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जोधपुर। दिवाली की खुशियां मनाने की तैयारियों के बीच जैसलमेर बस अग्निकांड ने कई परिवारों की रोशनी बुझा दी। चंद मिनटों में लपटों ने हंसी-खुशी को चीखों में बदल दिया। यह हादसा न सिर्फ जानें ले गया, बल्कि अपने पीछे ऐसा दर्द छोड़ गया जो जिंदगी भर नहीं मिटेगा। जैसलमेर में यात्रियों से भरी निजी स्लीपर बस में लगी आग में अब तक 21 जिंदगियां खत्म हो गई। भीषण बस अग्निकांड में मारे गए लोगों से जुड़ी मार्मिक कहानियों सामने आ रही हैं।
बस हादसे में जोधपुर के सेतरावा के लवारन गांव के 35 वर्षीय महेंद्र मेघवाल का पूरा परिवार आग की लपटों में समा गया। महेंद्र, उनकी पत्नी पार्वती, बेटियां खुशबू और दीक्षा, तथा बेटा शौर्य-पांचों की मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गई। महेंद्र मेघवाल जैसलमेर के आयुध डिपो में सेना में कार्यरत थे। परिवार जैसलमेर के इंद्रा कॉलोनी में किराए के मकान में रहता था। दिवाली की छुट्टियों पर वह अपने परिवार के साथ जोधपुर जा रहे थे। लेकिन किसे पता था कि यह सफर उनकी जिंदगी का आखिरी सफर बन जाएगा।
बस में आग लगने के बाद कुछ ही मिनटों में लपटें इतनी तेज हो गईं कि अंदर बैठे यात्री बाहर निकल ही नहीं पाए। धुआं, चीखें और जलते शरीरों की गंध ने मौके को भयावह बना दिया। चश्मदीदों ने बताया कि लोग खिड़कियों और दरवाजों से निकलने की कोशिश करते रहे, मगर किसी की किस्मत ने साथ नहीं दिया। महेंद्र को उनकी यूनिट के लोगों ने जैसलमेर के कोतवाली थाने के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे से इसी बस में चढ़ते हुए देखा और वे तत्काल जोधपुर पहुंचे।
मृतक के रिश्तेदार कुंजाराम ने बताया कि महेंद्र के पिता की बहुत पहले मृत्यु हो चुकी है। वह भी सेना में कार्यरत थे। उसका भाई जगदीश एक महीने पहले ही विदेश गया है। घर पर सिर्फ बूढ़ी मां ही बची है। हादसे की जानकारी मिलते ही गांव में मातम पसर गया।
Updated on:
15 Oct 2025 05:10 pm
Published on:
15 Oct 2025 05:04 pm
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