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हाईकोर्ट ने कहा कि अदालतें पक्षकारों की सुविधा के लिए नहीं, कानून के पालन के लिए हैं

A fine of 25 thousand was imposed on the Municipal Corporation

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A fine of 25 thousand was imposed on the Municipal Corporation

A fine of 25 thousand was imposed on the Municipal Corporation

हाईकोर्ट की एकल पीठ ने नगर निगम पर 25 हजार रुपए का जुर्माना लगाते हुए कहा कि अदालतें केवल पक्षकारों की सुविधानुसार तारीख बढ़ाने के लिए नहीं होतीं। यदि नगर निगम जैसी संस्था भी न्यायिक आदेशों की अनदेखी करती है, तो उसे इसके परिणाम भुगतने होंगे। नगर निगम का अधिकारी 25 हजार रुपए अपनी जेब से जमा करेगा, यह राशि राज्य सरकार से प्रतिपूर्ति योग्य नहीं होगी। अदालत ने यह भी चेतावनी दी कि यदि 8 अक्टूबर 2025 तक यह राशि जमा नहीं की जाती या आवेदन पेश नहीं होता, तो समीक्षा याचिका बिना सुनवाई के स्वत: निरस्त मानी जाएगी।

मामला म्युनिसिपल कॉरपोरेशन बनाम एमएस ग्लेग इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड से संबंधित है। अदालत ने पाया कि निगम कार्यालय हाईकोर्ट से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, फिर भी 21 अगस्त 2025 के आदेश के बाद भी निर्धारित समय में सीपीसी की धारा 5 नियम 20 के अंतर्गत नोटिस प्रकाशन के लिए आवेदन प्रस्तुत नहीं किया गया। ज्ञात है कि नगर निगम ने एमएस ग्लेग इंजीनियर्स के पक्ष में हुए आदेश के पुनर्विचार के लिए याचिका दायर की है।