किड्स कॉर्नर: चित्र देखो कहानी लिखो 48 …. बच्चों की लिखी रोचक कहानियांपरिवार परिशिष्ट (24 सितंबर 2025) के पेज 4 पर किड्स कॉर्नर में चित्र देखो कहानी लिखो 48 में भेजी गई कहानियों में ये कहानियां सराहनीय रही हैं।
खरगोश और कछुए की अपनी-अपनी जिंदगी
एक घने जंगल में एक कछुआ रहता था। एक दिन जंगल में घूमते हुए उसे अपना पुराना दोस्त खरगोश मिल गया। दोनों बहुत खुश हुए और बातें करने लगे। कछुए ने पूछा- मित्र, तुम इतने दिन कहां थे? खरगोश बोला- मुझे एक मनुष्य पकड़कर अपने घर ले गया था। कछुआ बोला- तुम बहुत सुंदर हो, इसलिए सब तुम्हें पकड़ लेते हैं। कम से कम तुम्हें भरपेट खाना तो मिल ही जाता होगा। खरगोश ने सिर झुकाकर कहा- लेकिन मित्र, बंद कमरे में खाना मिलने से अच्छा है कि मैं खुले जंगल में भूखा रहकर भी आजादी से जी लूं। किसी की कैद में रहना बहुत दुख देता है। यह सुनकर कछुआ बोला - मेरी जिंदगी भी आसान नहीं है। लोग मुझे बदसूरत समझकर दूर कर देते हैं। कोई मुझसे प्यार नहीं करता। खरगोश ने समझाया- मित्र, तुम्हें कैद में तो नहीं रहना पड़ता। तुम खुले आसमान के नीचे मजे से घूमते हो। यही तो सच्ची खुशी है। दोनों ने महसूस किया कि वे अपनी-अपनी जिंदगी से खुश नहीं हैं। खरगोश को कछुए जैसी आजादी चाहिए थी और कछुए को खरगोश जैसी सुंदरता। इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि हमें दूसरों से तुलना नहीं करनी चाहिए। हमें जो भी मिला है, उसी में खुश रहना चाहिए। भगवान ने हमें जैसा बनाया है, वैसा ही सबसे अच्छा है।
निकू सालवी,उम्र-8वर्ष
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सच्ची दोस्ती का सफर
एक जंगल में खरगोश और कछुआ रहते थे। वो दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे। दोनों हर दिन साथ खेलते, बाते करते और घुमते फिरते। खरगोश तेज दौड़ कर हर जगह पहुंच जाया करता था, जबकि कछुआ धीरे-धीरे चलता। लेकिन उनकी दोस्ती इतनी गहरी थी कि कभी गति का फर्क आड़े नही आया। जब भी खरगोश कछुए से मिलता तो उसे सुकून का एहसास होता और खरगोश के साथ होने से कछुए को ऊर्जा और ख़ुशी मिलती। एक दिन दोनों ने मिलकर तय किया कि चाहे गति तेज हो या धीमी सफर मंजिल का वो दोनों साथ मिलकर ही तय करेंगे। उस दिन से खरगोश और कछुआ रोज साथ खेलते जंगल में घुमते फिरते। सच्ची दोस्ती में न तेज का गर्व होता है, न धीमे का दुख बस साथ होने की खुशी होती है।
शक्षी,उम्र-13वर्ष
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मेहनत का रास्ता, जीत का रास्ता
नट्टू खरगोश और चिंटू कछुआ दोनों दोस्त थे। उनके सभी साथी दोनों के दादाजी की बरसों पूरानी हुई दौड़ की बात पर नट्टू खरगोश की हंसी उड़ाते थे। एक दिन तंग आकर नट्टू खरगोश ने सभी साथियों के सामने चिंटू कछुए को दौड़ की चुनौती दे दी। जिसे चिंटू कछुए ने स्वीकार कर लिया। तय दिन दौड़ चालू हुई। नट्टू खरगोश चिंटू कछुए से बहुत आगे निकल गया और बहुत खुश हुआ। खुशी-खुशी में उसने भी वही गलती दोहरा दी जो उसके दादाजी ने की थी। उधर चिंटू कछुआ बिना रुके लगातार चलते हुए दौड़ जीत गया और सभी को अच्छी सीख दे गया कि मेहनत का रास्ता ही जीत का रास्ता होता है।
