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दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: CRPF जवान की बर्खास्तगी रद, दो शादियों पर विवाद का मामला

Delhi High Court: अदालत ने यह दोहराया कि किसी भी अनुशासनात्मक निर्णय में न केवल नियम बल्कि न्याय और विवेक का भी पालन जरूरी है। दिल्ली हाईकोर्ट के इस फैसले को सरकारी सेवाओं में अनुशासनात्मक कार्रवाई की सीमा और मानवीय दृष्टिकोण के बीच संतुलन के उदाहरण के रूप में देखा जा रहा है।

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Delhi High Court gives verdict in dispute over CRPF jawan 2 marriages quashes dismissal

दिल्ली हाईकोर्ट ने सीआरपीएफ जवान की बर्खास्तगी रद की।

Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के एक जवान की बर्खास्तगी को रद करते हुए उसे तुरंत सेवा में बहाल करने के आदेश दिए हैं। अदालत ने कहा कि बर्खास्तगी जैसी कठोर कार्रवाई न केवल कर्मचारी को बल्कि उसके पूरे परिवार को आर्थिक और सामाजिक संकट में डाल देती है। दरअसल, सीआरपीएफ जवान को विभागीय अधिकारियों ने तीन आरोपों के आधार पर सेवा से बर्खास्त किया था। इसमें पहली पत्नी के रहते दूसरी महिला से विवाह करना, नियोक्ता को पूर्व सूचना दिए बिना विवाह करना, दूसरी पत्नी की बेटी की औपचारिक गोद लेने से पहले ही उसके लिए चाइल्ड केयर अलाउंस (बाल देखभाल भत्ता) का दावा करना आदि आरोप शामिल थे।

कोर्ट ने कहा-बर्खास्तगी अत्यधिक कठोर कदम

न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने 13 अक्टूबर को दिए गए आदेश में कहा कि सेवा से बर्खास्तगी कोई सामान्य अनुशासनात्मक कदम नहीं हो सकती, खासकर तब जब कर्मचारी पर लगे आरोप न तो नैतिक पतन से जुड़े हों और न ही वित्तीय अनियमितता से। पीठ ने कहा, "सेवा से हटाना एक अत्यंत कठोर दंड है, जो न केवल कर्मचारी की आजीविका समाप्त करता है बल्कि उसके परिवार को भी असहनीय परिस्थितियों में धकेल देता है। इसलिए यह कदम केवल गंभीर और अपूरणीय अनुशासनहीनता की स्थिति में ही उठाया जाना चाहिए।"

पहली शादी ग्राम पंचायत के समक्ष खत्म होने का दावा

याचिकाकर्ता के वकील के.के. शर्मा ने अदालत को बताया कि जवान की पहली शादी ग्राम पंचायत की मौजूदगी में स्टांप पेपर पर हुए विवाह विच्छेद डीड के जरिए समाप्त की गई थी। इस तथ्य को बर्खास्तगी आदेश में भी दर्ज किया गया है और अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने इसकी सत्यता पर कोई संदेह नहीं जताया था। कोर्ट ने कहा कि यदि यह दस्तावेज मौजूद था और अधिकारी ने इस पर आपत्ति नहीं की, तो यह माना जाएगा कि जवान ने दूसरी शादी सद्भावना और ईमानदार विश्वास के आधार पर की थी।

बाल देखभाल भत्ते को लेकर कोर्ट का रुख

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि चाइल्ड केयर अलाउंस के मामले में भी जवान की मंशा गलत नहीं थी। अदालत ने कहा, "यह तथ्य कि बच्ची वास्तव में याचिकाकर्ता की दूसरी पत्नी की बेटी थी, इस दावे को अवैध नहीं बनाता कि उसने बाल देखभाल भत्ता लिया। भले ही औपचारिक गोद लेने की प्रक्रिया बाद में हुई हो, बच्ची की जिम्मेदारी पहले से ही याचिकाकर्ता पर थी।"

सेवा में निरंतरता और लाभ का आदेश

अदालत ने जवान को उसकी सेवा में निरंतरता प्रदान करने का निर्देश दिया है। इसके तहत उसे वरिष्ठता और वेतन निर्धारण जैसे सभी सेवा लाभ मिलेंगे। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि जिस अवधि में उसने वास्तविक रूप से सेवा नहीं दी है, उसके लिए वह वेतन का हकदार नहीं होगा।