आस्था, संस्कृति और पशु प्रेम का अनोखा संगम; दूसरे दिन ‘कुकुर तिहार’ में कुत्ते को मिलता है शाही सम्मान (फोटो सोर्स : Whatsapp Group)
Kukur Tihar Celebration 2025 : भारत में जहां दीपावली रोशनी, लक्ष्मी पूजन और मिठाइयों का पर्व है, वहीं पड़ोसी देश नेपाल में यही त्योहार ‘तिहार’ के रूप में मनाया जाता है, एक ऐसा पांच दिवसीय उत्सव जो न केवल मनुष्य बल्कि पशु-पक्षियों और प्रकृति को भी सम्मान देता है। यह पर्व धनतेरस से भाई दूज तक चलता है और हर दिन किसी न किसी देवता या जीव को समर्पित होता है। नेपाल में दीपावली का यह पर्व धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह पर्व दर्शाता है कि नेपाल के लोग मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य को कितना गहराई से महसूस करते हैं।
तिहार पर्व का सबसे विशेष पहलू यह है कि इसमें पशु-पक्षियों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता का भाव झलकता है। नेपाल के लोगों का विश्वास है कि ये जीव केवल मनुष्य के साथी नहीं, बल्कि ईश्वरीय दूत हैं, जो मनुष्य के जीवन में शुभ संकेत लेकर आते हैं। यदि कोई व्यक्ति पशु-पक्षियों के प्रति सच्चा प्रेम देखना चाहता है, तो दीपावली के दौरान उसे नेपाल की यात्रा करनी चाहिए। इस दौरान पूरा देश एक आस्था और प्रेम के उत्सव में डूब जाता है।
तिहार पर्व का दूसरा दिन सबसे अनोखा और लोकप्रिय है, जिसे ‘कुकुर तिहार’ कहा जाता है। इस दिन कुत्तों की पूजा की जाती है। उन्हें तिलक लगाकर, गेंदा फूलों की मालाएं पहनाकर, स्वादिष्ट भोजन और मिठाइयां खिलाई जाती हैं। नेपाल के लोग इस दिन कुत्तों को सम्मान देने के साथ ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि ये जीव स्वर्ग में भी मनुष्य के सच्चे साथी बने रहें। यह मान्यता महाभारत की कथा से जुड़ी है- जब धर्मराज युधिष्ठिर स्वर्ग की यात्रा पर निकले थे, तब एक कुत्ता अंत तक उनके साथ रहा था। ‘कुकुर तिहार’ का दृश्य अत्यंत भावनात्मक होता है, सड़कों, मंदिरों और घरों में हर जगह सजे-संवरे कुत्तों की कतारें दिखती हैं। लोग उन्हें प्यार से सहलाते हैं, पूजा करते हैं और आशीर्वाद लेते हैं।
तिहार की शुरुआत धनतेरस के दिन होती है, जिसे नेपाल में ‘काग तिहार’ कहा जाता है। इस दिन लोग कौवों की पूजा करते हैं। कौवा संदेशवाहक और शुभ सूचना लाने वाला पक्षी माना जाता है। लोग घर की छतों और आंगनों में कौवों के लिए पकवान, मिठाइयां और फल रखते हैं। यह परंपरा मनुष्य और पक्षियों के बीच सहअस्तित्व के भाव को दर्शाती है।
तिहार के तीसरे दिन अमावस्या के अवसर पर गाय की पूजा की जाती है। गाय को समृद्धि और पवित्रता का प्रतीक माना गया है। सुबह गाय की पूजा करने के बाद शाम को लोग भगवान गणेश और माता लक्ष्मी का पूजन करते हैं। इस दिन नेपाल के घरों में दीपों की श्रृंखला जगमगाती है। घरों को फूलों, रंगोली और दीपों से सजाया जाता है। युवक-युवतियाँ इस रात पारंपरिक वेशभूषा में घर-घर जाकर भैलो गीत गाते हैं और नृत्य करते हुए अन्न, धन और मिठाइयाँ एकत्र करते हैं। रातभर गीत-संगीत और हर्षोल्लास का माहौल बना रहता है।
चौथे दिन को नेपाल में गोवर्धन पूजा और बैल पूजा के रूप में मनाया जाता है। किसान इस दिन अपने बैलों को स्नान कराते हैं, सजाते हैं और उन्हें माला पहनाकर पूजा करते हैं। बैल को मेहनत, सेवा और कृषि का प्रतीक माना गया है। यह दिन किसानों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का भी अवसर होता है।
तिहार का पांचवां और अंतिम दिन ‘भाई टीका’ के रूप में मनाया जाता है। भारत में इसे भैया दूज कहा जाता है। इस दिन बहनें भाइयों के माथे पर सात रंगों का टीका लगाकर उनकी लंबी उम्र और सुरक्षा की प्रार्थना करती हैं। भाई बहनों को उपहार देते हैं और इस अवसर को स्नेह, सुरक्षा और पारिवारिक एकता के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
मान्यता है कि जब भगवान श्री राम वनवास पूरा करके अयोध्या लौटे, तो भारतवर्ष में दीपावली मनाई गई। उसी समय मिथिला नगरी (वर्तमान नेपाल का जनकपुर क्षेत्र), जो राम की ससुराल मानी जाती है, वहाँ भी पांच दिन तक तिहार उत्सव का आयोजन हुआ। तब से यह परंपरा आज तक निरंतर चली आ रही है। नेपाल में दीपावली के समय हर घर दीपों से जगमगाता है। सीमावर्ती क्षेत्रों- कंचनपुर, कैलाली, झापा, जनकपुर आदि में भारत जैसे ही दृश्य दिखाई देते हैं। भारत और नेपाल की सीमाएं भले भौगोलिक रूप से अलग हों, पर संस्कृति और आस्था का बंधन दोनों देशों को जोड़ता है।
नेपाल में तिहार पर्व के दौरान महिलाओं की भूमिका विशेष होती है। वे पारंपरिक गुंजा चोली पहनती हैं और समूहों में भैलो गीत गाकर पूरे माहौल को उत्सवमय बना देती हैं। इन गीतों में आभार, प्रेम और प्रकृति के प्रति सम्मान की झलक मिलती है। महिलाएं घरों को सजाने, पकवान बनाने और पशु-पक्षियों की पूजा में सबसे आगे रहती हैं। तिहार उनके लिए केवल एक पर्व नहीं, बल्कि भक्ति और सौहार्द का उत्सव है।
नेपाल के लोगों का मानना है कि पशु और पक्षी मनुष्य के जीवन के अंग हैं। कौवा शुभ सूचना देता है, कुत्ता सच्चा साथी है, गाय माता समान है, बैल किसान का मित्र है, इसलिए इन सभी जीवों की पूजा करना प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना है। पर्व सिखाता है कि आस्था केवल देवताओं तक सीमित नहीं, बल्कि हर उस जीव में बसती है जो सृष्टि का हिस्सा है।
Published on:
19 Oct 2025 09:31 am
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