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पर्यटन उद्योग का हब बनेगी यह हेरिटेज सिटी, स्थापत्य कला युक्त हवेलियां के भित्ति चित्रों में समाया सांस्कृतिक इतिहास

17वीं शताब्दी के बाद का स्वर्णिम रहा कालखंड चूरू के विकास के लिए स्वर्णिम रहा। एक ओर यहां के ठाकुर कुशल सिंह ने केवल गढ़ का निर्माण करवाया बल्कि चूरू शहर (Churu City) की सीमाओं पर परकोटा बनाया। रामगढ़िया और बीकानेरी दरवाजे से प्रवेश, शहर के बाहरी क्षेत्रों में जाने के लिए झारिया, महलां मोरी और भीतर शहर को ऐसा स्वरूप प्रदान किया कि उस जमाने में महाजन परिवारों समृद्ध चूरू व्यापार का मुख्य केंद्र तक रहा।

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चूरू. मरुस्थल के प्रवेश द्वार के ऊंचे रेतें धोरों की तलहटी में किसी जमाने में बसे चूरू (Churu) के जीवट लोगों ने उस दौर में इसे न केवल छोटी काशी के रूप में सजाया बल्कि इसे व्यापार का मुख्य केंद्र बनाया। थळी और शेखावाटी की बात करें तो पुरातन कालखंड में चूरू विकास की दृष्टि से अग्रणीय रहा। यहां के भरतिया, लोहिया, गोयनका, पोद्दार, भावसिंहका, खेमका, बजाज, सुराणा, कोठारी आदि परिवारों के पूर्वजों ने न केवल हेविलयों, मंदिर देवालय, कुएं, जोहड़, शिक्षा, चिकित्सा और सामाजोपयोगी भवनों की एक ऐसी शृंखला खड़ी की बल्कि यहां की सांस्कृतिक विरासत को संजोया, जो वर्तमान के लिए किसी सौंगात से कम नहीं है। उस जमाने की विरासतीय धरोहरों के कारण चूरू हेरिटेज सिटी बना।

स्वर्णिम रहा कालखंड

17वीं शताब्दी के बाद का स्वर्णिम रहा कालखंड चूरू के विकास के लिए स्वर्णिम रहा। एक ओर यहां के ठाकुर कुशल सिंह ने केवल गढ़ का निर्माण करवाया बल्कि चूरू शहर (Churu City) की सीमाओं पर परकोटा बनाया। रामगढ़िया और बीकानेरी दरवाजे से प्रवेश, शहर के बाहरी क्षेत्रों में जाने के लिए झारिया, महलां मोरी और भीतर शहर को ऐसा स्वरूप प्रदान किया कि उस जमाने में महाजन परिवारों समृद्ध चूरू व्यापार का मुख्य केंद्र तक रहा। गगनचुंबी हवेलियों के निर्माण सहित बने देवालयों की दीवारों तक में यहां का सांस्कृतिक इतिहास समाया हुआ है। जो पुरातात्विक की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। उस जमाने के बलुआ पत्थर, चुने के गारें में बनी हवेलियों आज भी मील का पत्थर बनी हुई हैं। बस आवश्यकता है इनकी सारसंभाल की, यदि ऐसा होता है तो चूरू पर्यटन की दृष्टि से देश का बड़ाकेंद्र बन सकता है।

जैन मंदिर से लोहिया कुएं तक पर्यटकीय पट्टी

किसी जमाने में चूरू शहर का प्रवेश द्वार रहे रामगढ़िया दरवाजा जैन मंदिर से सफेद घंटाघर के पास रहे बीकानेरी दरवाजे और झारिया मोरी तक एक ऐसी पर्यटकीय पट्टी है जिसमें सुराणों की मौहल्ले की हवेलिया, स्वर्ण पिच्चकारी युक्त शांतिनाथ जैन मंदिर, बागलों की हवेलिया, छतरियां, देवालय और चार मुरबोवाले कुएं, नगरश्री, सर्वहितकारणी सभा भवन, सनातन धर्म पुस्तकालय आदि और बाहरी क्षेत्र में जोहड़े दर्शनीय है। हवेलियों की भींत पर उकरे गए भित्ति चित्र, मंदिरों की लम्बी शृंखला है। यह केवल दर्शनीय ही नहीं बल्कि उस इतिहास के साक्षी है जो किसी पाठ्य पुस्तक में नहीं हैं।

अंकित हुए क्यूआर कोड

जिला प्रशासन की ओर से चूरू की दर्शनीय हवेलियों को पर्यटन के मानचित्र पर लाने के लिए क्यूआरकोड अंकित किए गए। इनकी वेबसाइट बलाकरदुनियां की नजर में लाने की हालांकि प्रशासन की योजना है लेकिन राज्य सरकार की ओर से चूरू को पर्यटकीय शहर बनाने की कवायद की है। इसके लिए पर्यटन विभाग का कार्यालय खोलना जरूरी है।

इनका कहना है

पुरातात्विक क्षेत्र चूरू पर्यटन विकास की दृष्टि ही नहीं बल्कि ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का गढ़ रहा है। यहां की हवेलिया, देवालय, कुएं और जोहड़ सांस्कृतिक विरासत है। क्यूआर कोड अंकित तो किए गए है। यहां की सामाजिक निधि प्रवासित हो गई अब उनकी नई पीढ़ी को जोड़ना जरूरी है। उन्हें जोड़ने पर्यटन विकास की राह निकलेगी। श्यामसुन्दर शर्मा, सचिव नगरश्री, लोक संस्कृति शोध संस्थान चूरू