
क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया (Photo-IANS)
Delhi Cloud-Seeding trial: दिल्लीवासियों को जहरीली हवा से राहत दिलाने के लिए लगातार वैज्ञानिक प्रयोग किए जा रहे है। दिल्ली सरकार और आईआईटी कानपुर मिलकर राजधानी में पहली बार क्लाउड सीडिंग ट्रायल कर रहे हैं। दिल्ली सरकार ने 3.21 करोड़ रुपये की लागत से उत्तर पश्चिम दिल्ली में पांच परीक्षण करने की योजना बनाने के लिए सितंबर में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (कानपुर) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
राजधानी में क्लाउड सीडिंग के बाद भी बादलों में कम नमी के कारण कृत्रिम बारिश नहीं हो पाई है। इसके बारे में जानकारी देते हुए आईआईटी कानपुर के निदेशक मनिंद्र अग्रवाल ने बतया कि भले ही दिल्ली में कृत्रिम बारिश के परीक्षण से बारिश नहीं हुई लेकिन इससे उपयोगी जानकारी मिली है। उन्होंने बताया कि बादलों में नमी सिर्फ 15 प्रतिशत थी। 28 अक्टूबर को किया गया परीक्षण पूरी तरह सफल नहीं रहा, क्योंकि नमी का स्तर महज 15 से 20 प्रतिशत ही था। इस वजह से बारिश नहीं हो पाई। फिर भी यह प्रयास बेकार नहीं गया। दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में लगाए गए निगरानी केंद्रों ने हवा में मौजूद कणों और नमी के स्तर में होने वाले बदलाव को लगातार रिकॉर्ड किया।
आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों का मानना है कि ये नतीजे भविष्य की योजनाओं को मजबूत बनाएंगे। इससे उन्हें यह समझने में मदद मिलेगी कि किन मौसमी परिस्थितियों में यह तकनीक सबसे ज्यादा फायदा पहुंचा सकती है। ऐसे अनुभव आगे चलकर इस तकनीक को और प्रभावी ढंग से लागू करने की आधारशिला रखते हैं।
क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें, वातावरण में बारिश कराने के लिए सिल्वर आयोडाइड नैनोकणों, आयोडीन युक्त नमक और सूखी बर्फ जैसे रसायनों को इस्तेमाल किया जाता है। इसका उपयोग पानी की कमी वाले क्षेत्रों में या ओलावृष्टि को कम करने और कोहरे को साफ करने के लिए किया जाता है। आईआईटी कानपुर द्वारा तैयार फॉर्मुलेशन में सिल्वर आयोडाइड नैनोपार्टिकल्स, आयोडाइज्ड सॉल्ट और रॉक सॉल्ट शामिल हैं। इसे हवाई जहाज़, रॉकेट या ज़मीन पर मौजूद मशीनों का उपयोग करके किया जा सकता है।
दिल्ली में प्रदूषण लगातार खतरनाक स्तर पर है। सीपीसीबी (CPCB) के अनुसार, सुबह दिल्ली का एक्यूआई 306 दर्ज किया गया, जो ‘बहुत खराब’ श्रेणी में आता है। आनंद विहार (321), आरके पुरम (320), सीरी फोर्ट (350), बवाना (336) और द्वारका (316) जैसे क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता बेहद खराब रही। 2024-25 की सर्दियों में दिल्ली भारत का सबसे प्रदूषित महानगर रहा, जहां औसत PM2.5 स्तर 175 माइक्रोग्राम/क्यूबिक मीटर दर्ज किया गया।
शिकागो विश्वविद्यालय में ऊर्जा नीति संस्थान की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों की तुलना में प्रदूषित हवा नागरिकों की जीवन प्रत्याशा को औसतन 11.9 साल कम कर रही है।
शहर पूरे वर्ष उच्च स्तर के प्रदूषण का अनुभव करता है और यह समस्या सर्दियों के महीनों में बढ़ जाती है, जब मौसम की स्थिति पड़ोसी राज्यों में खेत की आग से निकलने वाले हानिकारक धुएं के साथ मिलती है। दिवाली के दौरान जलाए जाने वाले पटाखों से निकलने वाला जहरीला धुंआ घातक मिश्रण में शामिल हो जाता है। हालांकि, मौसम की खराबी और मॉनसून के कारण इसे कई बार मई, जून, अगस्त, सितंबर और अक्टूबर की शुरुआत में टाला भी गया।
चीन हर साल बड़े पैमाने पर क्लाउड सीडिंग करता है बीजिंग ओलंपिक 2008 से पहले इसका उपयोग किया गया था। संयुक्त अरब अमीरात नियमित रूप से रेगिस्तानी इलाकों में इस तकनीक का इस्तेमाल करता है ताकि बारिश और नमी बनी रहे। अमेरिका, इज़राइल और ऑस्ट्रेलिया ने भी जल संकट वाले क्षेत्रों में इस तकनीक का उपयोग किया है। भारत में 1980 के दशक में तमिलनाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक में क्लाउड सीडिंग के प्रयोग किए गए थे, लेकिन सीमित सफलता मिली।
विशेषज्ञों का कहना है कि क्लाउड सीडिंग से अस्थायी राहत तो मिल सकती है, लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं है। वास्तविक सुधार तभी संभव है जब वाहनों, उद्योगों और पराली जलाने से होने वाले उत्सर्जन पर नियंत्रण किया जाए। वैज्ञानिकों का मानना है कि क्लाउड सीडिंग से 5% से 20% तक अतिरिक्त बारिश हो सकती है, बशर्ते मौसम अनुकूल हो। आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों के अनुसार, इस प्रक्रिया के लिए 50% से अधिक नमी जरूरी है। पिछले प्रयास असफल रहे जब वातावरण में नमी केवल 20% थी।
Updated on:
29 Oct 2025 09:30 pm
Published on:
29 Oct 2025 09:08 pm
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