जबलपुर। शिवानी शर्मा अपने छह माह के बेटे को लेकर बाजार गई हुईं थी। जब वे एक साड़ी शो रूम में बैठी थीं तभी उनका बेटा रोने लगा। उसे भूख लगी थी। थोड़ी देर बाद भी जब वह चुप न हुआ तो शिवानी बच्चे को दूध पिलाने के लिए सुरक्षित स्थान खोजने लगी। लेकिन उसे कोई जगह नहीं मिली। अंतत: उसने दुकान की भीड़ के बीच ही बच्चे को दूध पिलाना शुरू कर दिया। जिसे देखकर वहां मौजूद कुछ पुरुषों की निगाहें उसी की तरफ टिक गईं। वहीं कुछ तो चुपके से मोबाइल पर वीडियो भी बनाने लगे। दुकान के सीसीटीवी में भी शिवानी कैद हो गई। जब उसे इस बात का आभास हुआ तो वह पानी पानी हो गई। साथ ही चिंता में पड़ गई।
दरअसल, छोटे बच्चों के साथ शॉपिंग करने या अन्य किसी काम से निकली महिलाएं उस समय असहज हो जाती हैं, जब उनके नन्हे मुन्नों को दूध पिलाना होता है। ऐसे में या तो वे किसी दुकान या अन्य सुरक्षित जगह की खोज में जुट जाती हैं या फिर बच्चों को रोता ही छोडऩा पड़ता है। भीड़भाड़ वाले सार्वजनिक स्थानों व प्रमुख कार्यालयों में शिशु को ब्रेस्ट फीडिंग कराने में महिलाओं को असुविधा न हो इसके लिए प्रदेश शासन ने 'आंचल कक्षÓ बनाने का अभियान शुरू किया था। यह अभियान दम तोड़ता नजर आ रहा है। ज्यादातर जगह आंचल कक्ष बने ही नहीं, जहां बने भी हैं तो उनका उपयोग नहीं हो पा रहा है।
वर्ष २०१६ में आंचल कक्ष बनाने के लिए सर्कु लर जारी किया गया था। लेकिन इसके लिए बजट का कोई प्रावधान नहीं किया गया। सामाजिक सहभागिता से महिला एवं बाल विकास विभाग ने जबलपुर रेलवे स्टेशन, कलेक्ट्रेट, विक्टोरिया अस्पताल, एसपी ऑफिस समेत जिले में २८ आंचल कक्ष बनाए। इनमें से ज्यादातर का इस्तेमाल नहीं हो रहा है।
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बसों में नहीं हुआ इंतजाम
सफर के दौरान शिशु को ब्रेस्ट फीडिंग कराने के लिए अनुकूल स्थल उपलब्ध कराने के लिए बसों में चालक की सीट के पीछे की सीट को तीन ओर से कवर करने कहा गया था। लेकिन, परिवहन विभाग बसों में एेसी व्यवस्था लागू कराने में नाकाम रहा। मेट्रो बसों से लेकर लंबी दूरी की बसों में भी एेसी कोई व्यवस्था नहीं की गई।
इन प्रमुख स्थलों में नहीं बने
मेडिकल अस्पताल, जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय, रादुविवि व अन्य विश्वविद्यालय, बस स्टैंड
Published on:
15 Sept 2017 01:16 pm