फोटो- पत्रिका नेटवर्क
Rajasthan News: झुंझुनूं की सूरजगढ़ पंचायत समिति के अंतर्गत काजड़ा गांव की पूर्व सरपंच मंजू तंवर को प्रशासक के पद से हटा दिया गया है। उन पर मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन योजना के तहत कुंड निर्माण में अनियमितताओं का आरोप लगा था। मामले में जिला कलक्टर डॉ. अरुण गर्ग की ओर से सौंपी गई जांच रिपोर्ट के आधार पर पंचायतीराज विभाग ने यह कार्रवाई की है।
मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन योजना के अंतर्गत काजड़ा गांव में जल संरक्षण के उद्देश्य से कुंड निर्माण का कार्य चल रहा था। इस योजना में इच्छुक लाभार्थियों से 10 प्रतिशत अंशदान के रूप में 12 हजार रुपए की राशि जमा करने का प्रावधान है। आरोप है कि मंजू तंवर ने इस राशि की गलत तरीके से वसूली की, जिससे ग्रामीणों में असंतोष व्याप्त हो गया।
इसकी शिकायत मिलने पर जिला प्रशासन ने जांच का आदेश दिया। जांच में प्रथम दृष्टया मंजू तंवर को दोषी पाया गया। योजना के लाभार्थियों ने आरोप लगाया था कि राशि जमा करने के बाद भी कुंड निर्माण में देरी हुई और पारदर्शिता का अभाव रहा।
सरपंच कार्यकाल समाप्त होने के बाद मंजू तंवर को ही प्रशासक नियुक्त किया गया था। लेकिन जांच रिपोर्ट आने के बाद राज्य सरकार ने प्रशासक पद से तत्काल पदमुक्ति का आदेश जारी कर दिया। जिला कलेक्टर अरुण गर्ग ने बताया कि इस मामले में पूरी पारदर्शिता के साथ जांच करवाई गई थी।
जांच रिपोर्ट को उच्च स्तर पर भेजा गया। सरकार ने उचित कार्रवाई करते हुए उन्हें पद से हटा दिया। अब गांव में प्रशासनिक जिम्मेदारी उप सरपंच को सौंपी गई है। गौरतलब है कि उक्त मामले में जिले के प्रभारी सचिव समिति शर्मा ने मंजू तंवर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश दिए थे। वहीं मंजू तंवर के समर्थकों ने कलेक्ट्रेट में प्रदर्शन कर आरोपों को झूठा करार दिया था।
काजड़ा गांव में मार्च 2025 में मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान का दूसरा चरण शुरू हुआ था। योजना के तहत प्रत्येक लाभार्थी को अपने घर में वाटर टैंक बनवाने के लिए 12 हजार रुपए का अंशदान पंचायत खाते में जमा कराना था। उस वक्त ग्रामीणों से सरपंच ने कहा कि जो पहले पैसे जमा कराएगा, उसका वाटर टैंक पहले बनेगा।
इस पर ग्रामीणों ने पैसा जमा करा दिया। बाद में ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि सरपंच ने यह राशि ’बर्तन बैंक’ नामक एक संस्था के खाते में ट्रांसफर कर दी। राशि जमा कराने वालों को जो रसीदें दी गईं, उन पर तारीख, योजना और किसी अधिकृत अधिकारी के हस्ताक्षर नहीं थे। पांच महीने बाद जब काम शुरू नहीं हुआ तो ग्रामीणों ने बीडीओ कार्यालय में जानकारी मांगी। तब खुलासा हुआ कि पंचायत खाते में कोई राशि ही नहीं आई। उस वक्त जांच में यह साबित भी हुआ था कि सरपंच ने फर्जी रसीदें जारी कर राशि बर्तन बैंक में जमा कराई। उधर मंजू तंवर ने इन आरोपों को निराधार बताया है।
Updated on:
15 Oct 2025 03:14 pm
Published on:
15 Oct 2025 03:13 pm
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