Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

सुरक्षा के माकूल बंदोबस्त न नियमों की पालना, एसी बसों में आपातकालीन द्वार, नॉन एसी में नहीं

जैसलमेर में निजी एसी बस की आग ने पूरे देश व प्रदेश को झकझोर दिया है और अब तक इस हादसे में 21 जनों की मौत हो चुकी है और कई और जिंदगी व मौत के बीच झूल रहे हैं।

3 min read

जैसलमेर में निजी एसी बस की आग ने पूरे देश व प्रदेश को झकझोर दिया है और अब तक इस हादसे में 21 जनों की मौत हो चुकी है और कई और जिंदगी व मौत के बीच झूल रहे हैं। ऐसे में एक बार फिर सडक़ों पर धड़ल्ले से दौडऩे वाली निजी बसों में सुरक्षा के इंतजामों का मुद्दा उभर कर सामने आया है। पत्रिका टीम ने जैसलमेर व पोकरण में क्षेत्र में संचालित निजी बसों की पड़ताल की तो उनमें न तो आग लगने जैसी दुर्घटना से तुरंत बचाव के लिए सुरक्षा के इंतजाम नजर आए और इक्का-दुक्का बसों को छोड़ कर किसी में प्राथमिक उपचार तक की व्यवस्था उपलब्ध नहीं दिखी। गौरतलब है कि जैसलमेर से लगभग प्रतिघंटा निजी बस पोकरण होते हुए जोधपुर जाती है, इसके अलावा जयपुर, अहमदाबाद, उदयपुर, बीकानेर, कोटा, बाड़मेर, सहित दिल्ली, मुंबई, पुणे, सूरत, भीलवाड़ा सहित लंबे रूट्स पर निजी बसों का संचालन होता है। ये बसें एसी व नॉन एसी होने के साथ सीटिंग व स्लीपर दोनों तरह की हैं। कई बसें स्टेज कैरिज नहीं होने के बावजूद हर गांव-ढाणी के बस स्टैंड पर रुकती और सवारियां लेती व उतारती है।

कुल 211 बसों को परमिट

जिला परिवहन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार जैसलमेर जिले से कुल 211 बसों को परमिट किया गया है। इसमें ऑल इंडिया के 21, स्टेट कैरिज (अन्य) के 85, स्टेट कैरिज (ग्रामीण) के 42, कॉन्ट्रेक्ट कैरिज (ऑल राजस्थान) के 22 और कॉन्ट्रेक्ट कैरिज (सम्भागीय) के 41 परमिट जारी किए गए हैं।

एसी में 2 तो नॉन एसी में 1 दरवाजा

  • हादसे के बाद बुधवार को जैसलमेर व पोकरण में बसों की वास्तविकता देखी गई। एक दर्जन से ज्यादा बसों की जांच किए जाने पर एसी बसों में मुख्य द्वार के अलावा आपातकालीन द्वार भी बना हुआ था। दूसरी तरफ नॉन एसी बसों में केवल आगे मुख्य द्वार ही मिला। कोई आपातकालीन दरवाजा या खिडक़ी नहीं मिली।
  • लोक परिवहन से संबंध बसें कंपनी से बनी-बनाई ली जाती है। जबकि निजी यात्री बसों के लिए कंपनी से चैसिस लेते हैं और बाजार से उसकी बॉडी बनाई जाती है। इस दौरान यात्रियों की सुविधा का कोई ध्यान नहीं रखा जाता है।
  • दोनों तरफ सीटों के बाद बीच में गैलेरी में जगह बिल्कुल कम रहती है। दो यात्री एक साथ नहीं निकल पाते हैं। ऐसे में कोई आपातकालीन स्थिति में यात्रियों को बाहर निकलने के दौरान उनके फंसने की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

यहां नियम ताक पर

  • जैसलमेर जिले में बसों की बॉडी बनाने का काम नहीं होता। जोधपुर में करीब 3-4 दर्जन लोग बसों की बॉडी बनाने का काम करते हैं। इसके अलावा स्थानीय टे्रवल कम्पनियों वाले यह कार्य उदयपुर आदि शहरों से भी करवाते हैं।
  • सीटिंग, स्लीपर, एसी व नॉन एसी बसों की चैसिस 11, 12 व 13.5 मीटर की आती है। नियमों के अनुसार 11 मीटर में 52 सीटर की सीटिंग बस की बॉडी बनती है। 12 मीटर में 5 स्लीपर और 13.5 मीटर में 6 स्लीपर बनते है। जिले में संचालित अधिकांश स्लीपर एसी व नॉन एसी बसों की चैसिस 12 मीटर की है। जिनमें नियमों को ताक पर रखकर 6 स्लीपर बनाई जाती है।
  • परिवहन विभाग की ओर से बिना किसी जांच पड़ताल के ऐसी बसों को परमिट दे दिया जाता है। जिससे यात्रियों को बैठने में भी परेशानी होती है।
  • बसों के स्लीपर में एक तरफ एक सीट एवं दूसरी तरफ दो सीट होती है। जबकि निजी बसों के संचालकों की ओर से एक सीट पर 3 तो 2 सीट पर 6 सवारियों को बिठाया जाता है। ऐसे में यात्रियों को बैठने में तो परेशानी होती ही है, उनका दम भी घुटने लगता है।

जिम्मेदारों की अनदेखी भी बड़ा कारण

इस तरह का हादसा होने के बाद हर कोई कारणों की पड़ताल में जुटा है लेकिन एक बात तय है कि समय रहते जिला प्रशासन और पुलिस के आला अधिकारी शायद ही कभी इन बसों की स्थिति, नियमों की पालना के हालात आदि जानने के लिए निरीक्षण करते हैं। जबकि जिले की कमान उनके पास है। निजी बसों के संचालक अपनी मनमानी के लिए वर्षों से कुख्यात हैं, इसके बावजूद उनके खिलाफ कभी-कभार किसी तरह का बड़ा हादसा होने पर रस्मी कार्रवाइयां भर कर दी जाती हैं। थोड़े दिनों बाद सबकुछ पुराने ढर्रे पर लौट आता है।


बड़ी खबरें

View All

जैसलमेर

राजस्थान न्यूज़

ट्रेंडिंग