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किड्स कॉर्नर- चित्र देखो कहानी लिखो 41 …. बच्चों की लिखी रोचक कहानियां परिवार परिशिष्ट (06 अगस्त 2025) के पेज 4 पर किड्स कॉर्नर में चित्र देखो कहानी लिखो 41 में भेजी गई कहानियों में यह कहानियां सराहनीय रही हैं।

परिवार परिशिष्ट (06 अगस्त 2025) के पेज 4 पर किड्स कॉर्नर में चित्र देखो कहानी लिखो 41 में भेजी गई कहानियों में यह कहानियां सराहनीय रही हैं।

जयपुर

Tasneem Khan

Aug 13, 2025

परिवार परिशिष्ट (06 अगस्त 2025) के पेज 4 पर किड्स कॉर्नर में चित्र देखो कहानी लिखो 41 में भेजी गई कहानियों में यह कहानियां सराहनीय रही हैं।

जादुई जूते और वासु की खोज
एक दिन सात साल का नटखट लड़का वासु अपने आंगन में खेल रहा था कि अचानक उसकी नजर एक पुराने बैग पर पड़ी। बैग भारी था और जब उसने उसे खोला तो उसकी आंखें चमक उठीं। बैग सोने के सिक्कों से भरा हुआ था! मगर असली चौंकाने वाला दृश्य तब सामने आया। जब वासु ने देखा कि पास ही रखे दो बड़े-बड़े जूते अपने आप हिल रहे हैं। अचानक एक जूते पर एक नन्हा मानव रूपी जानवर खड़ा हो गया। उसका शरीर इंसानों जैसा था, पर चेहरा खरगोश जैसा। उसके लंबे कान थे और आंखों में चमक। वह वासु को सीधे देख रहा था, जैसे कोई गहरी बात कहनी हो। वासु ने डरने के बजाय उससे पूछा, तुम कौन हो? नन्हे जीव ने मुस्कुराकर कहा, मैं जूटराम हूं, जादुई जूतों का रक्षक। ये सोने के सिक्के तुम्हारे नहीं हैं जब तक तुम इन जूतों की सच्चाई नहीं जान लेते। वासु ने हिम्मत दिखाते हुए जूते पहने और अगले ही पल गायब हो गया। वह एक रहस्यमय दुनिया में पहुंच गया जहां हर चीज बोल सकती थी- पेड़, चट्टानें और यहां तक कि बादल भी। अब वासु की एक रोमांचक यात्रा शुरू हो चुकी थी- सच्चाई, साहस और दोस्ती की खोज में!
विवेक जगदीश मीणा,उम्र-8वर्ष

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लाल फूल और सोने का ढेर
एक समय की बात है, रमेश नाम का एक मेहनती और ईमानदार लड़का था। उसके पास धन-दौलत नहीं थी, लेकिन उसका दिल बहुत बड़ा था। एक दिन जंगल से लौटते समय, उसे रास्ते में एक बड़ा सा बोरा मिला, जो सोने के सिक्कों से भरा हुआ था। कुछ सिक्के बोरे से बाहर भी बिखरे हुए थे। रमेश ने पहले कभी इतना सोना नहीं देखा था और उसे देखकर उसकी आंखें चौंधिया गईं। लेकिन तभी उसकी नजर पास पड़े एक पुराने जूते पर पड़ी, जिसमें से एक नन्हा-सा, खूबसूरत लाल फूल खिला हुआ था। उस फूल को देखकर रमेश का मन मोह गया। उसने सोचा कि यह फूल सोने के सिक्कों के ढेर से कहीं ज्यादा कीमती है। सोने का लालच उसे परेशान कर रहा था, लेकिन उस लाल फूल की सादगी और सुंदरता ने उसे शांति दी। रमेश ने सोचा कि सोने के सिक्के तो कोई भी पा सकता है, लेकिन इस सूखे और पुराने जूते में से फूल का खिलना एक चमत्कार से कम नहीं है। यह प्रकृति का एक अद्भुत उपहार था, जिसकी कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती थी। उसने सोने के सिक्कों को वहीं छोड़ दिया और उस फूल को देखने लगा। रमेश ने महसूस किया कि सच्चा धन सोने में नहीं, बल्कि प्रकृ ति की सुंदरता और जीवन के छोटे-छोटे चमत्कारों में छिपा है। उसने उस फूल की देखभाल करने का फैसला किया। यह जानते हुए कि यह उसे सोने से कहीं अधिक खुशी देगा। उसने अपने जीवन में एक महत्त्वपूर्ण सबक सीखा- बाहरी चमक-दमक के पीछे भागने के बजाय हमें अपने आसपास की सुंदरता को संजोना चाहिए। क्योंकि असली खुशी इन्हीं छोटी-छोटी चीजों में होती है। उसने मुस्कुराते हुए फूल को देखा और अपने रास्ते पर आगे बढ़ गया। उसका मन धन से नहीं, बल्कि शांति और संतोष से भरा हुआ था।
मोहिल सोनवानी,उम्र-10वर्ष