नमन दाधीच,उम्र-7वर्ष
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बंटी और राजू की सैर
एक धूप भरी सुबह खरगोश बंटी और कछुआ राजू जंगल की सैर पर निकले। सूरज चमक रहा था, हवा ठंडी और सुहानी थी। बंटी आगे-आगे उछलता, कभी झाडिय़ों में झांकता और कभी नई पत्तियां चख लेता। दूसरी ओर राजू धीरे-धीरे चलता और रास्ते की छोटी-छोटी चीजों का आनंद लेता जैसे फूलों की खुशबू और तितलियों की उड़ान। रास्ते में बंटी ने कहा, राजू, चलो उस पहाड़ी पर चलते हैं, वहां से पूरा जंगल दिखेगा। राजू मुस्कुराया और बोला, जरूर, लेकिन धीरे-धीरे चलेंगे ताकि हम दोनों मजा ले सकें। वे दोनों कदम-कदम साथ चलते हुए पहाड़ी पर चढ़े। ऊपर पहुंचकर उन्होंने दूर तक फैले हरे-भरे जंगल को देखा और खुश हो गए। उस दिन उन्हें एहसास हुआ कि दोस्ती का असली सुख साथ रहने में है। कोई तेज है या धीमा, यह मायने नहीं रखता। मायने रखता है एक-दूसरे का सम्मान और साथ निभाना। नैतिक शिक्षा- सच्ची दोस्ती गति या ताकत पर नहीं, बल्कि साथ और समझ पर आधारित होती है।
माही पालीवाल,उम्र-8वर्ष
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घमंड नहीं करना चाहिए
एक दिन एक जंगल में खरगोश और कछुआ आपस में बात कर रहे थे। जंगल का मौसम बहुत अच्छा था। खरगोश ने पूछा तुम क्या काम करते हो? कछुए ने कहा, मैं अभी तो कुछ काम नहीं करता। इस बात पर खरगोश ने कछुए की बहुत मजाक बनाई। कछुए ने पूछा वैसे तुम क्या काम करते हो? तो खरगोश ने कहा मैं एक होटल का मालिक हूं। उसके कुछ दिन बाद कछुए की पुलिस इंस्पेक्टर के पद पर नौकरी लग गई। खरगोश को पता चलने पर उसे कछुए से ईष्र्या हुई और उसने कछुए से बात करना भी बंद कर दिया। फिर एक दिन खरगोश को पुलिस किसी मामले मे चोर समझ कर थाने में ले गई। तभी पुलिस इंस्पेक्टर कछुए ने सिपाही से पूछा कि कहां है चोर? तभी सिपाही खरगोश को कछुए के सामने लेकर आया। तो खरगोश को देखते ही इंस्पेक्टर कछुए ने कहा यह चोर नहीं हो सकता। यह तो मेरा परम मित्र है। इसे छोड़ दो और असली चोर को गिरफ्तार करके लाओ। तब सिपाही ने उसी समय खरगोश को रिहा कर दिया। इस बात पर खरगोश ने कछुए को धन्यवाद दिया और अपनी गलती के लिए हाथ जोड़कर माफी मांगी। शिक्षा- हमें कभी भी किसी का मजाक नहीं बनाना चाहिए और घमंड नहीं करना चाहिए।
नव्या शर्मा,उम्र-9वर्ष
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गमंडी कछुआ और खरगोश की दोस्ती
एक छोटे से गांव में एक कछुआ रहता था, जो बहुत गमंडी था। वह हमेशा कहता था, 'मैं सबसे बुद्धिमान हूं, मैं सबसे धैर्यवान हूं और मैं सबसे अच्छा हूं। एक खरगोश उसके साथ दोस्ती करना चाहता था, लेकिन कछुआ उसे नकार देता था। एक दिन, गांव में एक बड़ा तूफान आया और सभी जानवर परेशान हो गए। खरगोश ने कछुए को बचाने की कोशिश की, लेकिन कछुआ उसकी मदद स्वीकार नहीं कर रहा था। लेकिन जब तूफान और तेज हो गया, तो कछुआ अपनी जान बचाने के लिए खरगोश की मदद लेने पर मजबूर हो गया। खरगोश ने उसे सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया। कछुआ शर्मिंदा हुआ और बोला, तुम्हारी मदद के बिना मैं कुछ नहीं कर सकता था। मैंने गलत किया, घमंड करना सही नहीं है। खरगोश ने कहा, दोस्ती में घमंड नहीं चलता, सहयोग और विनम्रता ही महत्त्वपूर्ण है। कछुआ अपनी गलती समझ गया और दोनों अच्छे दोस्त बन गए।
