मशहूर शायर, गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख़्तर। (फोटो:IANS.)
Javed Akhtar Controversy: मशहूर गीतकार व शायर जावेद अख़्तर (Javed Akhtar Controversy) के खिलाफ पश्चिम बंगाल में उठे आंदोलन के बाद आखिरकार ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) सरकार आंदालनकारियों के आगे झुक गई है। यहां की उर्दू अकादमी की ओर से आयोजित होने वाले मुशायरे और अन्य कार्यक्रमों को स्थगित कर दिया गया है। गुरुवार को अकादमी के बाहर भारी प्रदर्शन के बाद अकादमी की लंबी बैठकों के दौर चले और आयोजन न करने पर सहमति बन गई थी, उसके बाद शुक्रवार को अकादमी सचिव नुजहत जैनब (Nuzhat Zainab) ने हंगामी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कार्यक्रम स्थगित होने का बाकायदा ऐलान किया। उन्होंने साफ शब्दों में बात न कहते हुए नजरअंदाज न की जाने वाली परिस्थितियों के सबब यह फैसला लेने की बात कही।
इस विरोध के पीछे मुख्य कारण उर्दू अकादमी की ओर से जावेद अख्तर को कार्यक्रम की अध्यक्षता का निमंत्रण देना था, जिसके बाद बंगाल के मुस्लिम समुदाय में विरोध की लहर उठी। आंदोलनकारियों का कहना था कि अख्तर ने एक वीडियो में अल्लाह के खिलाफ टिप्पणी की थी। इस पर आम मुसलमानों के साथ ही जमीअत उलेमा ए हिंद ने भी विरोध का झंडा उठा लिया था।
यह विवाद उस समय शुरू हुआ जब बंगाल उर्दू अकादमी ने जावेद अख्तर को मुशायरा में अध्यक्ष बनाने का निर्णय लिया। यह खबर आते ही मुस्लिम धर्मगुरुओं और समुदाय के अन्य वर्गों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। इन विरोधियों का कहना था कि जावेद अख्तर के कुछ बयान उनके धार्मिक विश्वासों के खिलाफ हैं और इससे समुदाय में असंतोष फैल सकता है। खासकर, उनके कुछ बयानों को लेकर आरोप था कि वह मुसलमानों के खिलाफ हैं, जो कि कई मौकों पर विवाद का कारण बने थे।
बंगाल के कई इमामों और धर्मगुरुओं ने विरोध जताया कि अगर जावेद अख्तर मुशायरे की अध्यक्षता करेंगे, तो वे सरकारी अनुदान का विरोध करेंगे या उसे वापस कर देंगे। उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से अपील की कि वह इस निर्णय को बदलें। इस पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी सरकार की स्थिति स्पष्ट की और उर्दू अकादमी से कार्यक्रमों पर पुनर्विचार करने को कहा।
ममता सरकार को इस विवाद के कारण गंभीर दबाव का सामना करना पड़ा। सरकार के सामने यह चुनौती थी कि उसे एक ओर जहां उर्दू साहित्य के महत्व को बनाए रखना था, वहीं दूसरी ओर मुस्लिम समुदाय को भी नाराज नहीं करना था, जो बंगाल में एक महत्वपूर्ण वोट बैंक है। इस विवाद में अब तक जावेद अख्तर की ओर से कोई बयान नहीं आया, लेकिन यह साफ था कि बंगाल सरकार इस स्थिति को लेकर असमंजस में थी।
आखिरकार ममता सरकार ने इस विवाद को सुलझाने के लिए एक कदम पीछे हटते हुए मुशायरा और अन्य तीन दिवसीय कार्यक्रमों को स्थगित कर दिया। इस कदम से उर्दू अकादमी को झटका लगा, लेकिन सरकार ने इस निर्णय के माध्यम से मुस्लिम समुदाय को शांत करने की कोशिश की। वहीं, उर्दू अकादमी की सचिव नुजहत जैनब ने भी इस मुद्दे पर खेद व्यक्त किया कि वे इस विवाद से बचने में असफल रहे।
अब सवाल यह उठता है कि क्या यह विवाद और बढ़ेगा या फिर सुलझ जाएगा। बंगाल की राजनीति में यह मुद्दा नई बहस का कारण बन सकता है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए यह चुनौती अब भी बरकरार है, क्योंकि उन्हें अपनी पार्टी के मुस्लिम वोटरों को संतुष्ट करने के साथ-साथ साहित्य और संस्कृति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता भी दिखानी है।
बहरहाल यह घटनाक्रम दिखाता है कि राजनीति में धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दे कितने संवेदनशील होते हैं। बंगाल में जावेद अख्तर को लेकर यह विवाद ममता सरकार के लिए एक नया संकट बनकर उभरा था। अगर इस विवाद का समाधान जल्दी नहीं होता, तो यह राज्य की राजनीति में और अधिक उथल-पुथल पैदा हो सकती थी।
Published on:
30 Aug 2025 10:31 pm
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