
भारतीय विज्ञापन जगत के दिग्गज पीयूष पांडे (Photo-ANI)
Piyush Pandey Death: भारतीय विज्ञापन जगत के दिग्गज और ओगिल्वी इंडिया के क्रिएटिव लीडर पीयूष पांडे अब हमारे बीच नहीं रहे। 70 साल की उम्र में गुरुवार को उनका निधन हो गया। पांडे को सिर्फ एक विज्ञापन विशेषज्ञ के रूप में ही नहीं बल्कि ऐसी शख्सियत के रूप में याद किया जाता था, जिन्होंने भारतीय विज्ञापन को उसकी अपनी भाषा और आत्मा दी। विज्ञापन और क्रिएटिव इंडस्ट्री से जुड़े दिग्गजों ने कहा कि उन्होंने भारतीय संस्कृति को सिर्फ़ प्रभावित नहीं किया, उसे परिभाषित किया। उनके विज्ञापन हमारी साझा स्मृति का हिस्सा बन गए। वो पंक्तियां, वो गीत, वो भावनाएं, सब याद दिलाते हैं कि महान रचनात्मकता का मूल प्यार और समझ में है।
दिग्गज विज्ञापन फिल्म निर्देशक प्रहलाद कक्कड़ ने कहा कि पीयूष ने मेरी बायोग्राफी का रिव्यू किया था। वह पूरी तरह जमीन और संस्कृति से जुड़े व्यक्ति थे। राजस्थान रणजी टीम से खेलते हुए, जब क्रिकेट में ज्यादा पैसा नहीं था, तब वे ट्रेन से यात्रा करते थे। इसी दौरान उन्होंने देश की विविधता, लोगों और परंपराओं को गहराई से महसूस किया, जिसे कभी नहीं भूले। यही झलक उनके विज्ञापनों में दिखती है, आम आदमी से सीधा जुड़ाव और दर्शक की भावनाएँ। उनकी सबसे बड़ी खूबी थी कि जो काम उन्हें करना होता, खुद करते थे-किसी पर टालते नहीं। यही उन्हें अलग बनाती थी। वे यंगस्टर्स को संरक्षण देते, ट्रेनिंग देते और आगे बढ़ाते थे। उनके मार्गदर्शन में तैयार हुए कई लोग आज अत्यंत सफल हैं। उनकी खासियत थी-लीडरशिप के साथ नए टैलेंट को पहचानना, संरक्षित करना और श्रेय देना। आज ज्यादातर प्रोफेशनल्स ऐसा नहीं करते, लेकिन पीयूष यंग टैलेंट को बढ़ावा देते, संरक्षित करते और सम्मान देते थे।
निहिलेंट लिमिटेड के ग्लोबल चीफ क्रिएटिव ऑफिसर केवी श्रीधर, पॉप्स का कहना है कि पीयूष ने कमर्शियल विज्ञापनों के साथ-साथ भारत, भारत सरकार और संस्कृति के लिए भी काम किया। उन्होंने विज्ञापनों के जरिए भारतीय संस्कृति को आम लोगों से जोड़ा। वे अपने काम से लोगों को हँसाते, खुश रखते और संस्कृति से जोड़ते थे। उनके विज्ञापन सिर्फ व्यापारिक गतिविधि नहीं थे-बल्कि समाज, देश और संस्कृति के लिए थे। इसका प्रभाव आने वाले लंबे समय तक रहेगा।
बीबीडीओ इंडिया के चेयरमैन एंड चीफ क्रिएटिव ऑफिसर पॉल जोशी का कहना है कि पीयूष का 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' पर काम कुछ ऐसा था, जो बहुत कम रचनात्मक परियोजनाएँ कर पाती हैं। उन्होंने एकता को सिर्फ़ नारा नहीं, बल्कि एक भावना बना दिया। यह समानता की बात नहीं थी; यह सामंजस्य की बात थी। उस गान में हर भाषा, हर आवाज़, हर चेहरा-भारत की कहानी का एक अनूठा हिस्सा था, फिर भी सब एक साथ निर्बाध रूप से बहते थे। यह पीयूष के पूरे करियर का एक प्रारंभिक उदाहरण थी-भारतीय विज्ञापन को उसकी असली, अपनी आवाज़ देना। उन्होंने एक राष्ट्र को अपनी ही भाषा, ध्वनियों और लय में खुद को पहचानने में मदद की। पीयूष के विज्ञापन सिर्फ़ उत्पाद नहीं बेचते थे-वे हमारी कहानी कहते थे। पीयूष का काम गहरे तक मानवीय था। पीयूष समझते थे कि विज्ञापन की असली ताकत सहानुभूति में है। उन्होंने विज्ञापन की निजी, उत्पाद-केंद्रित आवाज़ को हटाकर उसकी जगह गहरी मानवीय आवाज़ दी। उनका काम हमारी सांस्कृतिक संरचना में बुना गया क्योंकि यह हमें हमारा ही जीवन दिखाता था-सरल, हास्यपूर्ण, भावनात्मक, पूरी तरह भारतीय।
Updated on:
24 Oct 2025 09:00 pm
Published on:
24 Oct 2025 08:59 pm
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