त्रिशा मीना,उम्र-10वर्ष
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मेहनत, धैर्य और लगन हैं जरूरी
एक बार जंगल में खरगोश और कछुआ आपस में बातें कर रहे थे। खरगोश अपनी तेज दौड़ पर घमंड कर रहा था और कछुए का मजाक उड़ा रहा था। कछुआ मुस्कुराकर बोला- दोस्त, तेज दौडऩा ही सब कुछ नहीं है, मेहनत और धैर्य भी जरूरी है। खरगोश ने हंसते हुए कहा- क्या तुम मुझसे दौड़ में जीत सकते हो? कछुए ने चुनौती स्वीकार कर ली। अगले दिन जंगल के सब जानवर इकट्ठा हुए। दौड़ शुरू हुई तो खरगोश बहुत तेज भागा और काफी आगे निकल गया। वह सोचने लगा कि कछुआ तो बहुत पीछे है, इसलिए वह एक पेड़ के नीचे आराम करने लगा और सो गया। उधर कछुआ धीरे-धीरे मगर लगातार चलता रहा और अंत में लक्ष्य तक पहुंच गया। जब खरगोश की नींद खुली तब तक कछुआ जीत चुका था। इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि घमंड और आलस्य मनुष्य को पीछे कर देते हैं जबकि मेहनत, धैर्य और लगन से ही सफलता मिलती है।
पुलकित कुमार,उम्र-13वर्ष
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सकारात्मक सोच जरूरी
एक हरे-भरे जंगल में खरगोश और कछुआ अच्छे दोस्त थे। दोनों रोज सुबह मिलकर टहलते और बातें करते। खरगोश हमेशा खुशमिजाज रहता था। कछुआ थोड़ा गंभीर था, लेकिन समझदार भी था। एक दिन दोनों घूमते-घूमते एक पहाड़ी पर पहुंचे। वहां से सूरज की किरणें जंगल पर पड़ रही थीं और पूरा दृश्य बहुत सुंदर लग रहा था। खरगोश बोला, काश मैं उड़ पाता तो इन पहाड़ों के पार देखता। कछुआ मुस्कुराया और बोला, उडऩा जरूरी नहीं, सपने देखना और उन्हें पूरा करने की कोशिश करना जरूरी है। खरगोश ने उसकी बात को दिल से माना। दोनों ने मिलकर निश्चय किया कि हर दिन नई चीजें सीखेंगे और जीवन को खुशियों से भरेंगे। सीख- सच्ची दोस्ती हमें नए सपने और सकारात्मक सोच देती है।
मेहजबीन,उम्र-9वर्ष
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खरगोश, कछुआ और सूर्य की कहानी
बहुत समय पहले की बात है। एक हरे-भरे जंगल में खरगोश और कछुआ रहते थे। दोनों अच्छे मित्र थे। खरगोश तेज दौड़ता था, जबकि कछुआ धीरे-धीरे चलता था। एक दिन सुबह-सुबह वे दोनों सूर्य की गर्मी में बैठे थे। सूरज की सुनहरी किरणें पेड़ों की पत्तियों पर पड़कर चमक रही थीं। कछुआ बोला, देखो मित्र! यह सूर्य कितना महान है। इसकी रोशनी से ही पेड़-पौधे बढ़ते हैं, फूल खिलते हैं और हमें जीवन मिलता है। खरगोश ने हंसते हुए कहा, हां, यह तो सच है। पर सोचो, अगर सिर्फ सूरज ही होता और न कोई पेड़, न नदियां, न धरती की ठंडी छाया, तो क्या हम जीवित रह पाते? सूर्य ने उनकी बातें सुनीं और मुस्कुराकर बोला, तुम दोनों ठीक कहते हो। मैं जीवन