अरुंधति रॉय की पुस्तक पर विवाद। (फोटो: एक्स.)
Arundhati Roy Book Controversy: केरल हाईकोर्ट ने एक दिलचस्प जनहित याचिका (Kerala High Court PIL) को खारिज कर दिया है। यह मामला मशहूर लेखिका अरुंधति रॉय (Arundhati Roy ) की नई किताब 'मदर मैरी कम्स टू मी (Mother Mary Comes to Me)' के कवर से जुड़ा हुआ है। इस किताब के कवर पर रॉय को बीड़ी पीते हुए दिखाया गया है, जिस पर याचिकाकर्ता ने सवाल (Arundhati Roy Book Controversy) उठाया था। अदालत ने साफ कहा कि यह मुद्दा कोर्ट का नहीं, बल्कि विशेषज्ञों का काम है। यह फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और तंबाकू कानूनों के बीच संतुलन पर बहस छेड़ रहा है।
याचिका दायर करने वाले वकील राजसिंहन ने पिछले महीने यह जनहित याचिका PIL दायर की थी। उनका कहना था कि कवर पर तंबाकू से जुड़ी चेतावनी नहीं लगी, जो सिगरेट एंड अदर टोबैको प्रोडक्ट्स एक्ट (COTPA) का उल्लंघन है। उन्होंने चिंता जताई कि यह तस्वीर धूम्रपान को बुद्धिमत्ता और रचनात्मकता का प्रतीक बना रही है। इससे खासकर युवा लड़कियां और महिलाएं गलत प्रभावित हो सकती हैं। राजसिंहन ने जोर दिया कि उन्हें किताब की कहानी या लेखन से शिकायत नहीं, सिर्फ फोटो से शिकायत है। उन्होंने अदालत से किताब की बिक्री रोकने की गुजारिश की, जब तक चेतावनी न लगे।
प्रकाशक पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया ने अपना पक्ष मजबूती से रखा। उन्होंने बताया कि किताब के पिछले कवर पर साफ डिस्क्लेमर छपा है। इसमें लिखा है कि रॉय की बीड़ी वाली तस्वीर सिर्फ प्रतीकात्मक है, और कंपनी तंबाकू यूज को कभी प्रमोट नहीं करती। प्रकाशकों ने कहा कि याचिका जल्दबाजी में दाखिल हुई, बिना पूरी जांच के। उनका तर्क था कि यह चित्र किताब की थीम को दर्शाने के लिए है, न कि किसी प्रोडक्ट को बढ़ावा देने के लिए। अदालत ने इस डिस्क्लेमर को महत्वपूर्ण माना।
मुख्य न्यायाधीश नितिन जामदार और जस्टिस बसंत बालाजी की बेंच ने सोमवार को सुनवाई के बाद याचिका ठुकरा दी। कोर्ट का कहना था कि याचिकाकर्ता ने अहम फैक्ट छिपाया, जैसे डिस्क्लेमर की मौजूदगी। उन्होंने फरमाया कि ऐसे केसों का फैसला हाईकोर्ट नहीं, बल्कि COTPA के तहत बने एक्सपर्ट बॉडीज को करना चाहिए। ये बॉडीज सभी पक्षों को सुनकर फैसला लेती हैं। कोर्ट ने याचिकाकर्ता की मंशा पर भी सवाल उठाए। कहा कि यह PIL जनहित कम, पब्लिसिटी ज्यादा लग रही है। याचिकाकर्ता को वैधानिक अथॉरिटी के पास जाने की सलाह दी गई।
अदालत ने सख्त लहजे में कहा, "याचिकाकर्ता ने जरूरी तथ्य छिपाए और बिना जांच के कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। PIL को पर्सनल प्रमोशन का टूल न बनने दें।" यह फैसला किताबों में कल्चरल इमेजरी और हैल्थ लॉज के बीच बैलेंस सेट करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे क्रिएटिव फ्रीडम को मजबूती मिलेगी। लेकिन तंबाकू कंट्रोल एडवोकेट्स निराश हैं, उनका कहना है कि सांस्कृतिक कंटेंट भी रेगुलेट होना चाहिए।
केरल हाईकोर्ट का अरुंधति रॉय की किताब के कवर पर बीड़ी वाली तस्वीर को लेकर PIL खारिज करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की जीत है। यह फैसला दिखाता है कि अदालतें साहित्यिक रचनात्मकता और जनहित याचिकाओं के दुरुपयोग के बीच संतुलन बनाना चाहती हैं।
अब सवाल यह है कि क्या याचिकाकर्ता वैधानिक अथॉरिटी के पास जाएंगे, जैसा कि कोर्ट ने सुझाया है? क्या भविष्य में तंबाकू से जुड़े चित्रण पर और सख्त नियम लागू होंगे ? इस फैसले के बाद प्रकाशकों और लेखकों पर इसका क्या असर होगा, यह देखना बाकी है।
यह मामला भारत में सांस्कृतिक अभिव्यक्ति और सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों के बीच टकराव को उजागर करता है। किताब के कवर जैसे रचनात्मक कार्यों पर COTPA जैसे कानून कितने लागू हो सकते हैं? यह केस अन्य साहित्यिक और कलात्मक कार्यों के लिए भी नजीर बन सकता है।
बहरहाल यह केस अभिव्यक्ति की आजादी vs पब्लिक हेल्थ की जंग को हाईलाइट करता है। भारत में COTPA 2003 से तंबाकू प्रोडक्ट्स पर सख्त चेतावनियां जरूरी हैं, लेकिन किताब के कवर जैसे क्रिएटिव वर्क पर इसका दायरा साफ नहीं है। अरुंधति रॉय की किताबें हमेशा विवादों में रहती हैं, जो सामाजिक मुद्दों को छूती हैं। यह फैसला पब्लिशर्स को राहत देता है, लेकिन फ्यूचर में ऐसे केस बढ़ सकते हैं। क्या साहित्य हमेशा फ्री रहेगा? यह सवाल अब ओपन है। कुल मिलाकर, कोर्ट ने साफ संदेश दिया कि PIL का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं है।
Published on:
13 Oct 2025 04:46 pm
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