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न घर, ना ही काम, खाने के थे लाले, जेब में मात्र 27 पैसे लेकर मुंबई आया था शब्दों का ये जादूगर

Javed Akhtar: मशहूर गीतकार और स्क्रिप्ट राइटर जावेद अख्तर ने मुंबई में अपने 61 साल पूरे होने पर एक पोस्ट शेयर किया और अपने संघर्ष के दिनों को याद किया। अब सोशल मीडिया पर ये पोस्ट वायरल हो रहा है।

3 min read

मुंबई

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Rashi Sharma

Oct 05, 2025

javed akhtar recalls struggle days when he arrived mumbai 61 years ago

शब्दों के जादूगर जावेद अख्तर की फोटो। (फोटो सोर्स: X)

Javed Akhtar: शब्दों के जादूगर जावेद अख्तर पिछले 6 दशकों से फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय हैं। उन्होंने सैंकड़ों फिल्मों की स्क्रिप्ट, डायलॉग्स और गीत लिखे हैं। चाहे वो बॉर्डर फिल्म का 'संदेसे आते हैं' हो या फिर 'चिट्ठी न कोई संदेस…' हो उनकी कलम से निकला हर शब्द दिल को छू जाता है। मगर उनके लिए स मुकाम तक पहुंचना आसान नहीं था। जावेद अख्तर ने अपने संघर्ष दिनों को याद करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफार्म X (पहले ट्विटर) पर एक पोस्ट शेयर की है। उन्होंने अपनी पोस्ट में बताया कि कैसे वो मुंबई आये, कई-कई दिनों तक भूखे रहे और आर्थिक तंगी से गुजरे। उनकी ये पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है।

जावेद साहब ने अपनी पोस्ट में लिखा

मशहूर गीतकार और पटकथा लेखक Javed Akhtar ने इस पोस्ट में लिखा, '4 अक्टूबर 1964 को 19 साल की उम्र में मैं बॉम्बे सेंट्रल स्टेशन पहुंचा था, मेरी जेब में सिर्फ 27 नये पैसे थे। मुंबई में मैंने बेघर होना झेला, भुखमरी में जिया और बेरोजगारी का सामना किया, लेकिन आज जब मैं अपनी जिंदगी का हिसाब लगाता हूं, तो लगता है कि जिंदगी मुझ पर बहुत मेहरबान रही है।'

आगे उन्होंने लिखा, 'इसके लिए मैं मुंबई, महाराष्ट्र, अपने देश और उन सभी लोगों का शुक्रिया अदा किए बिना नहीं रह सकता जिन्होंने मेरे काम को पसंद किया और सराहा। शुक्रिया, बहुत-बहुत शुक्रिया।' इसके साथ ही पोस्ट में उन्होंने खुद को एथीस्ट और कट्टर आशावादी भी बताया।

पोस्ट पर लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रिया

सोशल मीडिया पर जावेद अख्तर की पोस्ट वायरल हो रही है। उनकी इस पोस्ट पर लोगों की मिली जुली प्रतिक्रिया आ रही है। जैसे एक फैन ने लिखा, 'हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारे देश में आप जैसे दिग्गज कलाकार हैं, आप बहादुर और दयालु इंसान हैं। आपने तसलीमा जी के लिए जो स्टैंड लिया था वो काबिले-तारीफ था।'

एक यूजर ने लिखा, 'आपके पिता, जां निसार अख्तर, और दादा, मुज्तर खैराबादी, उर्दू शायरी और प्रगतिशील लेखक आंदोलन के स्तंभ थे। उनकी विरासत आपके काम के माध्यम से जीवित है और हर जेनरेशन को प्रेरित करती है। मात्र 27 नए पैसे लेकर मुंबई पहुंचने से लेकर साहित्य और सिनेमा के आइकन बनने तक की आपकी यात्रा समर्पण की मिसाल है साथ ही उन लोगों की दयालुता का सच्चा उदाहरण है, जिन लोगों ने आपके इस सफर में आपका साथ दिया।'

एक फैन ने लिखा, 'सालगिरह पर बधाई। ये है शहर की खुश किस्मती थी कि आप जैसा जहीन और कमाल का आदमी यहां आया और इतना कुछ हमें दिया। शुक्रिया सर और आपको ढेर सारी शुभकामनाएं।'

वहीं, कुछ यूजर्स ने इस पोस्ट पर उनकी आलोचना भी की। एक यूजर ने लिखा, 'फिर भी हिन्दुओं से इतनी नफरत लाते कहां से हो।' दूसरे यूजर ने लिखा, 'जावेद विशेषाधिकार प्राप्त बैकग्राउंड से थे, और यह गरीबी की कहानी बनाना बंद करें।' वहीं, एक ने उनके एथीस्ट होने पर तंज कसा।

जावेद अख्तर और सलीम खान की जोड़ी को कौन नहीं जानता जावेद साहब ने सलीम खान के साथ मिलकर कई कल्ट क्लासिक फिल्मों की स्क्रिप्ट और डायलॉग्स लिखे, जिनमें दीवार, जंजीर, शोले, त्रिशूल, काला पत्थर जैसे सुपरहिट फिल्मों के नाम शामिल हैं।