जगन्नाथ पुरी में भगवान को अर्पित करने के लिए रोजाना छप्पन भोग का निर्माण होता है। इसी प्रसाद (Jagannath Puri Prasad) को महाप्रसाद के नाम से भी जाना जाता है, जिसे भगवान को भोग लगाए जाने के बाद भक्तों में बांट दिया जाता है। भगवान जगन्नाथ के लिए तैयार किए जाने वाले प्रसाद में विभिन्न प्रकार के पकवान के साथ चावल, दाल और तरह-तरह की सब्जियां शामिल होती हैं। इस छप्पन भोग में मुख्य रूप से चावल (सूखे चावल, घी चावल, दही चावल, अदरक चावल, दाल चावल, मीठे चावल), लड्डू (गेहूं के लड्डू, जीरा लड्डू, बेसन लड्डू), दाल (मूंग दाल, उड़द दाल, चना दाल) शामिल होते हैं। इसके अलावा अलग-अलग दिन अलग पकवान बनाए जाते हैं, जिसमें रायता, रसबली, साग सब्जियां, दूध-मलाई शामिल होते हैं।
लेकिन इसे महाप्रसाद कहे जाने के पीछे एक बड़ी वजह है, इसके अनुसार प्रसाद बनने के बाद इसे मुख्य मंदिर में ले जाकर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को भोग लगाया जाता है। इसके बाद श्रीमंदिर में माता बिमला देवी जी को भोग लगाया जाता है। दोनों मंदिरों में भोग लगाने के बाद यह प्रसाद महाप्रसाद बन जाता है। मान्यता है कि जब प्रसाद बनता है तो उसमें से कोई सुगंध नहीं आती, लेकिन जैसे ही उसे भोग लगाकर बाहर लाया जाता है तब उसमें से भोजन की स्वादिष्ट सुगंध आने लगती है। इसके बाद यह महाप्रसाद भक्तों को ग्रहण करने के लिए दिया जाता है। यह प्रसाद भक्तों को मंदिर में स्थित आनंद बाजार में मिलता है। ताजा प्रसाद दोपहर 2 से 3 बजे निश्चित दर पर मिलता है।
भगवान जगन्नाथ की रसोई में जिसमें प्रसाद तैयार किया जाता है दुनिया की सबसे बड़ी रसोई मानी जाती है, क्योंकि करीब 700 लोग मिलकर रोजाना बीस लाख लोगों के लिए यहां भोजन तैयार करते हैं।
भगवान के लिए बनाए जाने वाला व्यंजन पूरी तरह से सात्विक, शाकाहारी और प्राकृतिक सब्जियों का मिश्रण होता है। इसे वहीं बहने वाली नदी के जल में बनाया जाता है। साथ ही बनाने के लिए केवल मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है। खास बात यह है कि महाप्रसाद (Jagannath Mandir Mahaprasad) को बनाने के लिए मुख्य रूप से सात बड़े मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग किया जाता है, जिन्हें एक के ऊपर एक करके रखा जाता है।
प्रसाद बनाने के लिए लकड़ी की आग का प्रयोग किया जाता है। सबसे हैरानी की बात है कि आग में रखे सबसे नीचे वाले पात्र का भोजन अंत में पकता है और सबसे ऊपर रखे मिट्टी के बर्तन का भोजन सबसे पहले पकता है।
जगन्नाथ पुरी का महाप्रसाद दो तरह का होता है, एक को संकुदी महाप्रसाद कहते हैं। इसमें सभी प्रकार के भोग चावल, दाल, सब्जियां, दलिया आदि आ जाती हैं। इसे भक्त को वहीं ग्रहण करना होता है। दूसरे प्रकार के प्रसाद को सुखिला महाप्रसाद कहा जाता है। इसमें सूखी मिठाइयां शामिल होती हैं और भक्त इन्हें अपने घर भी लेकर आते हैं। यहां एक अन्य प्रकार का भी प्रसाद मिलता है, जिसमें सूखे चावल होते हैं। इसे निर्मला प्रसाद कहते हैं। इसे मंदिर के पास कोइली वैकुंठ में बनाया जाता है। कहते हैं कि यदि मरणासन्न व्यक्ति को इस प्रसाद का भोग लगाया जाए तो उसे मुक्ति मिलती है और उसके सभी पाप दूर हो जाते हैं।
मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ जी को सबसे अधिक खिचड़ी प्रिय है। इस कारण भक्त जगन्नाथ जी को भोग लगाने के लिए मंदिर में खिचड़ी बनाते हैं। इसके अलावा मीठे में भगवान जगन्नाथ को मालपुआ और खाझा (मैदे से शीरे में डुबोकर बनाई जाने वाली मिठाई) पसंद है। लेकिन सच्चे मन से भक्त भगवान को जो भी भोग अर्पित करता है, उसे ही वो ग्रहण कर लेते हैं।
Updated on:
22 Jul 2025 01:22 pm
Published on:
06 Jul 2024 04:52 pm