की ऊर्जा देता हूं, परंतु केवल मेरे होने से सबकुछ संभव नहीं है। प्रकृ ति के हर अंग की अपनी भूमिका है। पेड़ ऑक्सीजन देते हैं, नदियां प्यास बुझाती हैं, धरती सबको स्थान देती है और मैं उन्हें ऊर्जा प्रदान करता हूं। इसी से जीवन का चक्रचलता है। कछुआ बोला तो हमें हमेशा प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि अगर पेड़ कटेंगे, नदियां सूखेंगी, तो सूर्य का प्रकाश भी व्यर्थ हो जाएगा। खरगोश ने सहमति जताई, सही कहा! हमें तेजी से भागने या धीरे-धीरे चलने की चिंता नहीं करनी चाहिए, बल्कि धरती और सूर्य के इस उपहार को सुरक्षित रखना चाहिए। उस दिन से दोनों ने संकल्प लिया कि वे जंगल के पेड़-पौधों की रक्षा करेंगे और दूसरों को भी यह संदेश देंगे कि सूर्य और पूरी प्रकृ ति मिलकर ही जीवन को सुंदर बनाते हैं।
यश यादव,उम्र-8वर्ष
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खरगोश और कछुए की कहानी
एक खरगोश और कछुआ दोस्त थे। उन्होंने एक दौड़ में भाग लेने का फैसला किया। खरगोश अपनी तेज गति पर गर्व करता था, जबकि कछुआ अपनी मेहनत और धैर्य पर भरोसा करता था। दौड़ शुरू हुई और खरगोश आगे निकल गया। लेकिन उसने सोचा, मेरे पास बहुत समय है और रास्ते में सो गया। कछुआ धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहा और खरगोश को पीछे छोड़ दिया। जब खरगोश जागा, तो उसने देखा कि कछुआ फिनिश लाइन पार कर चुका था। खरगोश ने सीखा कि धीमी और स्थिर गति से काम करने वाला व्यक्ति अक्सर जल्दबाजी में काम करने वाले व्यक्ति से आगे निकल जाता है। नैतिकता- मेहनत, धैर्य और लगन से ही सफलता मिलती है।
ईशान्या राठौड़,उम्र-8वर्ष
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खरगोश और कछुए की दोस्ती
एक समय की बात है, एक हरे-भरे जंगल में एक तेज दौडऩे वाला खरगोश रहता था। जिसका नाम था चंपू। चंपू को अपनी तेज रफ्तार पर बहुत घमंड था और वह अक्सर जंगल के अन्य जानवरों को चिढ़ाता रहता था। खासकर कछुए को जिसका नाम था धीरु। धीरु स्वभाव से बहुत शांत और धैर्यवान था, लेकिन चंपू की बातों से उसे कभी-कभी बुरा भी लगता था। एक दिन, चंपू ने धीरु को दौड़ के लिए चुनौती दी। धीरु पहले तो हिचकिचाया, लेकिन फिर उसने चुनौती स्वीकार कर ली। दौड़ का दिन आ गया और जंगल के सभी जानवर इस अनोखी दौड़ को देखने के लिए इकट्ठा हुए। दौड़ शुरू हुई और चंपू अपनी पूरी तेजी से दौड़ा, कुछ ही देर में वह धीरु से बहुत आगे निकल गया। चंपू ने पीछे मुड़कर देखा, धीरु बहुत दूर था। उसे लगा कि धीरु को पहुंचने में बहुत समय लगेगा, इसलिए उसने एक पेड़ के नीचे आराम करने का फैसला किया और वहीं सो गया। धीरु अपनी धीमी चाल से लगातार चलता रहा। उसने न तो आराम किया और न ही रुका। जब चंपू की नींद खुली, तो उसने देखा कि धीरु फिनिश लाइन के बहुत करीब पहुंच चुका था। चंपू घबराकर तेजी से दौड़ा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। धीरु ने फिनिश लाइन पार कर ली थी और वह दौड़ जीत चुका था। चंपू को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसे अपने घमंड पर पछतावा हुआ। उसने धीरु से माफी मांगी और वादा किया कि वह कभी किसी को कम नहीं समझेगा। धीरु ने उसे माफकर दिया और तब से वे दोनों अच्छे दोस्त बन गए। शिक्षा- घमंड हमेशा हार का कारण बनता है और धीरज तथा निरंतर प्रयास से ही सफलता मिलती है। भूवी जैन,उम्र-8वर्ष ……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………
