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100 साल बाद लौटी ‘लक्ष्मी’ , समृद्धि और उजाले से जगमगाने लगी मरुधरा

लगभग एक शताब्दी तक आर्थिक कठिनाइयों से जूझते इस जिले में पर्यटन, पत्थर उद्योग और पवन-सौर ऊर्जा से जुड़े व्यवसायों ने अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है।

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रेगिस्तान की धोरों की धरती अब लक्ष्मी की कृपा से समृद्धि और उजाले से जगमगाने लगी है। लगभग एक शताब्दी तक आर्थिक कठिनाइयों से जूझते इस जिले में पर्यटन, पत्थर उद्योग और पवन-सौर ऊर्जा से जुड़े व्यवसायों ने अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। पर्यटन उद्योग ने जैसलमेर को वैश्विक मानचित्र पर पहचान दिलाई है। पुराने समय में सिल्क रूट के कारण ऐतिहासिक शहर व्यापारिक केंद्र था, लेकिन अकाल और सूखे की मार से इसकी पहचान बदल गई। वर्ष 1970 के दशक के अंतिम वर्षों में पर्यटन व्यवसाय शुरू हुआ और 1980 में इसका टर्न ओवर केवल 50 लाख रुपए था। अब यह आंकड़ा 1500 करोड़ वार्षिक तक पहुंच चुका है। शहर में सैकड़ों होटल, रिसॉर्ट, कैम्प और रेस्टोरेंट्स पर्यटकों की सेवा में जुटे हैं।

बढ़ा उत्पादन तो बढ़ी संभावनाएं भी

सौर और पवन ऊर्जा क्षेत्र ने भी जिले की समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। सरहदी क्षेत्रों में स्थापित 3000 पवन ऊर्जा संयंत्र बिजली उत्पादन में सक्रिय हैं। जिले की भीषण गर्मी सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए लाभकारी साबित हो रही है। इन उद्योगों ने हजारों लोगों को रोजगार और स्थायी आजीविका प्रदान की है। जैसलमेर के पीले पत्थर की मांग अब सिर्फ शहर तक सीमित नहीं रही। नाथद्वारा, उदयपुर, जोधपुर, गुजरात और हिमाचल प्रदेश तक यह पत्थर लोकप्रिय है। इसकी सुंदर नक्काशी और शिल्प कौशल ने इसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी पहचान दिलाई है। पत्थर उद्योग से लगभग पांच हजार लोग जुड़े हैं और इसका सालाना टर्न ओवर लगभग 50 करोड़ रुपए है।

अर्थव्यवस्था को मजबूती

खेती और भूगर्भीय संसाधनों ने भी जिले की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया है। नहरों और नलकूप आधारित खेती ने किसानों की स्थिति सुधारी और पोकरण में परमाणु परीक्षण ने वैश्विक नजरें जैसलमेर की ओर आकर्षित कीं। जैसलमेर अब पर्यटन, ऊर्जा, पत्थर उद्योग और कृषि के संयोजन से समृद्धि की नई राह पर अग्रसर है। ऐतिहासिक सोनार दुर्ग, रेत के टीलों और तकनीकी प्रगति का संगम इस जिले को एक अद्वितीय पर्यटन स्थल और उद्योगिक केंद्र बनाता है।