किड्स कॉर्नर- चित्र देखो कहानी लिखो 45 …. बच्चों की लिखी रोचक कहानियां परिवार परिशिष्ट (03 सितंबर 2025) के पेज 4 पर किड्स कॉर्नर में चित्र देखो कहानी लिखो 45 में भेजी गई कहानियों में यह कहानियां सराहनीय रही हैं।
खेल हमें साथ लाता है
एक धूप वाला दिन था और कुछ बच्चे क्रिकेट खेलने के लिए मैदान में इकटठे हुए थे। वे सभी अलग-अलग रंग के कपड़े पहने हुए थे और उनके चेहरे पर उत्साह साफ झलक रहा था। कुछ बच्चे विकेट के पास खड़े थे, जबकि अन्य गेंदबाजी या बल्लेबाजी की तैयारी कर रहे थे। एक बच्चा गेंद को पकडऩे के लिए तैयार था, तो दूसरा अपनी पूरी ताकत से गेंद को फेंकने की कोशिश कर रहा था। बाकी बच्चे हौसला बढ़ा रहे थे और एक-दूसरे का साथ दे रहे थे। खेल के दौरान उनकी हंसी और चिल्लाहट सुनाई दे रही थी। क्रिकेट का यह खेल सिर्फ एक खेल नहीं था, बल्कि दोस्ती और टीम भावना का प्रतीक था। सभी बच्चे एक साथ मिलकर मजे कर रहे थे और अपने बचपन के सुनहरे पलों को जी रहे थे। खेल खत्म होने के बाद, वे सभी मुस्कुराते हुए अपने अगले एडवेंचर की बाते कर रहे थे। इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि खेल हमें साथ लाता है और खुशियां बांटता है।
तनमय सिंह राजावत,उम्र-9वर्ष
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साथ मिलकर खेलो, साथ मिलकर हंसो
गर्मी की छुट्टियां चल रही थीं। शाम को मोहल्ले के बच्चे रोज मैदान में इकट्ठा होते। उस दिन सबने क्रिकेट खेलने का तय किया। राम बैट लेकर आया, अब्दुल गेंद लाया और बाकी बच्चों ने स्टंप लगाए। सबने मिलकर दो टीमें बना लीं। खेल शुरू हुआ। पहली बल्लेबाजी अब्दुल की टीम को मिली। अब्दुल ने पूरी ताकत से शॉट लगाया और गेंद दूर चली गई। सब बच्चे खुशी से चिल्लाने लगे। राम की टीम भी बहुत जोश में खेली। कभी कोई गिरता तो सब हंसते, कोई अच्छा कैच पकड़ता तो सब तालियां बजाते। खेल इतना मजेदार था कि मैदान हंसी से गूंज उठा। लेकिन खेल के बीच में राम और अब्दुल में थोड़ी बहस हो गई। राम को लगा कि अब्दुल आउट है और अब्दुल कह रहा था कि वह नॉट आउट है। बहस बढऩे लगी। तभी सबसे छोटा बच्चा, मोहन बोला- हम खेल हारने जीतने के लिए नहीं, मजा लेने के लिए खेल रहे हैं। अगर हम झगड़ेंगे तो खेल का मजा खराब हो जाएगा। मोहन की बात सबको समझ आ गई। राम ने मुस्कुरा कर कहा- ठीक है, खेल जारी रखते हैं। अब्दुल ने भी हाथ मिलाया। खेल फिर शुरू हुआ और सब बच्चों ने खूब मजा किया। खेल खत्म होने पर बच्चों ने सीखा कि असली खुशी मिलजुलकर खेलने में है, झगडऩे में नहीं। उन्होंने वादा किया कि आगे से चाहे जो भी हो, सब मिलकर हंसते-खेलते रहेंगे। सीख- सच्चा आनंद जीत में नहीं, बल्कि साथ मिलकर खेल और दोस्ती निभाने में है।
मोहम्मद जुनैद,उम्र-8वर्ष
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गांव की पिकनिक और दोस्ती का मैच
