'कांतारा चैप्टर 1' में देव सिर्फ कल्पना नहीं, जानिए गुलिगा-पंजुरली की असली कहानी। (फोटो सोर्स: X)
Kantara: Chapter 1: फिल्म रिलीज होते ही दर्शकों के दिलों में बस गई है। इसके शानदार विज़ुअल्स, संगीत और दमदार एक्टिंग ने लोगों को बहुत प्रभावित किया है। 'कांतारा चैप्टर 1' फिल्म की असली आत्मा तो देवों की कहानी है, जो किसी कल्पना से नहीं, बल्कि दक्षिण भारत की संस्कृति, परंपरा और आस्था से जुड़ी है। इसमें दिखाए गए गुलिगा और पंजुरली सदियों से पूजे जाने वाले दैवीय आत्माओं का प्रतीक हैं।
कर्नाटक के तटीय इलाकों में सदियों से देव आत्माओं की पूजा की परंपरा चली आ रही है। यह पूजा किसी डर या अंधविश्वास का नहीं, बल्कि प्रकृति और देव आत्माओं के बीच संबंधों का प्रतिक है। कांतारा में दिखाए गए गुलिगा और पंजुरली इन्हीं देव आत्माओं का प्रतीक हैं, जिन्हें आज भी ग्रामीण समाज में पूजा जाता है।
मान्यता है कि मां पार्वती एक दिन भगवान शिव के दिव्य बगीचे में गईं, जहां उन्हें एक मरा हुआ जंगली सूअर और उसका अनाथ बच्चा मिला। मां के दिल में ममता उमड़ आई और उन्होंने उस बच्चे को गोद में ले लिया। बाद में वो सूअर बड़ा होकर बहुत ताकतवर और जिद्दी बन गया। उसने खेतों की फसलें उजाड़नी शुरू कर दीं। तब भगवान शिव ने उसे धरती पर भेज दिया ताकि वो अपनी शक्ति अच्छे काम में लगाए। धरती पर आकर वो जंगलों और फसलों का रखवाला बन गया। लोग उसे पंजुरली देव के नाम से जानने लगे। पंजुरली देवता का रूप जंगली सूअर जैसा होता है। आज भी कर्नाटक और केरल के गांवों में खेती शुरू करने या त्योहारों के वक्त पंजुरली देवता की पूजा की जाती है।
वहीं, दूसरी किवंदिति है कि मां पार्वती के कहने पर भगवान शिव ने भस्म से एक छोटा कंकड़ उठाकर गुलिगा को जन्म दिया। गुलिगा बहुत उग्र और तेजस्वी थे। उनकी शक्ति इतनी ज्यादा थी कि भगवान विष्णु ने उन्हें पृथ्वी पर भेज दिया ताकि वो वहां संतुलन बनाए रखें। गुलिगा देव जब बहुत भूख से परेशान हुए तो उन्होंने जो भी दिखा, वो उसे खाने लगे जाते, यहां तक कि उन्होंने सूरज को भी निगलने की कोशिश की। तब भगवान विष्णु ने अपनी उंगली आगे बढ़ाकर उनकी भूख शांत की और कहा, “अब तुम इंसानों की रक्षा करोगे।” तब से गुलिगा धरती के रक्षक और न्याय के देवता हैं। कहा जाता है कि वो हर इंसान के कर्मों का हिसाब रखते हैं और सही समय पर न्याय दिलाते हैं।
निर्देशक और अभिनेता ऋषभ शेट्टी ने ‘कांतारा’ में गुलिगा और पंजुरली को केवल धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि संस्कृति की आत्मा के रूप में दिखाया। फिल्म के क्लाइमेक्स में इन देवताओं का चित्रण इतना जीवंत है कि दर्शक भी थियेटर में उस आस्था को महसूस करने लगे। फिल्म ने साबित किया कि भारतीय लोककथाएं आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं, बस उन्हें सही ढंग से दिखाने की जरूरत है।
Updated on:
13 Oct 2025 11:19 am
Published on:
12 Oct 2025 04:54 pm
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