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लालची लड़का और जादुई जूते
रोहन एक लालची लड़का था। जंगल में उसे एक साधु मिले, जिन्होंने उसे जादुई जूते और सोने के सिक्कों की थैली दी। जूते उसे कहीं भी ले जा सकते थे और थैली से अनगिनत सिक्के निकलते थे। साधु ने कहा, इन्हें अच्छे कामों के लिए इस्तेमाल करना। रोहन ने धन का दिखावा किया और दूसरों की मदद करने के बजाय और लालची हो गया। एक दिन वह खजाने की गुफा में पहुंचा, लेकिन जूते और थैली की ताकत खत्म हो गई। वह गुफा में फंस गया। साधु ने उसे बचाया और समझाया कि लालच का अंत दुखद होता है। रोहन ने माफी मांगी और नेक बनने का वादा किया। उसने सीखा कि असली धन सच्चाई और मदद में है।
आरोही अग्रवाल,उम्र-7वर्ष

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जादुई जूते
एक दिन 12 साल का राहुल जंगल में खेलते हुए एक थैली और पुराने जूतों के पास पहुंचा। थैली में सोने के सिक्केे थे और जूते चमक रहे थे। राहुल ने जैसे ही एक जूता पहना और फिर वह अदृश्य हो गया! डरते हुए उसने दूसरा भी पहन लिया और उसके पैर अपने आप थैली की ओर बढऩे लगे। उत्साहित होकर वह सिक्के उठाने ही वाला था कि एक अजीब सी आवाज गूंजी- लालच का अंत विनाश है। राहुल ने इधर-उधर देखा, कोई नहीं था। अचानक थैली गायब हो गई और जूते भारी होने लगे। राहुल गिर पड़ा। तभी एक साधु प्रकट हुआ और बोला, ये जूते केवल उस बच्चे को धन देते हैं जो दिल से ईमानदार हो। राहुल ने जूते उतारे और वादा किया कि वह मेहनत से ही कमाएगा। उस दिन के बाद राहुल ने कभी शॉर्टकट की राह नहीं चुनी। सालों बाद वह एक सफल इंसान बना और उसी जंगल के पास एक स्कूल खोला, जहां बच्चों को सिखाया जाता था- सच्ची दौलत मेहनत में है, जादू में नहीं।
विपेंद्र लोधी,उम्र-12वर्ष

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जादुई जूते
एक दिन 12 साल का अर्जुन जंगल में टहलने गया। चलते-चलते उसकी नजर एक अजीब सी चीज पर पड़ी- एक जोड़ी चमकदार जूते! उसने जैसे ही उन जूतों में हाथ डाला। उनके पास रखी बोरी से अचानक सोने के सिक्के गिरने लगे। अर्जुन हैरान रह गया! वह समझ गया कि ये कोई साधारण जूते नहीं, बल्कि जादुई जूते हैं। जितनी बार वह उन्हें छूता, उतनी बार नए सिक्के प्रकट हो जाते। अब अर्जुन के मन में कई सवाल आने लगे। क्या वह इन सिक्कों को अपने लिए रखे? क्या वह अमीर बन जाए? लेकिन फिर उसने अपने गांव के गरीब बच्चों और बुज़ुर्गों की हालत याद की। अर्जुन ने फैसला किया कि वह इन जादुई सिक्कों का इस्तेमाल लोगों की मदद करने के लिए करेगा। उसने स्कूल के लिए किताबें खरीदीं, दवाइयां मंगवाईं और भूखे लोगों को खाना खिलाया। धीरे-धीरे अर्जुन का गांव एक खुशहाल गांव बन गया। सब लोग अर्जुन की तारीफ करने लगे और उसे प्यार और आशीर्वाद देने लगे। सीख- अगर आपके पास कोई चमत्कारिक ताकत हो तो उसका सही इस्तेमाल करें- अपने लिए नहीं, सबके लिए।
मयंक शर्मा,उम्र-10वर्ष