मेहनत करने वालों को मिलती है सफलता
जंगल में खरगोश और कछुआ बहुत अच्छे दोस्त थे। खरगोश बहुत तेज दौड़ता था और कछुआ धीरे-धीरे चलता था। एक दिन खरगोश ने कहा, मैं तो बहुत तेज हूं, मुझे कभी मेहनत नहीं करनी पड़ती। कछुआ मुस्कुराया और बोला, देखना खरगोश भाई, बिना मेहनत के कोई काम पूरा नहीं होता। तभी जंगल में एक बड़ा तालाब सूखने लगा। सभी जानवरों को पानी दूर पहाड़ से लाना था। खरगोश ने सोचा, मैं तो तेज हूं, जल्दी पानी ला दूंगा। लेकिन परिश्रम करना उसकी आदत में नहीं था, इसीलिए जैसे ही वह थोड़ा सा भागता थककर बैठ जाता। फिर थोड़ा भागता, थककर बैठ जाता। उधर कछुआ धीरे-धीरे पानी भरता रहा, बार-बार जाता रहा। उसने मेहनत की और आखिर में अपने हिस्से का पानी ले आया। ऐसे ही सभी जानवरों ने मेहनत करके अपने लिए पानी ले आए। बिना पानी के खरगोश को समझ आया कि तेज होने से कुछ नहीं होता। कार्य को पूर्ण करने में सिर्फ बाते नहीं बल्कि मेहनत करनी पड़ती है। उस दिन से खरगोश ने अपने तेज होने का घमंड छोड़ा और मेहनत करना शुरू कर दिया। सभी जानवर बोले, तेज हो या धीमे, मेहनत करने वालों को ही सफलता मिलती है।
सिद्धविक सामर,उम्र-7वर्ष ……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………. खरगोश और कछुए की सैर
एक सुहानी सुबह थी। सूरज मुस्कुराता हुआ आसमान में चमक रहा था। पेड़ों पर चिडिय़ां चहचहा रही थीं। ऐसे मौसम में खरगोश ने अपने दोस्त कछुए से कहा, चलो, आज हम दोनों जंगल में सैर करने निकलते हैं! कछुआ बोला, सैर तो मजेदार होगी, लेकिन तुम तो बहुत तेज दौड़ते हो। मैं तुम्हारे साथ कैसे चल पाऊंगा? खरगोश हंसते हुए बोला, कोई बात नहीं, आज मैं धीरे-धीरे चलूंगा। हम दोनों मिलकर रास्ते की बातें करेंगे। दोनों चल पड़े। खरगोश लाल टी-शर्ट और नीली निकर में बहुत प्यारा लग रहा था और कछुए की रंग-बिरंगी खोल धूप में चमक रही थी। रास्ते में खरगोश ने फूलों की खुशबू सूंघी, तितलियों को उड़ते देखा और बोला, अरे ये सब तो मैंने कभी गौर ही नहीं किया! जब मैं हमेशा दौड़ता रहता था, तो ये सब सुंदर नजारे छूट जाते थे। कछुआ मुस्कु राया, देखा! धीरे चलने का भी अपना मजा है। सफर तभी अच्छा लगता है जब हम हर छोटी चीज को महसूस करें। खरगोश ने सिर हिलाया और बोला, तुम सही कहते हो दोस्त। अब से मैं तुम्हारे साथ धीरे-धीरे चलूंगा। हम दोनों मिलकर हर सफर का आनंद लेंगे। उस दिन से खरगोश और कछुआ रोज साथ सैर करने लगे। जंगल के सब जानवर कहते, वाह! देखो तो, तेज खरगोश और धीमा कछुआ कितनी प्यारी जोड़ी है! और दोनों दोस्त हंसते-खिलखिलाते अपनी राह पर बढ़ते गए।
रमनदीप,उम्र-11वर्ष ……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………..
