जैसलमेर में गत मंगलवार को घटित वीभत्स बस दुखांतिका ने एक बार फिर सबसे बड़े सरकारी अस्पताल जवाहिर चिकित्सालय से जुड़े दर्द को सामने ला दिया। यह चिकित्सालय नाम से जरूर जिला अस्पताल कहलाता है, लेकिन सुविधाओं की दृष्टि से अब भी एक छोटे कस्बाई चिकित्सकीय केंद्र की हालत में है। यहां न तो आइसीयू वार्ड है, न ही बर्न यूनिट। गंभीर रूप से घायल या झुलसे हुए मरीजों को प्राथमिक उपचार के बाद जोधपुर रेफर कर दिया जाता है। जोधपुर की करीब 300 किलोमीटर की लंबी दूरी और समय की देरी कई बार मरीजों की जान पर भारी पड़ जाती है। सरकार ने पिछले एक-डेढ़ दशक के दौरान करोड़ों रुपए इस अस्पताल परिसर में इमारतों के निर्माण पर खर्च कर दिए लेकिन ढांचागत सुविधाओं के विकास और उपचार की सुविधाओं के मामले में नौ दिन चले अढाई कोस वाले हालात बने हुए हैं। जिले की आबादी और पर्यटकों की बढ़ती संख्या के बावजूद यहां गिनती के डॉक्टरों और सीमित संसाधनों के भरोसे चिकित्सा सेवा चल रही है। जवाहिर चिकित्सालय की यह स्थिति न केवल स्थानीय मरीजों बल्कि दूर-दराज के गांवों से आने वाले लोगों के लिए भी जीवन-मृत्यु का प्रश्न बन चुकी है। इतनी बड़ी दुर्घटना के बाद भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया, तो मरीजों की उम्मीदें एंबुलेंस की सायरन में ही दम तोड़ती रहेंगी।
जानकारी के अनुसार हर महीने करीब 300 से अधिक मरीजों को जोधपुर रेफर किया जाता है। इनमें ज्यादातर गंभीर दुर्घटना, झुलसने, हार्ट अटैक, ब्रेन हेमरेज और नवजात शिशुओं के केस शामिल होते हैं। यहां न आइसीयू है, न वेंटिलेटर की सुविधा। डॉक्टर मजबूरी में मरीज को रेफर करते हैं, क्योंकि गंभीर इलाज की स्थानीय व्यवस्था ही नहीं है। फिर भी चिकित्सालय प्रशासन ने आगे बढ़ कर सीमित संसाधनों से अपने तौर पर इन व्यवस्थाओं को खड़ा करने और संचालित करने का ठोस प्रयास भी नहीं किया।
जैसलमेर जैसे क्षेत्र में जहां घरेलू चूल्हों, सिलेंडरों और पर्यटकीय होटलों में आग से दुर्घटनाओं की आशंका बनी रहती है, वहां बर्न वार्ड का न होना बेहद गंभीर कमी है। झुलसे मरीजों को जोधपुर भेजने में चार से छह घंटे लग जाते हैं, जिससे संक्रमण और शॉक का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। हाल में हुई दुर्घटना के सभी घायलों को यहां से महज मरहम-पट्टी कर जोधपुर भेजने का मंजर सभी ने खुली आंखों से देखा। वर्षों पहले अस्पताल में बर्न वार्ड बनाया जरूर गया लेकिन वह कभी ठीक से संचालित नहीं किया जा सका और अब तो उस पर आईसीयू के समान ताला ही जड़ा जा चुका है।
हर चुनाव में जवाहिर अस्पताल को सुपर स्पेशलिटी बनाने के वादे दोहराए जाते हैं, लेकिन नतीजा शून्य ही रहता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि पर्यटन से अरबों की आमदनी देने वाले जिले में स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधा की यह दशा शर्मनाक है। सामाजिक कार्यकर्ता नरेन्द्रसिंह और खटन खां ने जिला प्रशासन और राज्य सरकार से तत्काल अस्पताल में आईसीयू, बर्न वार्ड, न्यूरो व कार्डियक यूनिट स्थापित करने की मांग की है। इसी तरह से महिला कार्यकर्ता समता व्यास ने अस्पताल में विशेषज्ञ चिकित्सकों की तैनाती, उपकरणों की आपूर्ति और भवन के आधुनिकीकरण की भी आवश्यकता जताई है।
Published on:
16 Oct 2025 10:31 pm
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