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विश्व पर्यटन दिवस पर खास : विश्व धरोहर की दहलीज पर खड़े मुरैना के मंदिर समूह

मुरैना के अद्भुत मंदिर समूह बटेश्वर, मितावली, पड़ावली, सिहोनिया और ककनमठ भी विश्व धरोहर की दहलीज पर खड़े हैं। जी हां, मध्यप्रदेश पयर्टन बोर्ड ने ग्वालियर अंचल की इन नायाब धरोहरों को यूनेस्को से जोडऩे का प्रयास शुरू कर दिया है। मप्र पर्यटन बोर्ड की ओर से यूनेस्को को इस जगह का हिस्टोरिकल ....

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mitawali

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ग्वालियर. मुरैना के अद्भुत मंदिर समूह बटेश्वर, मितावली, पड़ावली, सिहोनिया और ककनमठ भी विश्व धरोहर की दहलीज पर खड़े हैं। जी हां, मध्यप्रदेश पयर्टन बोर्ड ने ग्वालियर अंचल की इन नायाब धरोहरों को यूनेस्को से जोडऩे का प्रयास शुरू कर दिया है। मप्र पर्यटन बोर्ड की ओर से यूनेस्को को इस जगह का हिस्टोरिकल लैंडस्कैप भी भेजा जा चुका है। इससे पूर्व यूनेस्को की ओर से ग्वालियर को सिटी ऑफ म्यूजिक के तमगे के साथ साथ ग्वालियर फोर्ट को अस्थायी सूची में शामिल किया जा चुका है। मुरैना की धरती सिर्फ आस्था का केंद्र ही नहीं, बल्कि स्थापत्य और संस्कृति का भी अद्भुत खजाना है। यहां मौजूद बटेश्वर, मितावली, पड़ावली और ककनमठ के मंदिर सदियों पुरानी कला, विज्ञान और धार्मिक परंपराओं की कहानी बयां करते हैं। पत्थरों पर उकेरी गई मूर्तियां और बिना गारे की संरचनाएं आज भी विश्व को चकित करती हैं। यही कारण है कि इन मंदिरों को भी विश्व धरोहर की सूची में शामिल करने की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं।

यूनेस्को में शामिल होना गर्व की बात होगी

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के पूर्व अधिकारी केके मोहम्मद ने कहा, मुरैना के बटेश्वर, मितावली, पड़ावली और ककनमठ के मंदिर भारत की गौरवशाली परंपरा और स्थापत्य वैभव के जीवंत उदाहरण हैं। यह धरोहर आज भी इतिहास, आस्था और कला का संगम प्रस्तुत करती है। यदि ये स्थल विश्व धरोहर का दर्जा प्राप्त करते हैं, तो यह न केवल भारत के लिए गर्व की बात होगी, बल्कि दुनिया के सामने मध्य भारत की सांस्कृतिक शक्ति का भी परिचय होगा। इन मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिए पिछले तीन वर्षों से काम किया जा रहा है। इसे अंतिम टच दिया जा रहा है।

6वीं से 14वीं शताब्दी की झलक, आज भी सुरक्षित

मुरैना जिले में स्थित बटेश्वर, मितावली, पडावली और ककनमठ के मंदिर भारत की स्थापत्य कला और धार्मिक परंपराओं की अद्भुत मिसाल माने जाते हैं। 6वीं से 14वीं शताब्दी के बीच बने ये मंदिर न केवल आस्था के प्रतीक हैं। बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि उस दौर में किस तरह कला और विज्ञान का सुंदर संगम हुआ था।

इनका कहना है

मुरैना के मंदिरों का महत्व केवल धार्मिक ²ष्टि से ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और स्थापत्य कला की दृष्टि से भी असाधारण है। यहां शैव, वैष्णव और तांत्रिक परंपराओं का अद्भुत संगम दिखाई देता है। संरक्षण कार्यों के बाद भी इन मंदिरों ने अपनी मौलिकता और प्रामाणिकता को बनाए रखा है। यही कारण है कि इन्हें विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल करने की कवायद जारी है।
शिव शेखर शुक्ला, प्रमुख सचिव, पर्यटन विभाग मप्र