एक बड़े शहर के बच्चे पिकनिक मनाने गांव पहुंचे। चारों तरफ हरियाली, खेत, तालाब और मिट्टी की खुशबू देखकर वे बहुत खुश हुए। वहां पहुंचते ही उन्होंने क्रिकेट खेलना शुरू किया। खेलते-खेलते अचानक उनकी बॉल कहीं गुम हो गई। बॉल ढूंढते-ढूंढते उन्हें गांव के कुछ बच्चे मिले। शहरी बच्चों ने उनसे मदद मांगी, तो गांव के बच्चों ने खुशी-खुशी उनकी बॉल ढूंढने में साथ दिया। तभी किसी ने सुझाव दिया- क्यों न सब मिलकर एक क्रिकेट मैच खेले? फिर क्या था, गांव और शहर की दो टीमें बन गईं। खेल शुरू हुआ और दोनों टीमों ने पूरी मेहनत से खेला। कभी गांव की टीम आगे निकलती, तो कभी शहर की। खेल के दौरान सब बच्चे जोर-जोर से हंसते, तालियां बजाते और मजाक भी करते। माहौल बहुत ही मजेदार हो गया। मैच खत्म हुआ तो नतीजा आया- खेल टाई हो गया। लेकिन असली जीत तो उनकी दोस्ती की हुई। सभी बच्चे थक चुके थे, इसलिए साथ बैठकर स्वादिष्ट खाना खाया। खाते-पीते और बातें करते समय सभी को लगा कि गांव और शहर के बच्चे अब सिर्फ खिलाड़ी ही नहीं, बल्कि अच्छे दोस्त भी बन गए हैं। अंत में विदाई का समय आया। शहर के बच्चों ने गांव के बच्चों को गले लगाकर अलविदा कहा और वादा किया कि वे दोबारा मिलने जरूर आएंगे। यह पिकनिक सभी के लिए एक यादगार अनुभव बन गई, जिसमें खेल भी था, दोस्ती भी और ढेर सारी खुशियां भी।
ओनिश सेन,उम्र-10वर्ष
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चंकी ने सिखाया सबक
एक दिन चंटू और पिंटू गली में क्रिकेट खेल रहे थे। तभी उनकी दोस्त चंकी वहां आ गई। चंकी बोली, मैं भी खेलूंगी! यह सुनकर चंटू और पिंटू हंस पड़े, अरे! तुम कैसे खेलोगी? ये तो हमारा खेल है। चंकी उदास हो गई। तभी चंटू आउट हो गया। चंकी ने जल्दी से कहा, अब मेरी बारी! मैं तो आउट नहीं हूं। पहले सबने फिर मजाक किया, लेकिन पिंटू बोला, ठीक है, चंकी! एक बार ट्राई तो कर लो। चंकी ने बैट उठाया और पहला ही शॉट सीधे चौका! फिर छक्का! फिर चौका! सबकी आंखें फटी की फटी रह गईं। चंटू और पिंटू ने तुरंत माफी मांगी, सॉरी चंकी! हमने तुम्हारा मजाक उड़ाया। अब कभी नहीं उड़ाएंगे। फिर सबने मिलकर खेला और खूब मजा आया। सीख- कभी भी किसी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। हर किसी के अंदर कोई न कोई खास हुनर होता है।
वेदांश मुवाल,उम्र-6वर्ष
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सपनो का पीछा
एक छोटे से गांव में कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। इन बच्चों के पास ना कोई बड़ा मैदान था, ना शानदार खेल उपकरण, लेकिन उनका जुनून और खेलने की इच्छा अनमोल थी। एक दिन, गांव के एक बड़े खेल प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। बच्चों ने सोचा कि क्या वे अपनी कड़ी मेहनत और जुनून से उस प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। लेकिन जब उन्होंने प्रतियोगिता के नियमों को देखा तो वे थोड़ा घबराए, क्योंकि उनका मुकाबला बहुत अनुभवी और बेहतर खिलाड़ियाें से था। फिर भी, बच्चों ने तय किया कि वे कोशिश करेंगे। उन्होंने एक-दूसरे को उत्साहित किया और साथ मिलकर अभ्यास करना शुरू किया। धीरे-धीरे उनकी खेल की तकनीक सुधरने लगी और वे अपने संघर्ष को एक नई उम्मीद के साथ देख रहे थे। अंतत:, प्रतियोगिता का दिन आया। बच्चों ने पूरे आत्मविश्वास के साथ मैदान में कदम रखा और खेल की शुरुआत की। शुरुआत में उनकी टीम थोड़ी पीछे थी, लेकिन उन्होंने हार मानने के बजाय और मेहनत की। खेल के अंत में उनकी टीम ने प्रतियोगिता जीत ली। