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पहले करेंगे दामाद की पूजा, फिर होगा वध, क्या है मंदसौर की अनोखी परंपरा

Dussehra 2025: अधर्म पर धर्म की विजय के रुप में मनाए जाने वाले दशहरा पर्व गुरुवार को मनाया जाएगा। अन्य शहरों के बजाए मंदसौर का दशहरा अनोखा होता है। दशहरे से मंदसौर की अनोखी मान्यता जुड़ी हुई है। यहां लंकाधीपति रावण की पूजा होती है।

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Mandsaur Dussehra

mandsaur dussehra ravana worship (फोटो सोर्स : पत्रिका)

Dussehra 2025: अधर्म पर धर्म की विजय के रुप में मनाए जाने वाले दशहरा पर्व गुरुवार को मनाया जाएगा। अन्य शहरों के बजाए मंदसौर का दशहरा अनोखा होता है। दशहरे से मंदसौर की अनोखी मान्यता जुड़ी हुई है। यहां लंकाधीपति रावण की पूजा होती है। शहर का दामाद होने के कारण महिलाएं प्रतिमा के सामने घूंघट में जाती है और सुबह पांव में लच्छा बांधकर उसकी विद्ववता की पूजा(Ravana worship) की जाती है। शाम को उसके अहंकार का दहन के साथ अंत किया जाता है।

रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका है मंदसौर

रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका मंदसौर को माना जाता है। इसी कारण दशानन को जमाई माना जाता है। नामदेव समाज रावण की प्रतिमा की शहर के खानपुरा में बनी रावण प्रतिमा की पूजा-अर्चना करता है। 210 सालों से भी अधिक समय से समाजजन रावण प्रतिमा की पूजा करते आ रहे है। इतना ही नहीं यहां पर रोगों से दूर रहने के साथ मनोकामना लेकर भी कई लोग आते है।

बुद्धिभ्रष्ट होने के प्रतीक के रूप में

खानपुरा क्षेत्र में रुंडी नामक स्थान पर रावण की प्रतिमा स्थापित है। इसके 10 सिर है। कहने को 10 मुंह है, लेकिन रावण की बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी और उसने माता सीता का हरण किया था। बुद्धिभ्रष्ट होने के प्रतीक के रुप में ऊपर प्रतीक के रुप में गधे का सिर लगाया गया। नगर पालिका हर साल दशहरे से पहले रंग-रोगंन के साथ मरमत का काम करती है।

करते हैं पूजा, बुराइयों के लिए करते हैं दहन

रावण विद्वान था। ऐसे में अच्छाइयों और कई शास्त्र में प्रकांड होने को लेकर उसकी पूजा की परंपरा शुरु हुई। इसी के चलते सालों से नामदेव समाज पूजा करता आया है और समाज यह परंपरा निभा रहा है। रावण ने मां सीताहरण जैसा काम किया था। इसी कारण उसकी बुराई के चलते रावण दहन भी शाम को समाजजन करते हैं। पूर्व में शहर को दशपुर के नाम से पहचाना जाता था। स्थानीय लोगों के अनुसार नामदेव समाज के लोग प्रतिमा की पूजा-अर्चना करते हैं। मन्नतों को लेकर पैर में लच्छा भी बांधते है। इस दौरान बाद राम और रावण की सेनाएं निकलती हैं। शाम को रावण के वध से पहले लोग रावण के समक्ष खड़े रहकर क्षमा-याचना करते हैं। मान्यता है कि इस प्रतिमा के पैर में धागा बांधने से बीमारी नहीं होती। यही कारण है कि अन्य अवसरों के अलावा महिलाएं दशहरे के मौके पर रावण की प्रतिमा के पैर में लच्छा बांधती है।

सवा दो सौ साल से हो रही पूजा

225 से अधिक वर्ष से रावण की प्रतिमा की पूजा की परंपरा समाज निर्वहन करता आ रहा है। कई प्रकार की मान्यताओं के साथ सुबह पूजा-अर्चना और शाम को रावण का दहन किया जाता है।- संदीप नामदेव, सचिव, नामदेव समाज