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जादुई जूते और सोने का खजाना
एक दिन अर्जुन नाम का एक 12 साल का लड़का जंगल के पास खेल रहा था। खेलते-खेलते वह एक पुराने पेड़ के पास पहुंचा। वहां उसे जमीन में कुछ चमकता हुआ दिखाई दिया। उसने जमीन को थोड़ा खोदा तो एक जोड़ी पुराने लेकिन चमकते हुए जूते निकले। जैसे ही अर्जुन ने उन जूतों को उठाया। जूतों के नीचे से एक बड़ा थैला बाहर आ गया। जो सोने के सिक्कों से भरा हुआ था! अर्जुन की आंखें चमक उठीं। उसने चारों ओर देखा, लेकिन वहां कोई नहीं था। अर्जुन ने वह थैला उठाया, लेकिन तभी उसे एक आवाज सुनाई दी- जो यह खजाना पाए, उसे इसका सही इस्तेमाल करना होगा। यह सिर्फ लालचियों के लिए नहीं है। अर्जुन समझ गया कि यह खजाना कोई आम खजाना नहीं है, बल्कि एक परीक्षा है। उसने सोचा कि वह इस धन से अपने गांव के स्कूल में किताबें और खेलकूद का सामान खरीदेगा, ताकि बाकी बच्चे भी आगे बढ़ सकें। उस दिन के बाद से अर्जुन गांव का हीरो बन गया। उसने सिखाया कि सच्ची दौलत दूसरों की मदद करने में है।
मन्नत,उम्र-13वर्ष

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जादुई जूते और दोस्ती
एक दिन एक छोटा लड़का आरव बगीचे में खेल रहा था। तभी उसे एक पुराना जूता मिला। जैसे ही उसने उसे उठाया, जूते में से एक छोटा सा बौना बाहर आया। उसका नाम था गप्पू। गप्पू ने कहा, मैं एक जादुई दुनिया से हूं। ये जूते सिर्फ सच्चे दिल वाले बच्चों को दिखते हैं। फिर गप्पू ने जूते के पास एक मंत्र पढ़ा और वहां ढेर सारे सोने के सिक्कों से भरा थैला आ गया। आरव चौंक गया, लेकिन उसने कहा, मुझे ये धन नहीं चाहिए। बस मेरे पापा बहुत बीमार हैं, क्या तुम उनकी मदद कर सकते हो? गप्पू मुस्कुराया और अपनी टोपी से एक जादुई फूल निकाला। ये फू ल तुम्हारे पापा को ठीक कर देगा। आरव वो फूल लेकर घर गया और पापा को दिया। कुछ ही दिनों में वे ठीक हो गए। अब आरव और गप्पू हर रोज मिलते और जरूरतमंद लोगों की मदद करते। सीख- सच्चा दिल ही सबसे बड़ी ताकत है।
माधव मिश्रा,उम्र-13वर्ष

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जादुई जूते
एक दिन रोहन अपने बगीचे में खेल रहा था। तभी उसे एक अजीब सी आवाज सुनाई दी- छप… छप…। उसने देखा कि एक पुराना जोड़ी जूता खुद-ब-खुद हिल रहा है। जैसे ही वह पास गया, जूते के नीचे से एक चमचमाती सोने की थैली निकली। थैली में ढेर सारे सोने के सिक्के थे। रोहन हैरान रह गया। लेकिन तभी जूतों में से एक छोटी सी आवाज आई, तुम ईमानदार हो, इसलिए ये खजाना तुम्हें मिला है। लेकिन ध्यान रहे, इसका उपयोग केवल अच्छे कामों में करना। रोहन ने उस धन का उपयोग अपने गांव के गरीब बच्चों के लिए स्कूल बनवाने, किताबें बांटने और खेल का सामान खरीदने में किया। अब गांव के सभी बच्चे रोहन को अपना हीरो मानते हैं। रोहन जानता था कि असली खजाना दौलत नहीं, बल्कि उसका उपयोग कैसे किया जाता है यही सबसे बड़ी बात है।
शिवांश सोनी,उम्र-7वर्ष

