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निगम ने शिक्षा विभाग की जमीन नीलाम कर दी, आपत्ति के बाद सौदा रद्द किया, अब 2.6 करोड़ नहीं लौटा रही

The court commented, "The officials sold land that didn't even belong to them. As if one illegal act wasn't enough, now they're committing a double wrong by not returning the money. This amounts to a breach of investor trust."

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The court commented, "The officials sold land that didn't even belong to them. As if one illegal act wasn't enough, now they're committing a double wrong by not returning the money. This amounts to a breach of investor trust."

The court commented, "The officials sold land that didn't even belong to them. As if one illegal act wasn't enough, now they're committing a double wrong by not returning the money. This amounts to a breach of investor trust."

हाईकोर्ट की युगल पीठ ने गुरुवार को एक मामले में नगर निगम के रवैये पर कड़ी टिप्पणी की। कोर्ट में केआरएस एंटरप्राइजेज की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने कहा कि मामला बहुत ही अफसोसजनक स्थिति दर्शाता है। याचिकाकर्ता ने नगर निगम के टेंडर के तहत 1000 बेड अस्पताल के पास स्थित दो दुकानों (दुकान नंबर 1 और 2) के लिए बोली लगाई थी, जिसकी स्वीकृति के बाद ₹2,06,53,000 की भारी राशि जमा कर रजिस्टर्ड लीज डीड तक कर दी गई। लेकिन बाद में खुलासा हुआ कि यह जमीन नगर निगम की नहीं, बल्कि स्कूल शिक्षा विभाग की सरकारी भूमि है। इस आपत्ति के बाद पूरा सौदा रद्द कर दिया गया। यहां तक तो मामला तकनीकी गलती माना जा सकता था, लेकिन याचिकाकर्ता का आरोप है कि दो वर्ष बीत जाने के बाद भी अब तक न तो पैसा लौटाया गया और न ही कोई स्पष्ट जवाब दिया गया। कोर्ट ने नगर निगम के अधिकारियों पर नाराजगी जताते हुए कहा कि नगर निगम के अधिकारियों ने वह ज़मीन बेची जो उनकी थी ही नहीं। एक गैर-कानूनी काम काफी नहीं था, अब राशि वापस न देकर दोहरी गलती कर रहे हैं। यह निवेशकों का विश्वास तोड़ने जैसा है।

कोर्ट ने नगर निगम के वकील को निर्देश दिया कि वे तुरंत अधिकारियों से स्पष्ट निर्देश लेकर आएं और धन वापसी में देरी के कारण बताएं। अन्यथा अदालत संबंधित अधिकारियों के खिलाफ सख्त आदेश जारी करने को मजबूर होगी, क्योंकि उन्होंने दस्तावेजों की जांच तक नहीं की और बाद में वैध धन वापसी में भी टालमटोल की। कोर्ट ने मामले को 31 अक्टूबर के लिए सूचीबद्ध किया है, यानी अब नगर निगम को रिकॉर्ड सहित जवाब देना होगा कि आखिर दो साल से रुकी राशि कब लौटाई जाएगी और जिम्मेदार अधिकारी कौन हैं।