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कटनी की बहादुर बेटी: बाघों सहित जंगलों की सुरक्षा के लिए बनीं अग्रदूत, तस्करों को पहुंचवाया जेल

शिकारियों को सजा दिलवाकर तोड़ी कमर, 20 साल में सैकड़ों शिकारियों को पहुंचवाया जेल, कई प्रदेशों के वनों व वन्यप्राणियों की सुरक्षा के साथ विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों में बतौर ट्रेनर फूंक रहीं सेवा का मंत्र

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कटनी

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Balmeek Pandey

Sep 25, 2025

brave daughter who protects wildlife

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बालमीक पांडेय @ कटनी. शहर के गर्ग चौराहा निवासी सुश्री मंजुला श्रीवास्तव किसान स्व. सूरज प्रसाद श्रीवास्तव व मां चंद्रावति की बेटी हैं जो समाज के लिए बड़ी मिसाल बनकर सामने आई हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद जहां अधिकांश लोग अच्छी नौकरी की तलाश करते हैं, वहीं मंजूला ने अपने जीवन का मकसद तय कर लिया। बीएससी बायोलॉजी, एलएलबी, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान और अर्थशास्त्र जैसे विषयों में एमएस करने के बाद उन्होंने नौकरी का मोह छोडकऱ वन और वन्यजीव संरक्षण का रास्ता चुना।
सन 2000 से वे लगातार शिकारियों और तस्करों के खिलाफ नि:शुल्क अधिवक्ता के रूप में कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। जंगलों में बाघ, तेंदुआ, पेंगोलिन समेत अनेक दुर्लभ जीवों का शिकार करने वाले राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कुख्यात अपराधियों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने का काम उन्होंने किया है। शब्बीर हसन कुरैशी, संसारचंद जैसे बड़े शिकारी गिरोहों से लेकर बहेलिया, बावरिया और पारधी जैसी परंपरागत शिकारी जातियों के लोगों को पकड़वाकर कानून के हवाले करने का श्रेय भी उन्हें जाता है। मंजुला के इस अभियान में वन विभाग का भी सक्रिय योगदान है।

पूरे देश में फैला संरक्षण अभियान

मंजुला श्रीवास्तव का सफर केवल मध्यप्रदेश तक सीमित नहीं है। उन्होंने राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा जैसे राज्यों में भी वन्यजीव संरक्षण को लेकर काम किया है। वे वाइल्ड लाइफ कंट्रोल ब्यूरो के लिए बतौर ट्रेनर कार्य कर रही हैं और देशभर में वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को अपराध नियंत्रण, फॉरेंसिक और वन्यजीव संरक्षण की ट्रेनिंग दे रही हैं। कटनी में वे मानसेवी वन्यप्राणी अभिरक्षक के रूप में कार्यरत हैं। यहां कर्मचारियों और नए फॉरेस्ट गाड्र्स को वाइल्ड लाइफ के कानूनों और नियमों की जानकारी दे रही हैं। साथ ही यह भी सिखाती हैं कि वन विभाग की मशीनरी को कैसे और मजबूत बनाया जाए तथा शासन-प्रशासन के साथ बेहतर तालमेल कर काम को अधिक प्रभावी बनाया जा सके।

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बड़े टाइगर रिजर्व को मिली नई जान

मंजूला श्रीवास्तव का योगदान भारत के प्रमुख टाइगर रिजर्व और नेशनल पार्क में भी रहा है। पन्ना टाइगर रिजर्व में एक ऐसा वक्त आया जब पूरी तरह से टाइगर खत्म हो गए थे। वर्ष से 2008-2012 तक यहां बाघों के संरक्षण और पुनर्वास की दिशा में उन्होंने उल्लेखनीय कार्य टीम के साथ किया। बांधवगढ़ नेशनल पार्क में यहां शिकार पर रोकथाम और निगरानी में विशेष योगदान दिया। गिर नेशनल पार्क गुजरात (2009) और महाराष्ट्र वन विभाग में पार्कों की सुरक्षा और वन्यजीव संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभाई।

मिले अनेकों सम्मान

उनके योगदान को राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कई पुरस्कारों से नवाजा गया है। वर्ष 2006 में शहीद अमृता देवी विश्नोई अवार्ड से तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा सम्मानित किया गया। मध्यप्रदेश शासन द्वारा कई बार सम्मानित किया गया। गुजरात से सीआईडी अवार्ड और डब्ल्यूसीसीबी अवार्ड मिला। जिला स्तर पर भी कई बार सम्मान प्राप्त हुआ है।

किसान की बेटी, जंगलों की प्रहरी

मंजूला श्रीवास्तव कहती हैं कि जानवरों और पेड़ों की सुरक्षा के लिए कोई आगे नहीं आता था। मैंने उनकी पीड़ा समझी और उनकी रक्षा के लिए जीवन समर्पित कर दिया। आज उनके इसी जज्बे का नतीजा है कि देशभर के जंगलों में वन्यजीवों को बचाने और शिकारियों की कमर तोडऩे में वे महत्वपूर्ण कड़ी बन चुकी हैं। शहर की यह बहादुर बेटी बीते दो दशकों में न केवल सैकड़ों शिकारियों को जेल तक पहुंचा चुकी हैं बल्कि आने वाली पीढ़ी को भी वनों और वन्यजीवों की रक्षा के लिए प्रशिक्षित कर रही हैं।

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उजड़ते वनों व शिकार से थी आहत

पत्रिका से चर्चा के दौरान मंजुला ने कहा कि जब वे पढ़ाई कर रहीं थीं तो देखती व सुनती थीं कि तस्कार जंगलों को उजाड़ रहे हैं। वन्यजीवों बाघ, तेंदुआ, पेंगोलिन, दुर्लभ प्रजाति के सर्प, हिरण सहित अन्य वन्यजीवों का शिकार व तस्करी हो रही है। इससे वे आहत थीं। उन्होंने ठाना था कि वे वन्यजीवों को बचाने के लिए आगे आएंगी व तस्करों व शिकारियों को सबक सिखाएंगे। इसी ध्येय के साथ आगे बढ़ीं और देशभर में वन्यजीवों व वनों के संरक्षण के लिए काम कर रही हैं।