दोस्ती हो तो ऐसी हो
एक बहुत घना और खुशबूदार जंगल था। उसमें एक कछुआ और खरगोश भी रहते थे। जो दोनों पक्के दोस्त थे। मई-जून की तपती गर्मी का मौसम था, दोनों मैं शर्त लग गयी कि 2 किलोमीटर की रेस में कौन जीतेगा? सूर्य भगवान भी देख रहे थे और मुस्कुरा रहे थे। खरगोश को गलतफहमी थी कि वो ही जीतेगा पर सूर्य भगवान को मालूम था खरगोश के मन की बात। रेस शुरू हुई पर खरगोश को बहुत ज्यादा पसीना होने लगा, उसे सहन नहीं हुआ और वो पेड़ की छाया में सो गया और दूसरी तरफ कछुआ महाराज अपनी चाल से चलते हुए जीत गए, उसको पसीना आता ही नहीं था। लेकिन इसमें तो बहुत बड़ा सस्पेंस था। जो खरगोश और सूर्य भगवान ही जानते थे और सस्पेंस यह था कि खरगोश कछुए को कभी हारते हुए नहीं देखना चाहता था, दोस्ती ही इतनी पक्की थी, इसलिए वो जानबूझकर सो गया। कछुए को यह बात मालूम पड़ी तो वह खरगोश के गले लगकर रोने लगा। सूर्य भगवान ने उन दोनों को आशीर्वाद दिया कि ऐसी दोस्ती हमेशा बनी रहे और खरगोश और कछुआ खुशी के मारे नाचने लगे।
आर्या जैन,उम्र-12वर्ष ………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………
घमंडी खरगोश और धैर्यवान कछुआ
एक समय की बात है, एक घमंडी लार्जिश (खरगोश) और एक साधारण सा कछुआ रहते थे। खरगोश हमेशा अपनी तेज दौड़ पर घमंड करता और कछुए का मजाक उड़ाता था। एक दिन उसने कछुए से कहा- तुम इतने धीमे हो, अगर मेरे साथ दौड़ लगाओगे तो कभी जीत नहीं सकते। कछुए ने शांति से मुस्कुराते हुए चुनौती स्वीकार कर ली। अगले दिन जंगल में दौड़ शुरू हुई। सभी जानवर इका होकर देखने लगे। खरगोश बिजली की तरह दौड़ा और कछुआ धीरे-धीरे चलता रहा। कुछ दूर जाकर खरगोश ने देखा कि कछुआ अभी बहुत पीछे है। उसने सोचा कछुआ तो घंटों में भी यहां नहीं पहुंच पाएगा। क्यों न थोड़ी देर आराम कर लूं। वह पेड़ के नीचे लेट गया और गहरी नींद में सो गया। उधर कछुआ बिना रुके, धैर्य और मेहनत से आगे बढ़ता रहा। घंटों बाद जब खरगोश की नींद खुली, तो उसने देखा कि कछुआ मंजिल के पास पहुंच चुका है। खरगोश ने पूरी ताकत से दौड़ लगाई, पर तब तक देर हो चुकी थी। कछुआ सबसे पहले फिनिश लाइन पार कर गया।
सूर्यांश राठौर,उम्र-9वर्ष
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खरगोश और कछुए की कहानी
एक बार की बात है, एक खरगोश और एक कछुआ अच्छे दोस्त थे। वे रोज मिलकर खेलते और समय बिताते थे। एक दिन खरगोश ने कछुए से कहा, चलो हम दौड़ लगाते हैं और देखेंगे कि तुम कितनी धीमी गति से चलते हो। कछुआ यह सुनकर थोड़ा निराश हुआ, लेकिन उसने दौड़ के लिए हां कह दी। दौड़ का मार्ग पहाड़ तक तय किया गया। खरगोश अपनी बिजली जैसी रफ्तार से दौडऩे लगा। उसने बीच में सोचा, मैं तो बहुत आगे हूं, कछुआ बहुत पीछे है। क्यों न मैं थोड़ी देर आराम कर लूं। खरगोश एक पेड़ के नीचे आराम करने बैठ गया। इसी बीच कछुआ धीरे-धीरे लेकिन लगातार चलता रहा और अंत में दौड़ जीत गया। खरगोश को अपनी घमंड पर पछतावा हुआ। सीख- हमें अपनी क्षमता पर घमंड नहीं करना चाहिए और मेहनत और लगातार प्रयास से ही सफलता मिलती है।
उन्नति सतपुते,उम्र-8वर्ष
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Published on:
03 Oct 2025 03:53 pm
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