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मिलकर काम करने में ही मुश्किलों का हल है
एक बार की बात हैं, एक छोटे से गांव में राजू नाम का एक शरारती लड़का रहता था। उसकी उम्र 10 साल थी और उसे हमेशा नए-नए कारनामों की तलाश रहती थी। एक दिन राजू अपने दोस्तों के साथ गांव के बाहर खेल रहा था। खेलते-खेलते उन्हें एक पुराना, जीर्ण-शीर्ण घर दिखा। घर के पास एक बड़ा सा बोरा पड़ा था, जिसमें कुछ चमकती हुई चीजें दिख रही थीं। राजू और उसके दोस्त उत्सुकता से बोरे के पास गए। बोरे में ढेर सारे मक्के के दाने थे, जो धूप में चमक रहे थे। राजू को एक शरारत सूझी। उसने सोचा कि क्यों न इन दानों को इकट्ठा करके घर ले जाया जाए। लेकिन बोरा बहुत भारी था और राजू उसे उठा नहीं पा रहा था। तभी उसकी नजर पास पड़े एक पुराने जूते पर पड़ी। उसने सोचा कि क्यों न इस जूते का इस्तेमाल करके दाने इकट्ठा किए जाएं। राजू ने अपनी कमर झुकाई और जूते को हाथ में लेकर दाने इकट्ठा करने लगा। उसके दोस्त भी उसकी मदद करने लगे। थोड़ी ही देर में उन्होंने काफी सारे दाने इकट्ठा कर लिए। राजू और उसके दोस्त बहुत खुश थे। उन्होंने उन दानों से अपने घर में भुट्टा बनाया और सबने मिलकर मजे से खाया। उस दिन राजू ने सीखा कि अगर हम सब मिलकर काम करें तो कोई भी मुश्किल आसान हो जाती है।
वेदांश कोठारी,उम्र-10वर्ष

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अच्छे कर्मों का फल
एक बार एक लड़का बगीचे में खेल रहा था। तभी उसे वहां एक घायल चूहा दिखाई दिया। उसने उसे उठाया और उसकी देखभाल की कुछ दिनों में वह ठीक हो गया तो लड़के ने उसे अन्य चूहों के साथ छोड़ दिया। वह चूहा लड़के का दोस्त बन गया था। कुछ दिनों बाद वह चूहा अन्य चूहों को साथ लेकर उसके पास आया और उसके नये जूते ले जाने लगा। लड़के ने चूहें को जूते ले जाते देखा तो उसनें चूहों का पीछा किया तो देखा कि चूहों ने उसके जूतो को एक बोरे के पास डाल दिया। एक चूहा बोरे को काटा रहा था। उसमें से सोने के सिक्के निकले लड़के ने सिक्कों के बोरे को देखकर चूहों के इस काम के बारे मे समझकर चूहों को धन्यवाद कहा और खुशी-खुशी वहां से सिक्को का बोरा और जूते लेकर घर चला आया। इस प्रकार उसे उसके अच्छे कार्य का फल मिल गया।
हिमांशी चबरवाल,उम्र-10वर्ष

