
पुलिस आरक्षक सबसे नीचे का कर्मचारी, हमेशा तनाव में रहता है, उसे छोटी गलती की बड़ी सजा नहीं दी जा सकती : हाईकोर्ट
ग्वालियर। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने एक पुलिस आरक्षक की पांच वेतन वृद्धि को यह कहते निरस्त कर दिया कि पुलिस की नौकरी अनुशासित है। वह अनधिकृत रूप से नौकरी से अनुपस्थित रहा। इसके लिए वह सजा का हकदार था, लेकिन उसे बड़ी सजा नहीं दी जा सकती है। उसने प्रतियोगी परीक्षा में भाग लिया था। मेडिकल ग्राउंड पर उसने छुट्टी ली। अपनी वर्तमान नौकरी को हल्के में लिया। इसलिए बड़ी सजा का आदेश निरस्त करते हुए छोटी सजा देने के मामला पुलिस अधीक्षक अशोकनगर को फिर से भेज दिया।
दरअसल राजेंद्र प्रसाद पाठक 2012 में अशोकनगर के पुलिस बल में तैनाती थी। पत्नी की तबीयत खराब होने के बाद वह पांच दिन की छुट्टी पर ग्वालियर आ गया था। उसके बाद उसने छुट्टी बढ़ाने के लिए आवेदन विभाग को भेजा और साथ ही मेडिकल ग्राउंड पर छुट्टी मांगी। पुलिस अधीक्षक ने उसकी छुट्टी को स्वीकार नहीं किया। लगातार 60 दिन से ऊपर अनुपस्थित होने पर पांच वेतन वृद्धि रोक दी। एक वेतन वृद्धि संचयी प्रभाव से रोकी गई। इससे राजेंद्र प्रसाद पाठक का प्रमोशन प्रभावित हो गया। इसको लेकर पाठक ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उसकी ओर से अधिवक्ता अरुण कटारे ने तर्क दिया कि पुलिस आरक्षक सबसे नीचे का कर्मचारी होता है। वह हमेशा तनाव में रहता है। विभाग ने उन्होंने छोटी गलती के लिए बड़ी सजा दी है। इससे उसकी पूरी नौकरी प्रभावित हो गई है। छुट्टी पर आने के बाद वह बीमार भी हो गया था। इसका मेडिकल भी लगाया,लेकिन पुलिस अधीक्षक ने उसे अस्वीकार कर दिया। कोर्ट ने शासन व याचिकाकर्ता का पक्ष सुनने के बाद वेतन वृद्धि रोकने के आदेश को निरस्त कर दिया। छोटी सजा देने के लिए मामला पुलिस अधीक्षक को भेज दिया।
इनका भी आदेश हुआ निरस्त
दरअसल पुलिस आरक्षक संतोष शर्मा की पुलिस अधीक्षक दतिया ने एक वेतन वृद्धि संचयी प्रभाव से रोक दी। उनके ऊपर आरोप लगाया कि अनधिकृत रूप से एक व्यक्ति को रोककर रखा गया। कोर्ट में याचिका दायर कर तर्क दिया कि थाना प्रभारी ने उन्हें उस व्यक्ति की निगरानी करने का आदेश दिया था। थाना प्रभारी का आरक्षक आदेश नहीं टाल सकता है। इसमें याचिकाकर्ता की कोई गलती नहीं है। कोर्ट ने वेतन वृद्धि रोकने का आदेश निरस्त कर दिया।
Published on:
09 Mar 2024 02:29 am
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