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर हम किसी चीज़ को सच्चे दिल से चाहते हैं और कठिनाईयों से डरते नहीं तो हम किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। क्रिकेट खेलने वाले इन बच्चों की तरह हमें भी अपनी मेहनत और उत्साह से सफलता की ओर बढऩा चाहिए।
कनिष्क गहलोत,उम्र-10वर्ष
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बीच की सैर
एक परिवार था, उसे घुमने का बहुत शोक था। उस परिवार में पुनीत, उसकी दीदी कुसुम व मम्मी-पापा रहते थे। क्या पापा आपको पता है, मैं भी दीदी व मम्मी के साथ गणेश जी के मेले गया था। पापा मेले में दीदी गुडिय़ा की जिद्द कर रही थी। तभी कु सुम कहती है, पुनीत भी मेले में कार की जिद्द कर रहा था। पर मम्मी ने नहीं दिलवाई। पापा बोले ठीक है, बच्चो! अच्छा, क्या तुम्हें पता है कि हम सब बिच पर घूमने जाएंगे। पुनीत आश्चर्य से बोला बीच का नाम तो बहुत सुन है, पर जाने का मौका आज पहली बार मिल रहा है। अगली सुबह सभी जल्दी उठकर तय हो गए। फिर सब बस में बैठकर बीच पर पहुंचे, बिच पर उन्होंने सबसे पहले नौका से सैर की फिर बिच में नहाने गए और वहां पर पुनीत ने एक रेत का घर बनया। फिर वे वापस घर आ गए।
प्रद्युम्न जोशी,उम्र-9वर्ष
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खेल भावना से जीता दिल
एक गांव में बच्चों के लिए क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन किया गया। इस टूर्नामेंट में करीब 10 से ज्यादा बच्चों की टीमें ट्रॉफी के लिए प्रतिस्पर्धा करने के लिए एकत्रित हुई थीं। इन टीमों में गांव की स्थानीय टीम भी शामिल थी, जिसका नेतृत्व प्रतिभाशाली कप्तान चिंटू कर रहा था। जैसे-जैसे टूर्नामेंट आगे बढ़ा, मैच और भी रोमांचक होते गए। गांव की स्थानीय टीम का सेमीफाइनल में अपने प्रतिद्वंद्वी शहर की टीम से मुकाबला हुआ। मुकाबला कांटे का था और दोनों टीमें जी जान से खेल रही थीं। अंतिम ओवर में चिंटू की टीम को जीत के लिए केवल 1 विकेट चाहिए था। जबकि प्रतिद्वंद्वी टीम को केवल 5 रन चाहिए थे। चिंटू ने जैसे ही गेंद डाली वह बैट्समैन के बल्ले को छूते हुए सीधे विकेट पर जा लगी। सब ख़ुशी से झूम उठे और चिंटू की और जीत का जश्न मानाने दौड़ पड़े। लेकिन चिंटू ने सबको रोका और कहा की यह विकेट नहीं है, क्योंकि मेरा पैर लाइन से बाहर हो गया था। मुझसे नो बॅाल हुई है, जिस पर अम्पायर का भी ध्यान नहीं गया। चिंटू ने वापस से अगली गेंद डाली जिस पर प्रतिद्वंद्वी शहर की टीम ने सिक्स लगाकर जीत हासिल कर ली। चिंटू की टीम क्रिकेट का यह फाइनल मुकाबला जरूर हार गई थी, किन्तु चिंटू ने जो खेल भावना दिखाई। उससे सब बहुत खुश हुए और इस तरह चिंटू की टीम ने मैच हारकर भी सबका दिल जीत लिया।
तनवी सोलंकी,उम्र-13वर्ष