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जीवन की खुशी
एक बार की बात है रवि नाम का एक लड़का था। वह बहुत सीधा-सादा और मेहनती था। एक दिन वह जंगल के रास्ते से जा रहा था कि अचानक उसकी नजर एक अजीब सी जगह पर पड़ी। वहां जमीन पर एक पुरानी बोरी पड़ी थी, जिसमें से सोने के सिक्के बाहर बिखर रहे थे। बोरी के पास एक शानदार चमड़े के जूते भी रखे थे। रवि की आंखें चौंधिया गईं। इतना सोना उसने पहले कभी नहीं देखा था। वह सोचने लगा, अगर यह सब सोना मेरा हो जाए, तो मेरी सारी मुश्किलें खत्म हो जाएंगी। मैं अपनी पसंद का हर काम कर पाऊंगा और कभी भूखा नहीं रहूंगा। वह उस बोरी की ओर ललचाई हुई नजरों से देख रहा था कि तभी उसकी नजर सोने के सिक्के और जूते के बीच उगे एक छोटे से फू ल पर पड़ी। वह नन्हा फूल बहुत खूबसूरत था और उसकी सुगंध हवा में घुल रही थी। रवि ने झुककर उस फूल को देखा। वह फूल बहुत नाजुक था, लेकिन उसकी सुंदरता सोने की चमक से कहीं ज्यादा मनमोहक थी। रवि ने सोचा, यह सोना मुझे सब कुछ दे सकता है, लेकिन क्या यह मुझे इतनी खुशी दे पाएगा। जितनी इस छोटे से फूल को देखकर मिल रही है? क्या यह मुझे प्रकृ ति की सुंदरता का अनुभव करा पाएगा? उसने अपनी जेब से एक बीज निकाला और उस छोटे से पौधे के पास लगा दिया। फिर उसने सोने की बोरी और महंगे जूते को वहीं छोड़ दिया। वह अपने पुराने जूते पहनकर और अपने जीवन की सादगी में खुश होकर आगे बढ़ गया। रवि समझ चुका था कि असली खुशी पैसों में नहीं, बल्कि प्रकृ ति की सुंदरता और जीवन के छोटे-छोटे पलों मे छुपी हैं।
शैलपुत्री गुर्जर,उम्र-8वर्ष

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रास्ते पर पड़ी सिक्कों की बोरी
एक बार की बात है एक छोटे से गांव में एक कुंभाराम नामक एक लड़का रहता था। एक बार वह शहर पर निकला आगे जाकर उसने देखा कि एक सोने के सिक्के से भरी बोरी जमीन पर पड़ी थी। थोड़े से सिक्के नीचे भी गिरे थे। वह चिल्लाया अरे यह बोरी किसकी है। आस-पास कोई नहीं था तभी उसकी नजर बोरी के पास पड़े जूते पर पड़ी। उन जूते पर एक छोटी सी चीज चलती हुई दिख रही थी। उसने पास जाकर देखा तो वह कुछ और नहीं बल्कि एक छोटा सा इंसान था। वह थोड़ा हिचकिचाया पर खुद को संभाल कर बोला तुम कौन हो और कहां से आए हो। वह बोला मैं पिंटू हूं और मैं अपने खाने पीने के लिए ऐसे सोने के सिक्के इकट्ठा कर रहा हूं। कुंभाराम ने पूछा पर तुम इतने सारे पैसों का क्या करोगे। उसने कहा मैं थोड़े अपने खाने-पीने में ले लूंगा और अपने पास रख लूंगा। उसने हंसते हुए पिंटू को हाथों में उठा लिया और वह अच्छे से अच्छे दोस्त बन गए।
दिव्यांशी,उम्र-10वर्ष

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खजाने की छोटी दुनिया
लक्ष्य एक होशियार और जिज्ञासु लड़का था। एक दिन उसने घर के एक पुराने बंद पड़े कमरे में जूतों के पास कुछ चमकती चीजें देखीं। करीब जाकर देखा तो वह एक छोटे से गिन्नी के बराबर का खिलौना था, जो जूते के अंदर पड़ा था। लक्ष्य ने झट से उस जूते के पास रखे थैले को देखा, जिसमें सुनहरे सिक्के भरे थे। लक्ष्य की आंखें चमक उठीं। उसने सोचा, क्या ये सच में खजाना है? उसने एक सिक्का उठाया और महसूस किया कि वह बहुत भारी है। लेकिन लक्ष्य ने समझदारी दिखाते हुए तुरंत अपने दोस्तों को बुलाया। उसने कहा, यह खजाना मेरा नहीं है, हमें इसे सही मालिक को देना चाहिए। लक्ष्य ने अपने दादाजी से बताया। दादाजी ने समझाया कि यह जूते और सिक्के उनके पूर्वजों के थे, जो अपने मेहनत की कमाई बचाते थे। उन्होंने लक्ष्य को सिखाया कि धन से ज्यादा जरूरी है ईमानदारी और परिवार की विरासत। लक्ष्य ने फैसला किया कि वह इस खजाने की कहानी स्कूल में सभी बच्चों को बताएगा, ताकि वे भी अपने परिवार और संस्कृति की कद्र करें। वह जानता था कि असली खजाना वह प्यार और संस्कार हैं जो हमें मिले हैं।
लक्ष्य,उम्र-9वर्ष

