस्कार एवं एकता पर भी विस्तृत चर्चा की जाएगी। समाज के कई वक्ताओं ने कहा कि अगर शिक्षा और सामाजिक सुधार समान रूप से आगे बढ़ें, तो तेली समाज आने वाले वर्षों में एक मजबूत और आत्मनिर्भर समुदाय के रूप में उदाहरण पेश करेगा। अध्यक्ष राजू तेली (ज्ञानगढ़) ने कहा कि हम अपने समाज को आधुनिक सोच और परंपरा के संतुलन के साथ आगे ले जाना चाहते हैं।
बैठक के दौरान समाज की नई कार्यकारिणी का भी गठन किया गया। इसमें विभिन्न पदों पर जिम्मेदारियाँ इस प्रकार सौंपी गईं। इसमें उपाध्यक्ष कालू तेली (देवगढ़), महामंत्री रामलाल सोपरी, अशोक कुमार (देवगढ़), सचिव लक्ष्मणलाल (थाना), कोषाध्यक्ष भंवरलाल (कामलीघाट), संगठन मंत्री माधुलाल (ईशरमंड), सदस्य के रूप में कालू तेली (दिवेर), मूलचंद (अर्जुनगढ़), लक्ष्मण (बागोलिया), मिश्रीलाल (लाखागुड़ा), सत्यनारायण (बाघाना), कस्तूर तेली (चिताम्बा), प्रकाश (आसन), नैनालाल (भीठा) को शामिल किया गया है।
बैठक में वक्ताओं ने इस बात पर बल दिया कि मृत्युभोज जैसी परंपराएँ न केवल आर्थिक बोझ बढ़ाती हैं, बल्कि सामाजिक असमानता भी पैदा करती हैं। अब समाज ने यह संकल्प लिया है कि शोक को प्रदर्शन नहीं, बल्कि आत्मसंयम और सहयोग के भाव से व्यक्त किया जाएगा। वरिष्ठ सदस्य मूलचंद अर्जुनगढ़ ने कहा कि हमारी यह पहल आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देगी कि सुधार समाज के भीतर से ही शुरू होते हैं, सरकार से नहीं।
बैठक में तय किया गया कि आने वाले महीनों में समाज की ओर से
समाज के पदाधिकारियों ने बताया कि इस सुधार आंदोलन का उद्देश्य केवल परंपराएं बदलना नहीं, बल्कि समाज में सहयोग, एकता और जिम्मेदारी की भावना को मजबूत करना है।
Published on:
10 Oct 2025 01:12 pm
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