दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला।
Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए स्पष्ट किया है कि भूमि पर कब्जे या बेदखली से जुड़ी शिकायतों के मामलों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 का उपयोग किसी बैंक को उसके वैध बंधक (मॉर्गेज) अधिकारों के प्रयोग से रोकने के लिए नहीं किया जा सकता। यह टिप्पणी अदालत ने एक्सिस बैंक लिमिटेड बनाम राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के मामले में प्रथम दृष्टया (prima facie) आधार पर की। दिल्ली हाईकोर्ट के इस आदेश ने एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है कि एससी/एसटी एक्ट का उद्देश्य सामाजिक न्याय और सुरक्षा सुनिश्चित करना है, न कि वित्तीय या बैंकिंग विवादों में दखल देना। यह फैसला न केवल बैंकों के लिए राहत का कारण बना है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि संवैधानिक और वैधानिक संस्थाओं की सीमाओं का सम्मान आवश्यक है।
जस्टिस सचिन दत्ता की पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया इस मामले में एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(1)(एफ) और 3(1)(जी) लागू नहीं होतीं। अदालत ने कहा कि इन धाराओं का उद्देश्य अनुसूचित जाति या जनजाति के व्यक्ति की भूमि पर अवैध कब्जा या उसे बेदखल करने के अपराधों को रोकना है, न कि किसी बैंक को अपने वैध वित्तीय अधिकारों का उपयोग करने से रोकना। कोर्ट ने इस आदेश के साथ एक्सिस बैंक, उसके एमडी और सीईओ के खिलाफ राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग द्वारा शुरू की गई कार्यवाही पर अंतरिम रोक (stay) लगा दी। इस मामले की अगली सुनवाई 5 फरवरी, 2026 को निर्धारित की गई है।
यह विवाद साल 2013 से जुड़ा है, जब एक्सिस बैंक लिमिटेड ने सुंदेव अप्लायंसेज लिमिटेड को लगभग ₹16.69 करोड़ का ऋण प्रदान किया था। इसके लिए महाराष्ट्र के वसई स्थित एक संपत्ति को गिरवी (mortgage) रखा गया था। बाद में कंपनी द्वारा भुगतान न करने पर बैंक ने 2017 में खाते को एनपीए (Non-Performing Asset) घोषित किया और SARFAESI अधिनियम (Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act) के तहत अपने अधिकारों का प्रयोग शुरू किया। इसी प्रक्रिया के दौरान संपत्ति के स्वामित्व को लेकर सिविल विवाद उत्पन्न हुआ, जिसके बाद एक पक्ष ने मामला राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes) के समक्ष पहुंचाया।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि बैंक ने एससी/एसटी समुदाय के सदस्य की भूमि पर कब्जा करने और उसे बेदखल करने का प्रयास किया, जो कि एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(1)(एफ) और 3(1)(जी) का उल्लंघन है। इस शिकायत के आधार पर आयोग ने एक्सिस बैंक के एमडी और सीईओ को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया। बैंक ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी, यह दलील देते हुए कि आयोग को ऐसे मामलों में अधिकार क्षेत्र (jurisdiction) प्राप्त नहीं है, क्योंकि यह एक वाणिज्यिक लेन-देन है, न कि जातिगत उत्पीड़न का मामला।
अदालत ने कहा कि आयोग की कार्यवाही उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर प्रतीत होती है। कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि आयोग की ओर से बैंक अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से तलब करने का कोई स्पष्ट कानूनी आधार या तर्क पेश नहीं किया गया था। हाईकोर्ट ने कहा “प्रथम दृष्टया, एससी/एसटी एक्ट की संबंधित धाराओं को याचिकाकर्ता (बैंक) के मॉर्गेज अधिकारों के प्रयोग को रोकने के लिए लागू नहीं किया जा सकता।”
धारा 3(1)(एफ) के अनुसार, किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति की भूमि पर अवैध कब्जा करने या उसकी खेती करने पर दंड का प्रावधान करती है। धारा 3(1)(जी) के अनुसार, किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति को उसकी भूमि या संपत्ति से गलत तरीके से बेदखल करने पर दंड का प्रावधान करती है। अदालत ने स्पष्ट किया कि ये धाराएं जातिगत उत्पीड़न या भेदभाव से सुरक्षा के लिए बनाई गई हैं, न कि वाणिज्यिक या वित्तीय विवादों में हस्तक्षेप के लिए।
Published on:
22 Oct 2025 05:20 pm
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