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जूते का रहस्य
राहुल जंगल में घूम रहा था। तब उसे दो बड़े जूते दिखे, उनके बीच सोने के सिक्कों का थैला पड़ा था। सिक्के जमीन पर चमक रहे थे। हैरान होकर उसने देखा एक छोटी चिड़िया जूते में कूद रही थी, पंख फैलाए। राहुल ने झुककर हाथ बढ़ाया। चिड़िया चहककर बोली, यह मेरा खजाना है, पर चोर इसे ले जाना चाहते हैं। राहुल ने दूर से घोड़ों की आहट सुनी- चोर आ रहे थे! वह डर गया, पर हिम्मत नहीं हारी। चिडिय़ा घबराई तो राहुल ने थैला उठाया और चिड़िया को जूते में छिपाया। चोर आए और राहुल ने थैले से कु छ सिक्के निकालकर इधर-उधर फेंक दिए। चोर उन्हें चुनने लगे और राहुल ने दूसरा जूता उठाकर चिडिय़ा को जंगल की झाडिय़ों में ले गया। वहां उसने थैला एक पेड़ की डाल पर रखा, जहां चिडिय़ा सुरक्षित रह सके। चिड़िया ने खुशी से उड़ान भरी और राहुल को धन्यवाद दिया। राहुल ने सोचा, साहस और चतुराई से दोस्तों की मदद हो सकती है। उस दिन से वह जंगल में हर छोटे प्राणी को बचाने लगा। शिक्षा- साहस और चतुराई से दोस्तों की मदद हो सकती है।
आदित्य,उम्र-12वर्ष

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जादुई खजाना
रामा और कृ ष्णा नाम के दो दोस्त थे। जिनके साथ में एक चूहा भी था जिसका नाम उन्होंने बंधू रखा था। एक बार की बात है, जब तीनों घूमने गए तब उन्हें एक थैले में भरा हुआ खजाना दिखाई दिया। तीनों खजाने के पास पहुंचे और कृष्णा ने जैसे ही खजाने को छुआ वह गायब हो गया। रामा और बंधू सोच में पड़ गए की आखिर यह क्या हुआ है और कृ ष्णा कहां गायब हो गया। तब रामा ने सोचा की कृष्णा को वापस लाने के लिए मुझे ही इस खजाने को छू कर देखना होगा। तभी इस खजाने का रहस्य पता चल पाएगा। रामा जैसे ही खजाने को छूता है वह भी गायब हो जाता है और एक दूसरी दुनिया में पहुंच जाता है, जहां कृष्णा और बहुत से लोग थे। जो उस खजाने को छूने के कारण वहां पहुंचे थे। इधर बेचारा बंधू अकेला इन दोनों की राह देखता रहता। रामा फिर जादुई खजाने से कहता कि हमसे गलती हुई है और हमने इसे लालच में आकर छू लिया था। कृ पया हमें माफ कर दो और वापस जाने दो। तब खजाना कहता है ठीक है तुम्हे वापस जाने दूंगा। किन्तु वादा करो कि अब कभी भी लालच नहीं करोगे और मेहनत से ही सब हासिल करोगे। तब रामा और कृ ष्णा वादा करते है कि हम हमेशा मेहनत करके ही सब कुछ हासिल करेंगे। बिना मेहनत के लालच के कु छ भी पाने का विचार तक मन में नहीं लाएंगे। इस वादे से जादुई खजाना इन दोनों को वापस भेज देता है। दोनों मिलकर फिर बंधू से यह बताते है। अब तीनों बिना लालच किए वहां से चल जाते है।
तनवी सोलंकी,उम्र-13वर्ष

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