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Churu : धरातल पर नहीं उतर रही है सिधमुख नहर परियोजना, किसानों के लिए सपना बनकर रह गई

नहर परियोजना से जुड़े गांव गालड़, रजेडी, किशनपुरा, रामसरा टिब्बा, तंबाखेड़ी, ढाणी बड़ी, सरदारपुरा, भीमसान, सिधमुख और रामसराताल के किसानों का कहना है कि उन्हें वर्षों से विभाग की ओर से आवंटित पानी नहीं मिल पाया है।

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सादुलपुर. आज से ही नहीं वर्षों से सिधमुख नहर (Sidhmukh Canal) के माध्यम से किसानों को सब्जबाग दिखाए गए लेकिन अभी तक तो यह क्षेत्र के लिए केवल सपना बनकर रह गई हैं। तहसील की एक मात्र सिधमुख नहर परियोजना वर्षों से अधूरी पड़ी है। इसे विभाग की लापरवाही और संसद से लेकर विधानसभा तक में प्रतिनिधित्व करनेवाले प्रतिनिधियों की अनदेखी का परिणाम यह है कि खेतों में सिचाई का पानी दिए जाने की यह योजना कागजों में सिमटी हुई है।

आरटीआई कार्यकर्ता एडवोकेट हरदीप सुंदरिया की ओर से सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जवाब से इस परियोजना की असलियत उजागर हुई है। जल संसाधन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, सिधमुख नहर परियोजना के अंतर्गत क्षेत्र के 34 गांवों का कुल 4 हजार 358 हेक्टेयर रकबा प्रस्तावित किया गया था। फिर भी वर्षों बीत जाने के बाद अब तक मात्र 1 हजार 322 हेक्टेयर क्षेत्र में ही कार्य पूरा हो सका है। शेष 3 हजार 036 हेक्टेयर क्षेत्र अब भी चकबंदी व खाला निर्माण की बाट जोह रहा है।

विभाग ने आरटीआई (RTI) के जवाब में यह भी स्वीकार किया कि वर्ष 2019-20 की खरीफ फसल के दौरान सिंचाई के लिए भाखड़ा पन बिजली परियोजना बोर्ड (Bhakra Hydroelectric Project Board) की ओर से सिधमुख सहित अन्य नहरों को प्राथमिकता क्रम के अनुसार पानी दिया जा रहा है। जबकि हकीकत यह है कि किसानों के खेतों तक यह पानी पहुंच ही नहीं पा रहा। नहरें कागजों में तो बह रही हैं, लेकिन धरातल पर खेत सूखे पड़े हैं।

नहर परियोजना से जुड़े गांव

नहर परियोजना (Canal Irrigation Project) से जुड़े गांव गालड़, रजेडी, किशनपुरा, रामसरा टिब्बा, तंबाखेड़ी, ढाणी बड़ी, सरदारपुरा, भीमसान, सिधमुख और रामसराताल के किसानों का कहना है कि उन्हें वर्षों से विभाग की ओर से आवंटित पानी नहीं मिल पाया है। इन गांवों में किसान हर साल आस लगाए बैठे है कि शायद इस बार नहर से पानी आएगा, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ कर रहा है।

पानी नहीं मिलने से सूखती हैं फसलें

किसानों ने बताया कि खेतों में फसल सूख रही है और ट्यूबवेल से सिंचाई के खर्चे से खेती को घाटे का सौदा बना दिया है। पानी की कमी के चलते कई किसानों ने तो खेती छोड़कर मजदूरी का रास्ता पकड़ लिया है। ग्रामीणों ने कहा हर चुनाव में नहर का मुद्दा उठता है, वादे होते हैं कि अब की बार खेतों तक पानी पहुंचाया जाएगा, लेकिन चुनाव के बाद नहर का नाम तक नहीं लिया जाता। धरातल पर कुछ नहीं बदलता, सिर्फ कागजों में नहर बह रही है। स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर समय रहते विभाग ने नहर परियोजना का काम पूरा नहीं किया तो आने वाले वर्षों में क्षेत्र की कृषि व्यवस्था पूरी तरह प्रभावित हो जाएगी।