Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

Bastar Naxal Movement: बस्तर में नक्सल आंदोलन का नया मोड़… आत्मसमर्पण की आड़ में बड़ी रणनीति की आहट

Bastar Naxal Movement: बस्तर में नक्सल आंदोलन एक नए मोड़ पर है। पिछले 20 महीनों में कई नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, लेकिन हाल के सरेंडर में दिख रहा नया ट्रेंड किसी बड़ी रणनीति की ओर इशारा करता है।

2 min read
Bastar Naxal Movement (Photo source- Patrika)

Bastar Naxal Movement (Photo source- Patrika)

Bastar Naxal Movement: बस्तर में नक्सल आंदोलन एक नए मोड़ पर खड़ा दिखाई दे रहा है। बीते २० महीनों में बड़ी संख्या में नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, लेकिन बीते चार दिनों में सरेंडर का जो नया ट्रेंड सामने आया वह एक खास रणनीति की ओर इशारा कर रहा है। बस्तर में शुक्रवार को हुए इतिहास के सबसे बड़े सरेंडर के अगुवा रहे सेंट्रल कमेटी मेंबर रूपेश का जैसा रुख सरेंडर से पहले और बाद सामने आया वह बहुत कुछ कह रहा है।

Bastar Naxal Movement: प्रदेश की सियासत और विकास की दिशा तय

पत्रिका ने इस पूरे मामले पर बस्तर के नक्सल मामले के जानकारों से बात की। जानकार इस सरेंडर को परंपरागत नहीं मान रहे हैं। जानकारों का कहना है कि यह हथियार छोडऩे की कार्रवाई असल में एक बड़ी रणनीतिक चाल का हिस्सा हो सकती है। बिना हथियार वाली एक नई क्रांति की सुगबुगाहट बस्तर के जंगलों और गांवों में तेज हो रही है, जो आने वाले समय में प्रदेश की सियासत और विकास की दिशा तय कर सकती है।

अब नक्सली आत्मसमर्पण भी अपनी शर्तों पर कर रहे हैं। वे न तो सरकारी सहायता की मांग कर रहे हैं और न ही पुनर्वास नीति के तहत मिलने वाले लाभ को लेकर उत्साहित हैं। इसके विपरीत ऐतिहासिक सरेंडर के नेतृत्व रूपेश ने यह तक कह डाला कि वे भविष्य में सरकार बनाने और बिगाडऩे तक की ताकत रखते हैं। ऐसे बयान सुरक्षा एजेंसियों के लिए चिंता का विषय हैं, क्योंकि यह संकेत देते हैं कि नक्सली विचारधारा ने भले ही बंदूक छोड़ी हो, लेकिन वैचारिक संघर्ष अभी भी जिंदा है।

मूलवासी मंच बन सकता है एक बड़ा बैनर

सरेंडर नक्सलियों ने मूलवासी बचाओ मंच से प्रतिबंध हटाने की मांग की थी। सरकार ने यह मांग मान ली है। अगले महीने तक प्रतिबंध हट जाएगा। माना जा रहा है कि प्रतिबंध हटने के बाद सरेंडर नक्सलियों के लिए अपनी बात सरकार तक पहुंचाने के लिए यह बड़ा बैनर होगा। इस मंच के जरिए स्थानीय समुदायों में अस्मिता, जल-जंगल-जमीन के लिए संघर्ष को हथियार के बिना आगे बढ़ाया जाएगा।

सरेंडर का पैटर्न सबसे अलग, सीएम क्यों दूर रहे यह भी समझें

Bastar Naxal Movement: पहली बार बस्तर में सबसे बड़ा सरेंडर हुआ। इसका पैटर्न अब तक हुए सभी सरेंडर से अलग रहा। मुख्यमंत्री और दो-दो डिप्टी सीएम इस दौरान जगदलपुर आए पर वे सरेंडर नक्सलियों से सार्वजनिक रूप से नहीं मिले। दरअसल रूपेश का एक इंटरव्यू तब सामने आया जब वह सरेंडर के लिए जंगल से बाहर आ रहा था। उस इंटरव्यू में उसने जो कुछ कहा उसके बाद सरकार ने नक्सलियों के साथ मंच साझा करने की मंशा को बदला।

सीएम और डिप्टी सीएम एयरपोर्ट में रुके रहे, जब तक मीडिया के लोग और सरेंडर मंच से चले नहीं गए तब तक उनकी गाड़ी एयरपोर्ट से नहीं निकली। सीएम या किसी भी जनप्रतिनिधि के पीआर टीएम ने एक भी तस्वीर मुलाकात की साझा नहीं की। जबकि सीएम समेत अन्य ने रूपेश व अन्य नक्सलियों से पुलिस लाइन में मुलाकात की थी।

उद्योग और निवेश के लिए भी चिंतनीय हालात

Bastar Naxal Movement: अगर यह बदलाव सच्चे अर्थों में शांति का संकेत हैं तो बस्तर के विकास की दिशा बदल सकती है, लेकिन अगर यह सिर्फ नई रणनीति का हिस्सा है, तो आने वाले समय में यह औद्योगिक विकास और निवेश के लिए बड़ा खतरा भी साबित हो सकता है। फिलहाल बस्तर एक निर्णायक मोड़ पर है।