chambal dasyu
ग्वालियर. चंबल के बीहड़ किनारे बसे गांव, और उन गांवों में स्थित देवी मंदिर… ये सभी 100 साल से बागियों के आस्था का केंद्र रहे हैं । नवरात्र में इन मंदिरों में बागी मन्नतें मांगते थे और पूरी होने पर घंटा चढ़ाते थे। पहले पुलिस भी इन दिनों निगरानी करती थी, चंबल का ये इतिहास अब बदल गया है, हालात बदल गए हैं। बीहड़ बागी मुक्त हो गए हैं, मंदिरों में भी अब उनकी तरफ से घंटे नहीं चढ़ते, लेकिन उस समय के चढ़ाए गए घंटों की गूंज आज भी ग्वालियर चंबल संभाग के लोगों व उस के बागियों के दिलों में गूंजती है। खास बात है इनकी चर्चा बीहड़ों तक सीमित नहीं बल्कि एमपी, यूपी और राजस्थान के कई मंदिरों तक होती थी और है।
दस्यु सम्राट के नाम से जाने वाले मलखान सिंह गैंग के सदस्य मुन्ना सिंह परिहार बताते हैं, बीहड़ों में बागियों की भरमार रही है। बागी माता के उपासक ज्यादा रहे हैं। रतनगढ़ की माता (दतिया, ग्वालियर बॉर्डरं), लखेश्वरी माता (भितरवार), शीतला माता (आंतरी ) के मंदिर पर बागी पूजा पाठ और घंटे चढ़ाते रहे हैं। मुन्ना सिंह बताते हैं, मलखान सिंह का गिरोह भी माता की पूजा करता था। रतनगढ़ की माता, लखेश्वरी माता के अलावा उदी मोड (भिंड, इटावा बॉर्डर) के माता मंदिर, मैनपुरी (यूपी ) में बड़मानी माता, भूरी माता जालौन (यूपी) में गैंग ने कई बार घंटे चढ़ाए हैं।
सेना की नौकरी छोडकऱ बागी बने पान सिंह तोमर के चाचा बलवंत सिंह तोमर बताते हैं पिता ने पुश्तैनी गांव भिड़ोसा में माता मंदिर बनवाया था। जंगल में उतरने के बाद गिरोह करौली माता (राजस्थान) और गांव के पुश्तैनी मंदिर में दर्शन करने और घंटे चढ़ाने जाता था। यह बात पुलिस भी जानती थी। बलवंत कहते हैं सरदार पान सिंह ने 1980 में डांग बसई (राजस्थान) में सिद्ध बाबा का मंदिर भी बनवाया है इसे उस दौर में बागियों का मंदिर कहा जाता था, अब सरकार ने इस मंदिर का काया कल्प बदल दिया है।
चंबल (एमपी) और पचनदा (यूपी) के जंगलों में रहे पूर्व बागी अरविंद सिंह गुर्जर बताते हैं, जंगल में बागियों के लिए मंदिर सुरक्षित ठिकाने थे। यमुना व चंबल के किनारे पर बने मंदिरों में बागियों की अगाध आस्था थी। लोग भी यहां आने से डरते थे। वह बताते हैं, उनका गिरोह ज्वारे बोता था और फिर भेष बदलकर घंटे चढ़ाता था।
पूर्व दस्यु पंजाब सिंह गुर्जर बताते हैं माता मंदिरों से बागियों से हमेशा नाता रहा है। लखेश्वरी, शीतला माता, रतनगढ़ की माता के अलावा माता बसैया (मुरैना), बलारपुर की काली माता, गसवानी का माता मंदिर तो पुलिस भी बागियों की पूजा-पाठ का ठिकाना मान कर हमेशा रडार पर रखती थी। इस वजह से लोग भी इन मंदिरों पर आने से घबराते थे।
रिटायर्ड डीएसपी अशोक सिंह भदौरिया ने बताया कैसे उन्होंने और उनकी टीम ने बागी दयाराम और रामबाबू गड़रिया का सफाया करने के बाद शीतला माता मंदिर पर घंटा चढ़ाया था। यह एक ऐसी कहानी है जो चंबल के इतिहास में हमेशा याद रखी जाएगी - बागियों का आतंक और उनकी अनोखी आस्था।
Published on:
28 Sept 2025 05:36 pm
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