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चारों दोस्तों की कहानी
रविवार की सुबह थी और सुहाना मौसम था। एक गांव में चार दोस्त खेलने के लिए एकत्रित हुए। चारों दोस्तों (रमेश, मोहन, कान्हा और रिया) के बीच क्रिकेट खेलने का तय हुआ। चारों दोस्त बड़े ही उत्साह एवं आनंद से खेल रहे थे, तभी गांव के उनके ही उम्र के कुछ शैतान लड़के आए और लड़की को क्रिकेट खेलता देखकर जोर से हंसने लगे और बोले, ये लड़की क्रिकेट खेल रही है। उन सबके बीच एक क्रिकेट का मुकाबला करने का तय हुआ। उन लड़को की टीम में भी चार लोग थे- विकास, मनीष, हरीश और रमन। चारों ने पहले गेंदबाजी करने का फैसला किया। रिया की टीम बल्लेबाजी करने उतरी और कम रन बनाकर आउट हो गई। जब उन लड़कों की बल्लेबाजी करने की बारी आई तो शुरू में तो उनका प्रदर्शन शानदार था पर अंत में उनकी पारी लुढ़क गई। अंत में रिया और उसकी टीम की ही जीत हुई। उन सब लड़कों ने रिया से माफी मांगी और वादा किया की कभी किसी का उपहास नहीं करेंगे।
नव्या खंडेलवाल,उम्र-13वर्ष
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हौसला
हमें नई कॉलोनी में शिफ्ट हुए एक माह ही हुआ था। मैं और मेरा भैया घर में खेल-खेल के बोर हो चुके थे। कॉलोनी में हम उम्र के नए मित्र बनाए। रविवार को क्रिकेट मैच रखा गया। हम कुल 8 ही थे। जिसमें चार लड़कियां और चार लड़के थे। अलग-अलग दो टीमों ने खेलना प्रारंभ किया। मुझे विकेटकीपर की जिम्मेदारी सौंपी गई। मैंने अकेले ही दो ओवर में चार विकेट ले लिए और रन भी मात्र 05 ही बनने दिए। जब लड़कियों की बैटिंग की शुरू हुई तो हूटिंग होने लगी। सब तालिया बजाकर मुझे प्रोत्साहन कर रही थी। पहली ही बॉल में छक्का क्या लगा। सब भौचक्के रह गये। अब जब भी मैच होता है तो मुझे अपनी टीम में रखने के लिए विनती करते हैं।
गार्गी राजपुरोहित,उम्र-11वर्ष
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खेल का मैदान
एक गांव में चार दोस्त रहते थे। ये हमेशा हंसते-खेलते रहते थे। एक दिन वे गांव के खेल के मैदान में गए। वहां बहुत से बच्चे खेल रहे थे। किसी के हाथ में बॉल थी, कोई कबड्डी खेल रहा था और कोई दौड़ लगा रहा था। चारों दोस्त बच्चों को देखकर बहुत खुश हुए और खेलने लगे। खेलते-खेलते एक लड़की गेंद फेंकते समय गिर गई और उसे चोट लग गई। यह देखकर चारों दोस्त जोर-जोर से हंसने लगे। लेकिन वहां खड़े एक बड़े व्यक्ति ने उन्हें समझाया- बच्चो, दूसरों की तकलीफपर हंसना सही नहीं है। हमें हमेशा मदद करनी चाहिए, न कि मजाक उड़ाना। चारों दोस्तों को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने लड़की को उठाया, पानी पिलाया और कहा- माफ करना, आगे से हम कभी भी किसी की परेशानी पर नहीं हंसेंगे। सीख- दूसरों की तकलीफ पर हंसना बुरी आदत है। सच्चा दोस्त वही है जो जरूरत के समय मदद करे।
किरण खिचड़,उम्र-8वर्ष
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Published on:
10 Sept 2025 12:35 pm
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