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Rajasthan Politics: राजस्थान की राजनीति से जुड़ी बड़ी खबर सामने आ रही है। पंचायती राज और शहरी निकाय चुनावों में दो से अधिक संतान वाले व्यक्तियों पर लगी अयोग्यता की बाध्यता जल्द हट सकती है। विभिन्न संगठनों, नेताओं और जनप्रतिनिधियों की लंबे समय से चली आ रही मांग पर राज्य सरकार ने गंभीरता से विचार शुरू कर दिया है।
स्वायत्त शासन एवं नगरीय विकास (UDH) मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने पत्रिका डिजिटल से बातचीत में इसकी पुष्टि की है। उन्होंने बातचीत में कहा कि सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति पर तीसरी संतान की छूट मिल चुकी है, तो जनप्रतिनिधियों के साथ भेदभाव क्यों होना चाहिए? मंत्री ने बताया कि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से इस मुद्दे पर चर्चा हो चुकी है और सभी पक्षों से राय लेकर उचित निर्णय लिया जाएगा।
मंत्री खर्रा ने विस्तार से बताया कि पंचायती राज विभाग और स्वायत्त शासन विभाग से अनौपचारिक रिपोर्ट मंगवाई जा चुकी है। उन्होंने कहा कि जब सरकारी कर्मचारियों पर तीन संतान का प्रतिबंध था, उसमें राहत दे दी गई। फिर जनप्रतिनिधियों के साथ भेदभाव क्यों? उनको भी इतनी छूट मिलनी चाहिए। कर्मचारी और जनप्रतिनिधि दोनों ही सार्वजनिक सेवा में हैं, दोनों में ज्यादा अंतर नहीं किया जा सकता।
मंत्री ने कहा कि देश और राज्य के हित में जनसंख्या नियंत्रण महत्वपूर्ण है, लेकिन नियम एक समान होने चाहिए। सरकारी कर्मचारियों पर दो बच्चों का नियम लागू था, लेकिन छूट दे दी गई, जबकि पंचायती राज और निकाय जनप्रतिनिधियों को नहीं। अब मांग उठ रही है, तो विचार करना पड़ेगा।
मंत्री खर्रा ने बताया कि मुख्यमंत्री से चर्चा में यह सुझाव आया कि सभी पक्षों की राय ली जाए। मांग पत्र विभागों में घूमते हैं और अंतिम निर्णय सरकार लेगी। उन्होंने कहा कि एक बार सबसे चर्चा के बाद जो उचित होगा, वही किया जाएगा। विभिन्न संगठनों और नेताओं ने तीसरी संतान की बाध्यता हटाने की मांग जोरदार तरीके से उठाई है।
यह नियम 1994-95 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत की सरकार ने लागू किया था। राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 के तहत दो से अधिक संतान वाले व्यक्ति पंचायत या निकाय चुनाव नहीं लड़ सकते। इसमें चुनाव जीतने के बाद तीसरा बच्चा पैदा होने पर पद से हटाने का प्रावधान भी है। एक निश्चित तारीख के बाद पैदा हुए तीसरे बच्चे पर यह रोक लागू होती है। उस तारीख से पहले कितनी भी संतान हों, चुनाव लड़ने की पात्रता बनी रहती है। तब से अब तक इस नियम में कोई शिथिलता नहीं दी गई है।
दूसरी ओर, सरकारी कर्मचारियों को राहत मिल चुकी है। साल 2002 में दो से ज्यादा बच्चे होने पर सरकारी नौकरी नहीं मिलने का कानून लाया गया। नौकरी के दौरान तीसरा बच्चा होने पर 5 साल तक प्रमोशन रोकने और तीन से ज्यादा बच्चे पर अनिवार्य सेवानिवृत्ति का नियम था। लेकिन तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार ने 2018 में इन नियमों को शिथिल कर दिया। प्रमोशन रोक को 5 साल से घटाकर 3 साल कर दिया गया और बाद में पूरी छूट दे दी गई। अब कर्मचारियों पर तीसरी संतान का कोई प्रतिबंध नहीं है, जिससे प्रमोशन और अन्य लाभ प्रभावित नहीं होते।
दरअसल, यह मुद्दा राजस्थान विधानसभा में भी गूंज चुका है। इसी साल बजट सत्र में चित्तौड़गढ़ विधायक चंद्रभान सिंह आक्या ने सवाल उठाया कि पंचायत चुनाव में तीन संतान पर रोक है, लेकिन विधानसभा और लोकसभा चुनाव में नहीं। यह नियम हटाया जाए। संसदीय कार्यमंत्री जोगाराम पटेल ने जवाब दिया कि मामला गंभीर है, विचार किया जाएगा।
इससे पहले कांग्रेस सरकार में 2019 में पूर्व विधायक हेमाराम चौधरी ने कहा था कि यह नियम केवल पंचायती राज चुनावों में लागू है, सांसदों-विधायकों पर नहीं, जो संविधान की भावना के विरुद्ध है। सरकार से जुड़े सूत्रों के मुताबिक जल्द ही इस विषय पर कैबिनेट में चर्चा हो सकती है। अगर नियम बदलता है, तो अगले पंचायत चुनावों (संभावित 2025-26) से पहले अधिनियम में संशोधन होगा।
जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर लगी यह रोक अब पुरानी पड़ चुकी लगती है। विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य में जन्म दर घट रही है और ऐसे नियम अब प्रासंगिक नहीं। कई जनप्रतिनिधि तर्क देते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में परिवार बड़े होते हैं, ऐसे में योग्य उम्मीदवारों की कमी हो जाती है। अगर यह बाध्यता हटती है, तो पंचायत और निकाय चुनावों में ज्यादा प्रतिस्पर्धा होगी। हालांकि, जनसंख्या नियंत्रण के समर्थक इसे गलत मानते हैं और कहते हैं कि जनप्रतिनिधि रोल मॉडल होते हैं, उन पर सख्ती जरूरी है।
Updated on:
30 Oct 2025 09:31 pm
Published on:
30 Oct 2025 05:07 pm
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